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पाक जर्नलिस्ट गुल बुखारी का अपहरण, घंटों बाद छोड़ा, सेना पर आरोप

बुखारी ने पिछले छह महीनों में पाकिस्तान के नेशन अखबार में पाक सेना और न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कई आर्टिकल लिखे हैं

FP Staff

पाकिस्तानी सेना पर एक जर्नलिस्ट को अगवा करने के आरोप लगे हैं. पाकिस्तानी-ब्रिटिश जर्नलिस्ट और राइट एक्टिविस्ट गुल बुखारी को मंगलवार को कुछ लोगों ने अगवा कर लिया और बुधवार को छोड़ा. पाकिस्तान में लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया है.

गुल बुखारी पाकिस्तानी सेना के राजनीति में कथित हस्तक्षेप को लेकर काफी मुखर रही हैं. वो पिछले कुछ वक्त से 25 जुलाई को होने वाले पाकिस्तान के आम चुनावों में पाकिस्तानी सेना के हस्तक्षेप की सोशल मीडिया पर आलोचना कर रही थीं. उन्होंने नवाज़ शरीफ का बचाव भी किया था. नवाज़ शरीफ का सेना से विवाद जगजाहिर है.


बुखारी के परिवार और सहकर्मियों ने बताया कि मंगलवार की शाम वो कार से वक्त न्यूज़ शो रिकॉर्ड करने जा रही थीं. इसी वक्त पूर्वी लाहौर के कैंटोन्मेंट एरिया में उनकी कार रोक ली गई. कुछ लोगों ने बुखारी को गाड़ी से उठा लिया. वो उन्हें घसीट कर ले गए.

वक्त न्यूज प्रोग्राम के प्रोड्यूसर को ने ही बुखारी के अपहरण की बात सार्वजनिक की. उन्होंने रॉयटर्स को बताया कि बुखारी की गाड़ी को कुछ पिकअप ट्र्क्स ने घेर लिया था और सादे कपड़ों में कुछ लोग बुखारी को घसीट कर ले जा रहे थे और वहां कुछ पाकिस्तानी सेना के यूनिफॉर्म में कुछ लोग पहरा देते रहे. अपहरणकर्ताओं ने उनके चेहरे पर काला कपड़ा डाला और उन्हें ले गए. उन्होंने बताया कि उनको ये सारी जानकारी बुखारी के ड्राइवर से मिली.

बुखारी के वापिस आ जाने के बाद उनके पति अली नादिर ने बताया कि वो अब ठीक हैं. लेकिन उन्होंने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा. पाकिस्तानी सेना ने अबतक इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है.

इस पूरी घटना की पाकिस्तान में आलोचना हुई है. लोगों ने सेना की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. एक वरिष्ठ जर्नलिस्ट सैयद तलत हुसैन ने कहा कि अगर ये सच है तो ये एक आलोचक को चुप कराने की सबसे घिनौनी घटना है. क्या ये पाकिस्तान है या नॉर्थ कोरिया या मिश्र?

नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ ने भी इस घटना की आलोचना की. उन्होंने इसे निर्दयी और दुखद कहा. उन्होंने #BringBackBukhari हैशटैग के साथ ट्वीट किया.

बुखारी ने पिछले छह महीनों में पाकिस्तान के नेशन अखबार में पाक सेना और न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कई आर्टिकल लिखे हैं. उन्होंने आरोप लगाए हैं कि दोनों संस्थाएं अपने संवैधानिक अधिकारों का हनन करते हुए राजनीतिक प्रक्रियाओं में दखल दे रही हैं.

वैसे पाकिस्तान में किसी राइट एक्टिविस्ट या आलोचक को चुप कराने का ये पहला मामला नहीं है. पिछले साल ही वहां 5 ब्लॉगर्स लापता हो गए थे, जिनमें से चार को कई हफ्तों बाद रिहा किया गया. उनमें से दो ने बाद में खुलासा किया गया कि उन्हें इस दौरान एक स्टेट इंटेलीजेंस एजेंसी की ओर से प्रताड़ित किया गया था.

पाकिस्तान के आम चुनाव के नजदीक आ गए हैं. इस दौरान मीडिया ने भी आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी सेना की सेंसरशिप उनपर बढ़ती ही जा रही है.