अफगानिस्तान के साथ तनाव, अमेरिका के साथ खराब होते रिश्ते और भारत के साथ कमजोर वार्तालाप, आज के दौर में यही पाकिस्तान की विदेश नीति की हालत है. पाकिस्तान के नए पीएम इमरान खान के लिए अपने देश की विदेश नीति को संभालना एक बड़ी चुनौती होगा.
हालांकि इमरान खान ने पिछले महीने अपने चुनावी जीत के भाषण में इस बात का जिक्र किया था कि हमारी विदेश नीति एक बड़ी चुनौती है. अगर किसी देश को शांति और स्थायित्व की जरूरत है तो उसका नाम पाकिस्तान है.
बता दें कि जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के आतंकवाद पर ढीले रवैये को देखते हुए मिलियन डॉलर्स की सैन्य सहायता को रोक दिया था.
गौरतलब है कि खान ने पिछले दशक में घरेलू जमीन पर आतंकवाद में बढ़ोतरी के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले आतंकवादी अभियान में पाकिस्तान की भागीदारी को बार-बार दोषी ठहराया है.
हालांकि पीएम बनने के बाद इमरान खान ने कहा कि वह अमेरिका से लड़ने की वजाय संतुलित रिश्ते चाहते हैं. वहीं अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी भी तालिबान के साथ बातचीत चाहते हैं. रविवार को उन्होंने सीजफायर के लिए नई
नीतियों का प्रस्ताव रखा.
एनडीटीवी के मुताबिक वाशिंगटन के विलसन सेंटर के विश्लेषक हुमा युसुफ का कहना है कि इमरान खान उस स्थिति में हैं जब वो अफगानिस्तान के साथ दोबारा विश्वास को कायम रख सकते हैं. वह विश्वसनीय चेहरे के लिए एक नई आवाज हैं.
अगर भारत की बात की जाए तो इमरान खान का रवैया कुछ नरम दिखाई दे रहा है. उन्होंने मंगलवार को ट्वीट किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर बातचीत होगी और इसे सुलझाकर व्यापार को फिर से शुरू किया जाएगा. हालांकि जानकारों का कहना है कि इमरान की विदेश नीति पाक सेना की स्वीकारिता पर निर्भर करती है.