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पाक मीडिया: पाकिस्तान को बस चीन और एटम बमों का सहारा

पाक मीडिया का कहना है कि अफगानिस्तान और ईरान भारत की तरह 'आतंकवाद' की रणनीति अपना रहे हैं.

Seema Tanwar

भारत के अलावा अफगानिस्तान और ईरान से भी बिगड़ते रिश्तों की चिंता अब पाकिस्तान को सताने लगी है. पाकिस्तानी उर्दू अखबार प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की विदेश नीति पर सवाल उठाते हैं. वहीं कुछ इसके लिए भारत और अमेरिका के गठजोड़ को जिम्मेदार बताते हैं.

रोजनामा ‘औसाफ’ लिखता है कि अमेरिकी कांग्रेस के एक सदस्य ने जहां ट्रंप प्रशासन से पाकिस्तान के अंदर घुसकर कार्रवाई करने की मांग की है, वहीं ईरान ने भारतीय अंदाज में पाकिस्तान सीमा पर मोर्टार हमला किया.


अखबार का कहना है कि पाकिस्तान चारों तरफ से दुश्मनों से घिर रहा है और पड़ोसी शराफत पर आधारित उसकी नीति को उसकी कमजोरी और बुजदिली समझ रहे हैं.

नवाज शरीफ सरकार पर निशाना साधते हुए अखबार लिखता है, 'हमारे राजनीति नेतृत्व को कोई परेशानी नहीं है और आए दिन होने वाले इन देशों के हमलों को एक सामान्य कार्रवाई मानकर नजरअंदाज किया जा रहा है.'

अखबार की टिप्पणी है कि भारत ने नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के खिलाफ बाकायदा तौर पर जंग छेड़ रखी है और घोषित तौर पर पाकिस्तान में दखंलदाजी कर रहा है, जिसका खुलासा उसके जासूस कुलभूषण जाधव ने भी किया है. अफगानिस्तान के बारे में अखबार का कहना है कि वह भी भारत की गोद में बैठ पाकिस्तान पर हमलावर हो रहा है.

एटमी हथियारों की धौंस

‘जरासत’ लिखता है कि अमेरिकी सरपरस्ती में भारत अफगानिस्तान में पंजे जमा रहा है.

अखबार कहता है कि अफगान शासक गाहे बगाहे पाकिस्तान से नाराजगी का इजहार करते रहते हैं और अब ईरान भी पाकिस्तान से शिकवे करना लगा. ऐसे में, अखबार पाकिस्तान का इकलौता सहारा चीन और उसकी 50 अरब डॉलर से भी ज्यादा की चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना को बताता है.

अखबार लिखता है कि भारत में चाहे कितने भी आक्रामक तेवरों वाले हुकमरान हों, लेकिन पाकिस्तान के एटमी प्रोग्राम और एटमी हथियारों की धाक उन पर हमेशा रहती है. अखबार की राय है कि भारत अंतरराष्ट्रीय राजनीजि और क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करना चाहता है जिससे पाकिस्तान की सरकार को होशियार रहने की जरूरत है.

अखबार ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ में हवा भरने की कोशिश भी की है. वह लिखता है कि आज से 19 साल पहले प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर परमाणु परीक्षण करने के लिए भी दबाव था और ना करने के लिए भी, लेकिन उन्होंने जो फैसला किया वह दुनिया के सामने है.

अखबार की राय है कि आज भी उन पर भारत से दोस्ती करने और ना करने का दबाव है, इसलिए एक बार फिर उन्हें उसी तरह फैसला करना चाहिए, जैसा 19 साल पहले किया था और पाकिस्तानी लोग दुनिया में सिर उठा कर चल सके.

पाकिस्तान का ‘अपमान’

उधर, पाकिस्तान में अब भी इस बात को लेकर चर्चा गर्म है कि क्या सऊदी अरब में हुए हालिया सम्मेलन में नवाज शरीफ को बोलने का मौका ना देने से क्या पाकिस्तान का अपमान हुआ है.

‘नवा ए वक्त’ ने इस मुद्दे पर लिखे अपने संपादकीय में पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की सफाई को जगह देते हुए लिखा है कि सिर्फ नवाज शरीफ ही नहीं बल्कि 30 देशों के नेताओं को बोलने का मौका नहीं मिला और समय की किल्लत के चलते ऐसा हुआ जिसके लिए सऊदी शाह ने इन देशों के नेताओं से खेद भी जताया है.

लेकिन अखबार सवाल करता है कि मिस्र, मलेशिया और इंडोनेशिया के नेताओं को जब भाषण देने का मौका मिल गया तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को संबोधन का मौका ना देने की वजह समझ से बाहर है. अखबार कहता है कि आंतकवाद के मुद्दे पर होने वाले सम्मेलन में पाकिस्तान से बेहतर भला किसकी नुमाइंदगी हो सकती है, जिसने आतंकवाद के खिलाफ जंग में न सिर्फ अहम योगदान दिया है बल्कि सबसे ज्यादा कुरबानियां भी हैं.

अखबार को यह बात भी चुभी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के भाषण में भारत को आतंकवाद के शिकार देशों में से एक बताया है. अखबार की टिप्पणी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने आतंकवाद से प्रभावित देशों का जिक्र करते हुए पाकिस्तान का नाम लेना भी जरूरी नहीं समझा और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की मौजदूगी में भारत को आतंकवाद से पीड़ित देश बताया जबकि भारत ही पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है.

शरीफ सरकार का आखिरी बजट

उधर नवाज शरीफ सरकार का साल 2017-18 का बजट भी अखबारों में छाया हुआ है. रोजनामा ‘जंग’ लिखता है कि केंद्रीय वित्र मंत्री इस्हास डार ने 1480 अरब रुपए के घाटे वाला 47.53 खरब रुपए का बजट पेश किया जिसे स्वतंत्र विश्लेषकों ने विकास और लोकलुभावन वादों के बीच संतुलन साधने की अच्छी कोशिश बताया है.

अखबार के मुताबिक बजट में विकास कार्यों के लिए रिकॉर्ड 1001 अरब रुपए रखे गए हैं जबकि रक्षा क्षेत्र पर 920 अरब रुपए खर्च होंगे. इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों के वेतन 10 फीसदी का इजाफा भी किया गया है.

अखबार लिखता है कि नए बजट से देश की अर्थव्यवस्था में और स्थिरता आएगी और जो आर्थिक लक्ष्य पिछले सालों में हासिल नहीं किए गए वे अगले साल हासिल कर लिए जाएंगे.

वहीं ‘उम्मत’ ने बजट को निशाना बनाते हुए लिखा है कि आंकड़ों के हेरफेर के सिवाय इसमें कोई नई बात नहीं है. अखबार की राय में आम चुनावों से पहले यह नवाज शरीफ सरकार का आखिरी बजट था, इसलिए उम्मीद थी कि लोगों को कुछ राहत दी जाएगी, लेकिन हालिया बजट से साफ है कि सरकार को ना चुनावों की कोई फिक्र नहीं है और न ही जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की कोई चिंता.