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ट्रंप का पहला ही भाषण पाकिस्तानी मीडिया को चुभ गया

कहीं ट्रंप के भाषण में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने जाने पर आपत्तियां हो रही हैं तो कहीं उन्हें भारत जैसा न बनने की नसीहतें दी जा रही हैं.

Seema Tanwar

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर पाकिस्तानी मीडिया के कान तो पहले से ही खड़े थे. राष्ट्रपति ट्रंप के पहले भाषण से पाकिस्तानी उर्दू अखबारों को अमेरिका को घेरने का एक और बहाना मिल गया. कहीं ट्रंप के भाषण में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने जाने पर आपत्तियां हो रही हैं तो कहीं उन्हें भारत जैसा न बनने की नसीहतें दी जा रही हैं.

दैनिक ‘दुनिया’ लिखता है कि ट्रंप के चंद मिनट के भाषण का सार यही था कि दुनिया और उसके अरबों लोग जाएं भाड़ में, उनके लिए तो बस अमेरिका अहमियत रखता है. अमेरिका में अमेरिकी ही रहेंगे, उन्हें ही नौकरियां मिलेंगी और उनके ही अधिकारों की  रक्षा होगी.


अखबार ने ट्रंप के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है कि वह ‘इस्लामिक टेटरिज्म को मिटा देंगे’. अखबार कहता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान से दुनिया के सवा अरब मुसलमानों की भावनाओं को ठेस लगी है.

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अखबार के मुताबिक, 'काश! कि उन्हें कोई समझा सकता कि दहशतगर्दी का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है और अगर कुछ संगठन जिहाद के नाम पर बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं, तो मुसलमानों का उनसे कोई लेना देना नहीं है.'

औसाफ’ लिखता है कि अमेरिका और यूरोप से मिलने वाले डॉलरों पर पलने वाले चरमपंथी ही दहशतगर्दी में शामिल होते हैं. अखबार ने बुश और उसके बाद राष्ट्रपति बने ओबामा को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि अफगानिस्तान, इराक और मिस्र में खून की बदतरीन होली खेली गई और अरबों डॉलर के हथियार जंगों में इस्तेमाल किए गए और अब ट्रंप आते ही दहशतगर्दी के खिलाफ नए गठबंधन की बात कर रहे हैं.

'रोजनामा पाकिस्तान' को भी ट्रंप का इस्लामिक टेररिज्म वाला बयान गले नहीं उतर रहा है. अखबार लिखता है कि इस्लामिक स्टेट को किसने खड़ा किया? इसे हथियार किसने दिए?

अखबार कहता है कि पू्र्व राष्ट्रपति ओबामा कहते रहे कि अमेरिका की इस्लाम से कोई लड़ाई नहीं है, बल्कि वह उन दहशतगर्दों के खिलाफ है जो इस्लाम के नाम पर आतंक फैला रहे हैं. अखबार लिखता है कि ट्रंप बिल्कुल दहशतगर्दी को खत्म करे, इससे भला किसको एतराज हो सकता है लेकिन कोई भी आतंकवाद इस्लामी, ईसाई या यहूदी नहीं हो सकता.

अमेरिकी दहशतगर्दी

जसारत’ ने भी इस मुद्दे पर संपादकीय लिखा और शीर्षक दिया- ईसाई दहशतगर्दी को कौन खत्म करेगा? अखबार लिखता है कि माना, अफगानिस्तान पर हमले के लिए तो अमेरिका के पास 9/11 हमले की दलील थी लेकिन इराक के खिलाफ दहशतगर्दी फैलाने का क्या औचित्य था. सिर्फ एक झूठ कि सद्दाम हुसैन के पास व्यापक विनाश के हथियार हैं?

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जंग’ लिखता है कि आतंकवाद का सबसे ज्यादा निशाना खुद मुसलमान देश हैं और इसकी वजह फिलहाल अमेरिका और उसके सहयोगियों की अन्यायपूर्ण और स्वार्थी नीतियां हैं.

अखबार कहता है कि अफगानिस्तान और इराक में चढ़ाई करने की आलोचना तो राष्ट्रपति ट्रंप अपने एक हालिया बयान में कर चुके हैं जबकि फलीस्तीन और कश्मीर के लोगों को सात दशक बाद भी उनका हक नहीं मिला है तो इसके लिए अमेरिका और उसके सहयोगी की जिम्मेदारी है और यह आतंकवाद फैलने की एक बुनियादी वजह भी है.

फिर गारंटी नहीं है

रोजनामा एक्सप्रेस’ ने लिखा है कि भारत-पाक तनाव ट्रंप के सियासी विजन का सबसे बड़ा इम्तिहान होगा, लेकिन नवाज शरीफ सरकार को अमेरिका से खुशगवार रिश्तों के लिए कोई बड़ी कामयाबी हासिल करनी होगी.

अखबार कहता है कि दुनिया को इंतजार रहेगा कि मुसलमान दुनिया पर ट्रंप के दौर में क्या गुजरती है और इसराइल पर अमेरिका की कितनी मेहरबानियां होंगी?

नवा ए वक्त’ लिखता है कि अगर ट्रंप मुसमलानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए उन पर दहशतगर्दी का लेबल लगाएंगे तो वह भी हिंदू कट्टरपंथी भारतीय हुक्मरानों की तरह क्षेत्रीय और वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए खतरे पैदा करेंगे. अखबार की राय में मुसलममानों के खिलाफ सबसे बड़ी दहशतगर्दी तो खुद अमेरिकी प्रशासन की सरपरस्ती में अमेरिका की तरफ से होती रही है.

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अखबार ट्रंप को नसीहत देता है कि वह अपनी सोच में बदलाव लाएं क्योंकि अगर उन्होंने अपनी घोषित नीतियों पर ही अमल किया तो फिर दुनिया की सुरक्षा की गारंटी बिल्कुल नहीं दी जा सकती.