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अमेरिका के भारत को तवज्जो देने पर भड़का पाक मीडिया

अमेरिका के दौरे में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ के दिए बयान के लिए पाकिस्तान के उर्दू अखबारों ने उनकी खिंचाई की है

Seema Tanwar

आजकल पाकिस्तान को जब भी मौका मिलता है तो वह अमेरिका और अफगानिस्तान से अपने रिश्ते बिगाड़ने की जिम्मेदारी भारत पर डालने से नहीं चूकता. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अपना अमेरिका दौरा भी लगभग इसी बात पर खर्च कर दिया. ऐसे में, पाकिस्तानी अखबारों ने भारत के खिलाफ इल्जामों की फिर झड़ी लगा दी है. लेकिन अपने अमेरिकी दौरे में ख्वाजा आसिफ कुछ ऐसा भी बोल गए, जिससे कुछ अखबारों ने यह सवाल भी किया है कि क्या वह वाकई पाकिस्तान के विदेश मंत्री हैं?

इस दौरे में ख्वाजा आसिफ ने खूब बयान दागे. कुछ बयानों पर चलिए पहले नजर डालते हैं: 'अमेरिका आतंकवादी ठिकानों की निशानदेही करे बमबारी हम करेंगे', 'पाकिस्तान पर अमेरिका ही नहीं बल्कि तालिबान भी कम भरोसा करने लगा है', 'अतीत में गलतियां हुई हैं लेकिन पाकिस्तान पर इल्जाम न लगाए जाएं' और 'अमेरिकी नीति में भारतीय भूमिका पर हमें एतराज है.'


पुरानी खुन्नस 

भारत के खिलाफ अपने जहरीले संपादकीयों के लिए मशहूर अखबार ‘औसाफ’ ने अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में आई तल्खी की वजह भारत को बताया है.

अखबार लिखता है कि 'पाकिस्तान और अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका की नई नीति के बारे में हमारी चिंता इसलिए भी उचित है क्योंकि अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान के पड़ोसी आतंकवादी देश को जो भूमिका सौंपी जा रही है, उससे अफगानिस्तान में और तबाही और बर्बादी होगी.'

पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ (फोटो: रॉयटर्स)

यह अखबार लिखता है कि भारत की अफगानिस्तान के साथ कोई सीमा नहीं मिलती है, फिर भी अफगानिस्तान में उसका बढ़ता हुआ प्रभाव और वहां 'भारतीय आतंकवादी सेंटर' चिंता का कारण हैं. औसाफ कहता है कि बलूचिस्तान में भारत की दखलंदाजी किसी से छिपी नहीं है. जबकि कुछ अमेरिकी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को लेकर गलतफहमियां पैदा कर इसे विवादित बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

एक्सप्रेस’ ने अमेरिका की अफगान नीति में भारत को मिली अहमियत पर लिखा है कि पाकिस्तान के खिलाफ पुरानी खुन्नस को निकालने का भारत के पास भला इससे अच्छा और क्या मौका हो सकता है.

अखबार लिखता है कि अगर अमेरिका को अफगानिस्तान के भविष्य की चिंता है तो पाकिस्तान भी इस क्षेत्र के हवाले से कई बार अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. अखबार की राय में, 'मोटे तौर पर हमें चिंता भारत से जुड़ी रणनीति को लेकर है. खास तौर से बलूचिस्तान को अस्थिर करने की भारत के कदमों पर चिंता है.'

अखबार ने भारत पर अस्थिरता फैलाने के आरोप मढ़ते हुए उसे ऐसा भेड़िया बताया है जो भेड़ों के झुंड का चरवाहा बनना चाहता है.

तालिबान पर असर खत्म

वहीं, ‘जसारत’ अखबार ने अमेरिका में ख्वाजा आसिफ के बयानों पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि पाकिस्तान को लंबे समय बाद तो एक विदेश मंत्री मिला और वह भी अपना ना रहा.

अखबार लिखता है कि कभी ख्वाजा आसिफ ने हाफिज सईद, जमात-उद-दावा और हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ बयान दिया था. लेकिन अब तो वह उससे भी आगे बढ़ गए और फरमाने लगे कि अमेरिका आंतकवादियों के खुफिया ठिकानों की निशानदेही करे बमबारी हम करेंगे.

अखबार के मुताबिक इससे पता चलता है कि आसिफ को अब भी यह गलतफहमी है कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ मिल कर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और खुशहाली के किसी मंसूबे पर काम कर सकता है.

पाकिस्तान अमेरिका की अफगानिस्तान नीति में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी से परेशान है

अखबार ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री के इस बयान पर भी एतराज जताया है कि वह अफगानों को पाकिस्तान-अफगान सीमा की साझा निगरानी की पेशकश भी कर चुके हैं.

अखबार लिखता है कि ख्वाजा आसिफ ने यह भी खुलासा किया कि तालिबान पर अब पाकिस्तान से ज्यादा असर रूस और क्षेत्र के दूसरे देशों का है. अखबार के मुताबिक अगर अफगानिस्तान में पाकिस्तान का कोई असर समझा भी जाता है, उसके खात्मे का बाकायदा एलान कर दिया गया है.

मतलब का यार

नवा-ए-वक्त’ लिखता है कि जब तक अमेरिका और अफगानिस्तान आतंकवाद के सिलसिले में पाकिस्तान को भारत की नजर से देखते रहेंगे, तब तक उनके लिए असल हकीकत तक पहुंचना मुश्किल होगा. वो यही कहते रहेंगे कि पाकिस्तान में आतंकवाद के ठिकाने हैं जो अफगानिस्तान में अफगान और अमेरिकी प्रतिष्ठानों पर हमले करते हैं.

वहीं ‘वक्त’ लिखता है कि यह बात सब जानते हैं कि अमेरिका किसी का दोस्त नहीं है. वो हर जगह सिर्फ अपना फायदा देखता है. 9/11 के बाद उसकी कथनी और करनी से यह बात किसी से छिपी नहीं है.

अखबार लिखता है कि अब राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताओं से कोई समझौता न करने का पाकिस्तान का संकल्प तारीफ के काबिल है. अखबार की राय में पाकिस्तान को एशिया में बेशक अपने संपर्क बेहतर करने होंगे, लेकिन पाकिस्तान इस समय जिन हालात से गुजर रहा है, उसे अपनी विदेश नीति ऐसी बनानी चाहिए कि वह अमेरिकी दबाव को बर्दाश्त न करे. साथ ही उसकी दुश्मनी से भी बच जाए.