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शाहबाज कलंदर आतंकी हमला: कहां गायब हो रहे हैं सिंध के राष्ट्रवादी?

आतंकी हमलों से निपटने के लिए पाकिस्तानी सेना को मिल रहे हैं अंधाधुंध अधिकार

Shantanu Mukharji

पाकिस्तान इस वक्त आतंकवाद के लगातार हो रहे हमलों से जूझ रहा है. आत्मघाती धमाकों से लेकर गोलीबारी तक, हर तरह से बेगुनाह मारे जा रहे हैं.

इन हमलों की जद में लाहौर भी आ चुका है. मगर सबसे भयानक हमला सिंध सूबे में सूफी संत शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हुआ था.


इस आत्मघाती हमले में 88 लोग मारे गए थे, जबकि बड़ी संख्या में लोग जख्मी हुए थे.इन आतंकवादी हमलों से पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार लोगों को तगड़ा झटका लगा है.

लोगों में खौफ का माहौल

बेगुनाहों की मौत से आम लोग डरे हुए हैं और उनमें हौसला जगाने के लिए पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने सैकड़ों आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया है.

इनमें से कई आतंकवादी अफगानिस्तानी सीमा में मार गिराए गए हैं. देखने वाली बात ये है कि आतंकियों के खिलाफ ये मुहिम शाहबाज कलंदर की दरगाह पर हुए हमले के 24 घंटे के भीतर हुए.

पाकिस्तान में हाल के दिनों में हुए आतंकी हमलों के सबसे ज्यादा शिकार सिंध के लोग हुए हैं. यह भी आरोप है कि सुरक्षा बलों ने कई सिंधी राष्ट्रवादियों को मार गिराया है. राष्ट्रवादी अचानक गायब हो गए. फिर उनका कोई पता नहीं चला.

मानवाधिकार संगठन का आरोप

मानवाधिकार संगठन आरोप लगा रहे हैं कि सुरक्षाबलों ने इन राष्ट्रवादी सिंधी नागरिकों को चुपके से मार डाला. सेहवां की दरगाह पर हमले के बाद सिंधी लोग जुल्म के खिलाफ जोर-शोर से आवाज उठा रहे हैं.

सौ से ज्यादा सिंधी राष्ट्रवादियों के अचानक लापता होने का मामला गरमाता जा रहा है. मसलन शफी मोहम्मद बुरफात के परिवार के 9 लोग रातों-रात लापता हो गए. इनमें से एक नाबालिग भी है.

शफी मोहम्मद बुरफात, जीये सिंध मुत्तहिदा महाज के नेता हैं. सिंधी नागरिक पिछले काफी समय से डर-डरकर जीने को मजबूर हैं.

चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के खिलाफ प्रदर्शन

19 फरवरी को सिंधी राष्ट्रवादियों के एक समूह ने चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के खिलाफ प्रदर्शन किया था. वो लोग सिंधियों के अपहरण और लापता होने का भी सवाल उठा रहे थे.

उनका आरोप था कि सुरक्षाबल, सिंधियों को टॉर्चर कर रहे हैं. उन पर तरह-तरह से जुल्म कर रहे हैं. उन्हें अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा जा रहा है.

इस प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों ने विरोध कर रहे लोगों की बुरी तरह पिटाई की. सैकड़ों मकानों पर हमला बोलकर सुरक्षा बलों ने महिलाओं और बच्चों तक को बुरी तरह पीटा.

बुरफात समुदाय पर निशाना 

जीये सिंध मुत्तहिदा महाज का आरोप है कि सुरक्षा बलों के निशाने पर खास तौर से बुरफात समुदाय के लोग हैं. बीस फरवरी को जीये सिंध कौमी महाज के नेता हमीद सिंधी और छात्र नेता यावर मेहेसर को हिरासत में लिया गया था.

उनका अब तक कोई पता नहीं. सिंध के लोगों का आरोप है कि इसी तरीके से उनके तमाम नेता अचानक लापता हो गए. सुरक्षा बलों ने उन्हें गैरकानूनी तरीके से मार दिया.

जारी है सिंधियों पर जुर्म

सिंधियों पर जुल्म यहीं नहीं रुकता. 82 साल के उस्ताद मोहम्मद रहीमून 23 नवंबर 2016 से लापता हैं. वो जाने-माने राष्ट्रवादी नेता और सिंध के बुद्धिजीवी हैं. सिंधियों को इस बात का डर है कि उन पर जुल्म और बढ़ सकते हैं.

पाकिस्तान में बढ़ रही आतंकवादी घटनाओं से आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा पर भी सवाल उठ रहे हैं. लोग उनके हर कदम को बड़े करीब से देख रहे हैं. लोग ये जानना चाहते हैं कि वो आतंकवादी घटनाएं रोकने के लिए क्या कर रहे हैं.

जानकार और आम जनता उनकी तुलना पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ से कर रही है. जिन्होंने ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब चलाकर आतंकी संगठनों पर काबू पाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की थी.

जनता के लिए हीरो हैं जनरल राहील

आज जनता की नजर में जनरल राहील एक हीरो के तौर पर देखे जा रहे हैं. वहीं ताजा आतंकवादी घटनाओं के बाद जनरल बाजवा की काबिलियत पर सवाल उठ रहे हैं.

पाकिस्तान में आम चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं हैं. ऐसे में लोगों को लगता है कि नवाज शरीफ, सेना को आतंकी संगठनों के खिलाफ एक्शन की खुली छूट नहीं देंगे. क्योंकि इससे वोटरों के नाराज होने का डर है.

कई आतंकी संगठनों के नवाज शरीफ की पार्टी से करीबी ताल्लुकात बताए जाते हैं. अगर आतंकियों के खिलाफ ठोस एक्शन होता है तो नवाज शरीफ को चुनाव में नुकसान हो सकता है.

ऑपरेशन 'रद्द उल फसाद' शुरू

इस माहौल में पाकिस्तान की सेना ने आतंकवाद के खिलाफ नया ऑपरेशन 'रद्द उल फसाद' शुरू किया है. इसमें सेना को आतंकियों के खिलाफ किसी भी तरह का कदम उठाने की छूट दी गई है, ताकि देश के भीतर माहौल सुरक्षित बनाया जा सके और सरहदों को भी सुरक्षित किया जा सके.

मगर जानकार सेना को अंधाधुंध अधिकार दिए जाने पर सवाल उठा रहे हैं. पूछा जा रहा है कि क्या पहले के अभियानों में आतंकियों के खिलाफ कोई कोताही बरती गई थी.

अब अगर किसी अभियान के नाम पर ही सवाल उठ रहे हों. उसकी शुरुआत में ही उंगलियां उठाई जा रही हों, तो इसकी कामयाबी को लेकर तो शक होगा ही.

नवाज शरीफ के लिए तो यही मुफीद होगा कि सेना का आतंकवाद के खिलाफ कोई भी अभियान गैरराजनीतिक ही रहे. किसी खास समुदाय को इसके जरिए निशाना न बनाया जाए. और इसके निष्पक्ष होने पर सवाल न उठें.

असुरक्षा के माहौल में जनता

पाकिस्तान की जनता इस वक्त डरी हुई है और असुरक्षा के माहौल में जी रही है. ऐसे में ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो अवाम का हौसला बढ़ाए, उनमें सुरक्षा की भावना पैदा करे. इस मोर्चे पर नाकामी खतरनाक हो सकती है.

सेहवां की दरगाह पर हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली थी. बहुत से पाकिस्तानी जो इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ रहे हैं, वो सीरिया और इराक में लड़ाई खत्म होने के बाद स्वदेश लौटेंगे.

वो पूरी तरह से इस्लामिक स्टेट की विचारधारा के रंग मे रंगे होंगे. उन्हें जंग का भी तजुर्बा होगा. अगर वो अपने देश आकर आतंकवाद के खिलाफ चल रहे अभियान का विरोध करेंगे, तो इसके और खूनी होने का अंदेशा है.

इसकी कामयाबी पर भी सवाल उठेंगे. इसका मुकाबला बढ़िया खुफिया जानकारी और आतंकवाद निरोधक अभियान के जरिए ही किया जा सकता है.