view all

पाकिस्तान डायरी: पाक PM इमरान खान नहीं, अब 'यू-टर्न खान' कहिए

इमरान खान के मुताबिक किसी भी देश का असली नेता वही होता है जो हालात और जरूरतों के मुताबिक हमेशा यू-टर्न लेता हो और अपनी रणनीति को बदलता हो

Seema Tanwar

क्रिकेट की पिच के पक्के खिलाड़ी इमरान खान क्या सियासत में अनाड़ी साबित हो रहे हैं? आजकल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के रंग-ढंग देखकर हर कोई यही सवाल पूछ रहा है. सत्ता में आने के बाद वो अपने कई वादों पर यू-टर्न तो पहले ले ही चुके हैं, अब उसे जायज भी करार दे रहे हैं. इमरान खान का तो यहां तक कहना है कि जो नेता यू-टर्न ना ले, वो असल में नेता नहीं, बल्कि बेवकूफ होता है. पाकिस्तान का उर्दू मीडिया पूछ रहा है कि क्या इमरान खान उन सब लोकलुभावन वादों पर यू-टर्न लेने की जमीन तैयार कर रहे हैं जिनका झुनझुना जनता को थमा कर उन्होंने वोट हासिल किए थे.

बात विदेशों से कर्ज लेने की हो या फिर महंगाई को काबू करने की, प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने हाल के दिनों में कई मुद्दों पर यू-टर्न लिया है. इसे लेकर चौतरफा आलोचनाओं में घिरे इमरान खान ने ऐसा पलटवार किया कि सेल्फ गोल कर डाला. कुछ अखबार इमरान खान के बयान को नैतिकता का दिवालियापन तक रह रहे हैं.


सबसे बड़ा गुनाह

रोजनामा दुनिया लिखता है कि इमरान खान ने यूटर्न को लेकर अपनी सफाई में जर्मन तानाशाह हिटलर और फ्रांसीसी जनरल नेपोलियन की मिसालें देते हुए कहा कि जिस भी नेता ने वक्त के मुताबिक अपनी रणनीति नहीं बदली, उसे शिकस्त मिली.

इस पर अखबार की टिप्पणी है कि अगर इमरान खान की सरकार जनता को सस्ते घर देने और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के वादे से पीछे हटती है तो इसे जनता सरकार की रणनीति में बदलाव नहीं, बल्कि सरकार की कमजोरी और वादा खिलाफी ही कहेगी.

अखबार की राय में, उसूलों और फैसलों पर कायम रहना एक खूबी है और उच्च पदों पर बैठे लोगों के लिए नियाहत जरूरी है कि वो अपनी बात कहते हुए सही शब्दों का चुनाव करें. अखबार ने अपने संपादकीय को ग्रीक दार्शनिक सुकरात के इन शब्दों पर खत्म किया है, 'शब्दों का गलत चुनाव सबसे बड़ा गुनाह है.'

आम चुनाव जीतने के बाद इमरान खान इसी साल अगस्त में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे

जसारत ने लिखा है कि इमरान खान ने यह बात तो साफ कर दी है कि उनकी किसी बात, किसी वादे और किसी दावे पर ऐतराब (भरोसा) नहीं किया जाए, क्योंकि पता नहीं, वो कब खुद को अक्लमंद साबित करने बैठ जाएं.

अखबार के मुताबिक इमरान खान ने कहा कि मूर्ख आदमी अपनी बात पर डट जाता है और जाहिर है कि वो तो मू्र्ख हैं नहीं. अखबार लिखता है कि सर्वोच्च पदों पर बैठे लोग यू-टर्न नहीं लेते बल्कि कोई फैसला करने से पहले उस पर सोच-विचार करते हैं, मशविरा करते हैं और हर पहलू पर गौर करने के बाद एलान करते हैं और फिर उस पर डट जाते हैं.

अखबार की राय में अभी सरकार ने ठीक से चलना भी शुरु नहीं किया है और वह अभी से राह चलते हुए पल्टी मारने की बात कर रही है.

यू-टर्न या झूठ

रोजनामा खबरें का संपादकीय है: प्रधानमंत्री जनता को यू-टर्न और झूठ में फर्क बताएं. अखबार लिखता है कि कप्तान जी ने सत्ता संभाली तो बयानों और जनता के लिए राहतों की भरमार कर दी, जिनमें 100 दिन के भीतर देश में बदलाव का संकेत दिया, बांधों को बनाने का वादा किया, 50 लाख घर और एक करोड़ नौकरियों का सपना दिखाया गया.

अखबार के मुताबिक, बाद में पता चला कि 50 लाख घर एक साल में नहीं बल्कि 5 साल बनेंगे और एक करोड़ नौकरियां सौ दिन या एक साल में नहीं बल्कि 5 साल में ही मिलेंगी. अखबार कहता है कि सऊदी अरब और चीन के दौरों से प्रधानमंत्री की वापसी हुई, टीवी पर जनता ने भी देखा कि बड़ी मदद मिल रही है. लेकिन यह किसे पता है कि पाकिस्तान स्टेट बैंक में असल में कितनी रकम किसने जमा कराई है.

अखबार कहता है कि क्रिकेट के मैदान में विरोधी टीम का खेल देखकर रणनीति बदलने की तरकीब आपको जीत दिला सकती है, लेकिन देश के सामने नीतियों और योजनाओं पर यू-टर्न लेने की रणनीति भोली-भाली जनता को समझ नहीं आएगी, इसलिए प्रधानमंत्री इमरान खान को उन्हें समझना होगा कि यू-टर्न और झूठ में क्या फर्क है.

औसाफ लिखता है कि इमरान खान ने सत्ता में आने के बाद एक साथ कई मोर्चे खोल लिए हैं और वो दो कश्तियों में सवार नजर आते हैं. अखबार की नसीहत है कि भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है और इमरान खान को भ्रष्टाचार के खिलाफ खोले गए मोर्चे पर ही पूरा ध्यान देना चाहिए. अखबार कहता है कि विपक्ष उनके हर कदम पर गहरी नजर रखे हुए है और सरकार की आलोचना करने का कोई मौका वो नहीं छोड़ेगा.

अखबार कहता है कि स्विस बैंकों में रखी गई लूट मार की कमाई हो या बड़े मगरमच्छों की तरफ से देश की लूटी गई अरबों की रकम हो, उसे वापस लाने में सरकार को अभी तक कोई खास कामयाबी नहीं मिली है.

पाकिस्तानी अवाम प्रधानमंत्री इमरान खान के यूटर्न नीतियों से नाराज दिख रही है (फोटो: रॉयटर्स)

बदलाव का मतलब

उम्मत लिखता है कि अपनी बातों और वादों से मुकर जाना तो पाकिस्तान के ज्यादातर राजनेताओं के लिए आम बात रही है, लेकिन इमरान खान ने इस बात को जिस तरह एक कामयाब नेता की निशानी बताया दिया है, उसके बाद नैतिकता का क्या स्तर रह जाएगा.

अखबार लिखता है कि आम तौर पर अपनी बात से मुकर जाने के ऐब समझा जाता है, लेकिन इमरान खान के मुताबिक किसी देश का असली नेता वही होता है जो हालात और जरूरतों के मुताबिक हमेशा यू-टर्न लेता हो और अपनी रणनीति को बदलता हो.

अखबार की टिप्पणी है कि इमरान खान इतने वर्षों से जिस तब्दीली का नारा लगा रहे थे, अब जनता को उसका मतलब समझ आ गया है और अगले 5 साल लोग बड़ी हैरत से देखते रहेंगे कि इस रणनीति के क्या-क्या नतीजे सामने आते हैं.