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पाक डायरी: फिर गूंजीं भारत को करारा जवाब देने की आवाजें

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव तो महीनों से चल रहा है लेकिन पाकिस्तानी अखबारों को पढ़ें तो लगता है कि बस जंग छिड़ने ही वाली है

Seema Tanwar

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव तो महीनों से चल रहा है लेकिन पाकिस्तानी अखबारों को पढ़ें तो लगता है कि बस जंग छिड़ने ही वाली है. सेना या सरकार से ज्यादा तल्खी अखबारों के संपादकीयों में नजर आती है. कोई खास मुद्दा न हो, तो भी अखबार भारत के खिलाफ नियंत्रण रेखा पर बिना उकसावे के गोलाबारी करना, कश्मीर में जुल्मो सितम ढाने और अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान में आतंकवाद फैलाने के घिसे पिटे आरोपों की धार को पैना करते रहते हैं.

लेकिन इन दिनों दो वजहों से भारत के खिलाफ पाकिस्तानी अखबारों के पन्ने रंगे जा रहे हैं. पहली- पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक जिसमें किसी भी विदेशी आक्रमण की स्थिति में करारा जवाब देने की बात कही गई है. दूसरा- भारत पर फिर नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी करने का आरोप लगाया गया है, जिसमें एक पाकिस्तानी सैनिक और दो आम लोगों को मिलाकर तीन लोग मारे गये हैं, जबकि तीन फौजियों समेत चार लोग घायल हो गये हैं.


भारत पर बरसे पाकिस्तान के अखबार

रोजनामा 'दुनिया' लिखता है कि भारतीय सेना की तरफ से नियंत्रण रेखा और संघर्षविराम के उल्लंघन का सिलसिला खिंचता ही चला जा रहा है. अखबार के मुताबिक पाकिस्तान की तरफ से विरोध जताने का भी भारत पर कोई असर नहीं होता क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने इस बेहद संवेदनशील मामले के अलावा कश्मीर के चिंताजनक हालात पर भी आंखें मूंद रखी हैं.

अखबार लिखता है कि भारत पर अगर अंतरराष्ट्रीय दबाव डाला जाए तो कोई वजह नहीं कि वह नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करना बंद ना करे और कश्मीर समेत तमाम मसलों के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत की मेज पर न आकर बैठे.

रोजनामा 'पाकिस्तान' लिखता है कि पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व ने एक बार फिर देश की सुरक्षा का संकल्प लेते हुए साफ किया है कि किसी भी विदेशी आक्रमकता का भरपूर और दो टूक अंदाज में जबाव दिया जाएगा. अखबार ने यह बात प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी के नेतृत्व में हुई राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक का हवाला देते हुए लिखी है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी

अखबार लिखता है कि जब-जब कश्मीर में अलगाववादियों की गतिविधियां तेज होती हैं तो नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की आक्रामक गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं, जिसका मकसद यही नजर आता है कि दुनिया का ध्यान कश्मीर के हालात से हटाया जा सके.

साथ ही, अखबार लिखता है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में भारत को जो नई भूमिका देने का ऐलान किया है, उसे भी पाकिस्तान ने खारिज किया है क्योंकि भारत पहले ही अफगानिस्तान की सरजमीन को आतंकवाद के लिए इस्तेमाल कर रहा है और उसकी ट्रेनिंग में तैयार होने वाले आतंकवादी पाकिस्तान में आकर आतंकवादी कार्रवाई कर रहे हैं और यही वजह है कि पाकिस्तान को बॉर्डर मैनेजमेंट बेहतर बनाने के लिए कदम उठाने पड़े हैं.

रोजनामा 'औसाफ' लिखता है कि भारतीय फौज को वाकई सबक सिखाने के लिए और दिलेर कदम उठाने होंगे ताकि आक्रामकता दिखाने वाली इस फौज को दुम दबाकर भागने के लिए मजबूर होना पड़े. अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों पर अखबार की राय है कि अगर अमेरिका, पाकिस्तान के साथ बराबरी के आधार पर दोस्ताना रिश्ते नहीं रखता है तो उसे यह बात समझा देनी चाहिए कि अब उसकी एक फोन कॉल पर ढेर होने वाला कोई शख्स पाकिस्तान में नहीं मिलेगा और उसकी धमकियों पर भी कोई ध्यान नहीं देगा. यह अखबार भी अफगानिस्तान में कथित भारतीय दखल को खत्म करने की पैरवी करता है.

मुसलमान होने की सजा?

दूसरी तरफ रोहिंग्या मुसमलानों की हमदर्दी में भी पाकिस्तानी उर्दू अखबारों में लगातार संपादकीय लिखे जा रहा हैं. रोजनामा 'इंसाफ' लिखता है कि रोहिंग्या मुसलमान होने के जुर्म में मारे जा रहे हैं, औरतों की इज्जत लूटी जा रही है और बेबस मुस्लिम जगत सिर्फ दुआएं कर रहा है.

अखबार लिखता है कि पाकिस्तान का गहरा दोस्त चीन और रूस भी म्यांमार की सरकार की हौसलाअफजाई कर रहे हैं. अखबार लिखता है कि अगर ऐसा दुनिया के किसी गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ हो रहा होता तो दुनिया का ‘जमीर’ जाग चुका होता.

शरणार्थी शिविरों में रोहिंग्या मुसलमान

इसी मुद्दे पर 'एक्सप्रेस' के संपादकीय का शीर्षक है - जाएं तो जाएं कहां. अखबार के मुताबिक म्यांमार में सरकार की सरपरस्ती में हो रहे अत्याचारों की वजह से जान बचाकर भागने को मजबूर रोहिंग्या मुसलमानों की एक नाव बंगाल की खाड़ी में डूब गई, जिससे मरने वालों की संख्या बढ़कर 60 हो गई है.

अखबार लिखता है कि महिला और बच्चों समेत इस कश्ती में 80 लोग सवार थे लेकिन वह तट से थोड़ी ही दूरी पर किसी ऊभरी हुई चीज से टकराकर पलट गई. अखबार के मुताबिक आठ साल में पहली बार म्यांमार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हुई, लेकिन पांचों स्थायी सदस्यों के बीच इस पर मतभेद खुल कर सामने आ गए. रूस और चीन ने जहां म्यांमार की सरकार का समर्थन किया वहीं अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने रोहिंग्या मुसलमानों की नस्लकशी रोकने की मांग की है.

अखबार कहता है कि अमेरिका और पश्चिमी देश इस मु्ददे पर आगे क्या करते हैं ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन अच्छी बात यह है कि म्यांमार की सरकार पर अब दबाव बढ़ रहा है और रोहिंग्या मुसलमानों पर उसे अत्याचार बंद करने होंगे.