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कुलभूषण जाधवा मामला: पस्त पाक मीडिया जस्टिस काटजू के बयान से जोश में

ऐसा लग रहा है कि पाक मीडिया को अब जस्टिस काटजू के इस बयान का ही सहारा है.

Seema Tanwar

पाकिस्तान कुलभूषण जाधव के मामले पर पिछले दिनों आईसीजे में मिली शुरुआती शिकस्त से उबर रहा है. पाकिस्तानी सरकार अपनी जनता को यह कह कर दिलासा दिलाने में जुटी है कि पाकिस्तान के पास मजबूत सबूत हैं और इसीलिए आखिरकार फैसला उसी के हक में आएगा.

दूसरी तरफ, ये आवाजें भी जोर पकड़ रही हैं कि जिस तरह भारत कुलभूषण जाधव के मामले को अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में ले गया है, उसी तरह पाकिस्तान को भी कश्मीर मसले के साथ इस अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए.


इन आवाजों को पिछले दिनों भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कण्डेय काटजू के बयान से खासा बल मिला है जिन्होंने जाधव के मामले पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के भारत सरकार के फैसले पर सवाल उठाया था. इस बयान का जिस तरह पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में जिक्र हो रहा है, उसे देखकर लगता है कि डूबते को तिनके का सहारा मिल गया है. यही वजह है कि कई दिनों से पाकिस्तानी अखबारों के जिन संपादकीय पन्नों पर मायूसी पसरी थी, उनके तेवर यकायक तीखे हो गए हैं.

नीदरलैंड में पाकिस्तान के राजदूत मो. आज़म ख़ान मीडिया से बात करते हुए (फोटो: पीटीआई)

कोई रुकावट नहीं

कराची समेत पाकिस्तान के कई बड़े शहरों से छपने वाले प्रतिष्ठित अखबार ‘जंग’ ने इस मुद्दे पर संपादकीय लिखा- अंतरराष्ट्रीय अदालत, कुलभूषण और कश्मीर.

अखबार लिखता है कि खुद भारत में भी अब ये अहसास उभर रहा है कि कुलभूषण मामला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाकर मोदी सरकार ने भारी गलती है. अखबार के मुताबिक भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज काटजू ने इस फैसले को भारत के लिए सख्त नुकसानेदह करार देते हुए कहा कि इसके बाद पाकिस्तान के लिए कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में ले जाने के रास्ते में कोई रुकावट नहीं रही.

अखबार ने काटजू के हवाले से लिखा है कि खुद भारत अपने इस रुख पर कायम नहीं रहा कि दोनों देशों के सभी मतभेद आपसी बातचीत के जरिए हल होने चाहिए और किसी तीसरे पक्ष को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

‘जंग’ कहता है कि भारत के एक नामी कानूनविद् की इस राय पर पाकिस्तानी नेतृत्व को यकीनन ध्यान देना चाहिए.

अखबार लिखता है कि अगर जस्टिस काटजू का रुख सही है तो पाकिस्तान की तरफ से कश्मीरियों के हक की लड़ाई को जल्द से जल्द संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में पूरी तैयारी के साथ उठाना चाहिए ताकि कश्मीरी लोग 'भारत के मानवता विरोधी जुल्मों और गुलामी से निजात' पा सकें.

बेहतरीन मौका

वहीं ‘नवा ए वक्त’ लिखता है कि काटजू के बयान पर भारतीय नेतृत्व की सांस फूली हुई है.

अखबार कहता है कि भारत ने खुद अब ऐसी फोरम मुहैया करा दी है जिसे वह मध्यस्थ मानता है. तीखे अंदाज में अपनी राय रखते हुए अखबार लिखता है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत को कश्मीरियों पर भारत के जुल्मों से आगाह किया जाए, मानवाधिकारों के उल्लंघनों की जानकारी दी जाए जिन्हें संयुक्त राष्ट्र और अन्य विश्व एजेंसियां भी मानती हैं.

पाकिस्तान में आतंकवादियों से भारत के कथित संपर्कों और बलूचिस्तान में अलगावावादियों को कथित मदद का आरोप लगाते हुए अखबार लिखता है कि एक एक बात अंतरराष्ट्रीय अदालत के सामने रखी जाए. संपादकीय के आखिर में अखबार कहता है कि अगर भारत इस अदालत से भी भाग गया तो उसका घिनौना चेहरा विश्व समुदाय के सामने बेनकाब किया जाए.

उधर रोजनामा ‘पाकिस्तान’ के संपादकीय का शीर्षक ही यही है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत के सामने कश्मीर का मसला उठाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा.

अखबार ने पाकिस्तानी राजनेताओं को आड़े हाथ लेते हुए लिखा है कि इधर उधर की और बेसिर पैर की बातें तो खूब हुईं, लेकिन इस केस के अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाने से पाकिस्तान को जो बेहतरीन मौका हाथ लगा है, उस पर बात नहीं हो रही और न ही किसी का ध्यान गया.

अखबार के मुताबिक इसकी निशानदेही किसी और ने नहीं, बल्कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने की है. अखबार ने जस्टिस काटजू की इस बात को तवज्जो दी है कि कुलभूषण की फांसी पर रोक के फैसले से खुश होने की जरूरत नहीं है और इस बारे में पाकिस्तानी अदालत का दरवाजा ही खटखटाना होगा.

निशाने पर सरकार

दूसरी तरफ, धुर दक्षिणपंथी अखबार ‘उम्मत’ पाकिस्तान की सरकार को राजनयिक मोर्च पर नाकाम बताता है.

अखबार कहता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और घरेलू हितों के खिलाफ भारत की सरगर्मियों को पाकिस्तान ने आज तक राजनयिक मोर्च पर प्रभावी तरीके से नहीं उठाया है, जिसकी वजह से भारत की कट्टरपंथी सरकार के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं और वह कुलभूषण के मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत तक ले गई.

अखबार के मुताबिक देश को तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालिक विदेश नीति की जरूरत है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जब चार साल में तैयार नहीं हुए तो फिर बाकी बचे आठ दस महीने के कार्यकाल में भला क्या कर सकते हैं.

इस बीच, रोजनामा ‘वक्त’ ने पाकिस्तानी गृह मंत्री चौधरी निसार अली के इस बयान को प्रमुखता दी है कि कुलभूषण पर कोई भी भ्रम में न रहे, कुलभूषण को अंजाम तक पहुंचाएंगे.

अखबार लिखता है कि जरूरत इस बात की है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत में पाकिस्तान पूरी तैयारी के साथ मुकदमा लड़े और कुलभूषण जाधव की सारी सरगर्मियां सामने लाई जाएं ताकि उसे मिली सजा पर अमल हो सके और उसे उसके अंजाम तक पहुंचाया जा सके.