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भारत का नाम न लेने पर नवाज शरीफ को अपने ही यहां फटकार

प्रधानमंत्री शरीफ ने भारत के मामले में अपनी सोच नहीं बदली तो आने वाले चुनावों में जनता उनसे निपट लेगी.

Seema Tanwar

एक ही राग कितनी बार अलापा जा सकता है, यह तो कोई पाकिस्तानी उर्दू मीडिया से सीखे. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पिछले दिनों तुर्की के अपने दौरे पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर पर बयान क्या दिया, पाकिस्तानी उर्दू मीडिया की तोपें फिर भारत की तरफ हो गईं.

नवाज शरीफ ने तुर्की की राजधानी अंकारा में कहा कि अमेरिका या पश्चिमी देशों की तरफ से आर्थिक कोरिडोर परियोजना का कोई विरोध नहीं हो रहा है, लेकिन कुछ क्षेत्रीय ताकतें इससे नाखुश हैं.


नवाज पर निशाना

दक्षिणपंथी अखबार ‘नवा ए वक्त’ को इस बात से दिक्कत है कि नवाज शरीफ ने क्षेत्रीय ताकतों की बात करते हुए भारत का नाम खुल कर क्यों नहीं लिया. अखबार लिखता है कि भारत की साजिशों से पूरी दुनिया आगाह है, लेकिन प्रधानमंत्री को उससे दोस्ती बढ़ाने की फिक्र हो रही है.

अखबार लिखता है कि इससे ज्यादा अफसोस की बात और क्या हो सकती है कि भारत हमारी सुरक्षा को कमजोर करने में जुटा है और चीन-पाकिस्तान कोरिडोर परियोजना को नाकाम बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ता, लेकिन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तुर्की में वहां के नेतृ्त्व से मुलाकातों में कह रहे हैं कि उन्हें पिछले चुनावों में जनादेश ही भारत से दोस्ती और व्यापार बढ़ाने के लिए मिला था.

अखबार की सख्त टिप्पणी है कि अगर प्रधानमंत्री शरीफ ने भारत के मामले में अपनी सोच नहीं बदली तो आने वाले चुनावों में जनता उनसे निपट लेगी.

‘जंग’ लिखता है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के नेतृत्व से होने वाली बातचीत में सीधे सीधे आर्थिक कोरिडोर परियोजना को लेकर अपनी आपत्तियों का इजहार करते रहे हैं और यह बात राज नहीं रही कि भारतीय खुफिया एजेंसियां इसे नाकाम बनाने की साजिशों में शामिल है.

अखबार तो यहां तक लिखता है कि पाकिस्तान में पिछले दिनों एक के बाद एक हुए आतंकवादी हमले भी इसी साजिश का हिस्सा है.

घाटे का सौदा

‘जंग’ की राय है कि भारतीय नेतृत्व आने वाली विश्व व्यवस्था के बारे में ठंडे दिमाग से सोचे तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि पाकिस्तान से दुश्मनी रखकर भारत को कोई फायदा होने वाला नहीं है, बल्कि यह सरासर घाटे का ही सौदा है.

उधर ‘औसाफ’ का संपादकीय है- भारत से व्यापार सरासर घाटे का सौदा. अखबार लिखता है कि पिछले दस साल में पाकिस्तान ने भारत से 18 अरब 26 करोड़ 30 लाख डॉलर की घटिया क्वालिटी की खादें, दवाएं और आम जरूरत की दूसरी चीजें खरीदीं जबकि इस दौरान भारत को सिर्फ तीन अरब 89 करोड़ और 89 लाख डॉलर का निर्यात किया गया.

अखबार प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कहता है कि वह चीन, रूस, तु्र्की और ईरान जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ाएं और भारत के साथ तिजारत कम की जाए. अखबार की राय है कि हर मुश्किल घड़ी में पाकिस्तान के साथ खड़े होने वाले देश ही व्यापार के लिहाज से उसकी प्राथमिकता होने चाहिए.

फौजी अदालतों पर कशमकश

रोजनानामा ‘एक्सप्रेस’ ने पाकिस्तान में सैन्य अदालतों की अवधि को बढ़ाने के मामले पर चल रही कशमकश को अपने संपादकीय का विषय बनाया है. अखबार कहता है कि संघीय सरकार और संसद में मौजूद पार्टियों के बीच अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है.

अखबार कहता है कि सैन्य अदालतों का गठन इसलिए हुआ था ताकि गिरफ्तार किए गए आतंकवादियों को जल्द से जल्द सजा दी जा सके, क्योंकि सिविल अदालतों के जजों को एक तरफ जहां धकमियां मिल रही थीं, वहीं उनके ऊपर दूसरे अदालती मुकदमों का बहुत ज्यादा बोझ है.

इन अदालतों को आगे भी बनाए रखने की पैरवी करते हुए अखबार लिखता है कि सभी पार्टियों को अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर इस बारे में तुरंत फैसला करना चाहिए.

‘मशरिक’ ने भी इस मुद्दे पर पाकिस्तानी नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए लिखा है कि देश में दहशतगर्दी की लहर फिर से मजबूत हो रही है और सियासी पार्टियां सैन्य अदालतों की अवधि में विस्तार के मसौदे पर मतभेदों का शिकार हैं.

अखबार की राय है कि जब तक देश में आतंकवाद से निपटने के लिए सख्त कानून नहीं बन जाते तब तक सैन्य अदालतों की अवधि बढ़ाई जाना चाहिए.

मांझे से मौतें

वहीं ‘जसारत’ ने रावलपिंडी में धारदार मांझे से दो लोगों का गला कटने से हुई मौत पर संपादकीय लिखा है- पतंगबाजी का जानलेवा शौक. अखबार लिखता है कि जिन दो लोगों की मौत हुई वह पतंगबाजी का हिस्सा भी नहीं थे.

अखबार के मुताबिक हर साल बसंत शुरू होने के मौके पर पगंतबाजी कई लोगों की जान ले लेती है जबकि कई लोग पतंग लूटते हुए या छतों से गिरकर जख्मी हो जाते हैं.

अखबार के मुताबिक इसीलिए बसंत मनाने पर लगाई गई रोक सही है क्योंकि है जिस खेल में जान जाने लगे, फिर वह खेल नहीं रहता.