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करतारपुर कॉरिडोर: सिखों को खुश करने के लिए मोदी ने खोला बॉर्डर- पाक मीडिया

कई पाकिस्तानी अखबार कह रहे हैं कि भारत में अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले सिखों को अपनी तरफ रिझाने के लिए मोदी सरकार करतारपुर बॉर्डर खोलने को राजी हुई है

Seema Tanwar

पाकिस्तान के उर्दू मीडिया में इन दिनों करतारपुर बॉर्डर को खोलने पर बनी रजामंदी की ही चर्चा है जिसके कारण लंबे समय से भारत और पाकिस्तान के ठंडे पड़े रिश्तों में कुछ हलचल दिखी है. दोनों देश एक ऐसा कोरिडोर बनाएंगे जिससे भारतीय सिख श्रद्धालुओं के लिए पाकिस्तान में मौजूद करतारपुर गुरुद्वारे तक पहुंचना आसान होगा. करतारपुर साहेब को सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की कर्मस्थली कहा जाता. यहां उन्होंने अपने जीवन के 18 साल गुजारे थे.

भारत और पाकिस्तान के बीच कोरिडोर बनाने का यह ऐलान दोतरफा रिश्तों में एक ठंडी हवा का झोंका है, लेकिन पाकिस्तानी अखबार इस मौके पर भी भारत को खरी-खोटी सुनाने से नहीं चूक रहे हैं और पाकिस्तान को 'अमन का मसीहा' करार देने पर तुले हैं. कई पाकिस्तानी अखबार कह रहे हैं कि भारत में अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले सिखों को अपनी तरफ रिझाने के लिए मोदी सरकार बॉर्डर खोलने को राजी हुई है.


घटेगा तनाव

रोजनामा खबरें लिखता है कि जब भी मौका मिला तो पाकिस्तान ने यही कोशिश की है कि क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए भारत बातचीत की मेज पर आए और दोनों देशों के बीच छोटे से छोटे विवाद को खत्म किया जाए जिनकी बुनियाद पर भारत की सरकार ने बातचीत के रास्ते ना सिर्फ सीमित, बल्कि बंद ही कर दिए.

अब अखबार ने नया कोरिडोर बनाने पर दोनों देशों के बीच बनी सहमति का स्वागत किया है और लिखा है कि इससे उन भारतीय सिख तीर्थयात्रियों को बहुत आसानी होगी जिन्हें अपने तीर्थस्थलों पर जाने के लिए वाघा बॉर्डर के रास्ते लाहौर और सियालकोट से होकर आना पड़ता है.

इस मुद्दे पर अखबार जहां पाकिस्तान की तारीफ करते नहीं थक रहा है, वहीं भारत की सहमति को राजनीति से जोड़ रहा है. अखबार की राय में, हो सकता है कि नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों ने सिख बिरादरी को खुश करने के लिए यह कदम उठाया हो, लेकिन फिर भी इस कदम से दोनों देशों के बीच तनाव में कमी आएगी.

रोजानामा दुनिया लिखता है कि इस कोरिडोर से सीमा के आरपार सफर में सहूलियत होगी. अखबार के मुताबिक इससे सिर्फ भारतीय सिख तीर्थयात्री ही पाकिस्तान नहीं आएंगे, बल्कि भारत जाने की इच्छा रखने वाले पाकिस्तानियों को भी इसका फायदा मिलेगा. अखबार उम्मीद करता है कि कुछ और ऐसे मुकाम तलाशे जाएंगे जिनसे दोनों देशों के नागरिकों को एक दूसरे से मिलने का मौका मिले. हालांकि इसके साथ ही अखबार ने कश्मीर का राग भी अलापा है और लिखा है कि दोतरफा तनाव को तभी कम किया जा सकेगा जब कश्मीर के लोगों पर 'जुल्म और अत्याचार' बंद हों और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भी हालात बेहतर बनाए जाएं.

नवजोत सिंह सिद्धू की कोशिशें?

रोजनामा पाकिस्तान लिखता है कि बॉर्डर खोलने का प्रस्ताव उस वक्त सुर्खियां में आया जब प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने पाकिस्तान आए भारत के पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की मौजूदगी में सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने इसका एलान किया था.

अखबार का दावा है कि इसी बात से खुश होकर सिद्धू ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ को गले से लगा लिया था, जिसे भारत में पसंद नहीं किया गया था और उनके बारे में तरह-तरह की बातें की गईं.

इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में नवजोत सिंह सिद्धू के पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से गले मिलने पर काफी विवाद हुआ था

अखबार की राय है कि सिद्धू के खिलाफ हुए बवाल को देखकर लगता नहीं था कि इस प्रस्ताव पर अमल होगा, लेकिन शायद 3 महीने के सोच विचार के बाद भारतीय सरकार इस नतीजे पर पहुंची है कि इस कदम के जरिए वो सिख समुदाय की हमदर्दी हासिल कर सकती है.

अखबार कहता है कि भारत की तरफ से प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने फिर भारत को बातचीत की दावत दी है.

रोजनामा औसाफ भी मोदी सरकार के इस फैसले को होने वाले अगले आम चुनावों से जोड़ता है. लेकिन उसके संपादकीय को पढ़ कर साफ पता चलता है कि इसके संपादकों को भारतीय पंजाब की सियासत के बारे में कोई जानकारी नहीं है. करतारपुर बॉर्डर खोलने के मोदी सरकार के फैसले के पीछे इस अखबार का कुतर्क देखिए: 'भारत को सिखों के खालिस्तान आंदोलन का सामना करना पड़ रहा है और भारतीय पंजाब उसके हाथ से निकलता जा रहा है. इसीलिए वो ऐसा फैसला करने को मजबूर हुआ है.' इस कट्टरपंथी अखबार का कहना है कि भारत हर साल अमजेर शरीफ जाने वाले 'पाकिस्तानियों को तंग' करता है जबकि पाकिस्तान अपने यहां आने वाले हिंदू तीर्थ यात्रियों को भी पूरी सुरक्षा मुहैया कराता है.

अच्छा शगुन

दूसरी तरफ, रोजनामा जंग लिखता है कि भारत सरकार की तरफ से करतारपुर बॉर्डर को खोलने पर सहमति और इसके लिए पाकिस्तान को धन्यवाद देना इस क्षेत्र के लिए एक अच्छा शगुन है.

अखबार के मुताबिक पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि वो कॉरिडोर बनाकर भारत को अगले साल गुरु नानक देव के 550वें जन्मदिन का तोहफा देना चाहते हैं. अखबार की राय में, कौन नहीं जानता कि दोनों देशों में आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन की एक वजह दोतरफा तनाव है जिसकी वजह से करोड़ों लोग तंगहाल में जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

सिख समाज गुरु नानक देव जी की कर्मस्थली करतारपुर को काफी पवित्र मानता है

अखबार कहता है कि पाकिस्तान हमेशा से बातचीत का समर्थक रहा है और अब भारत की तरफ से सकारात्मक जवाब आना एक स्वागतयोग्य कदम है.

अखबार की टिप्पणी है कि हमें अपने क्षेत्र में शांति, तरक्की और खुशहाली चाहिए तो अतीत की तल्खियों को भूल कर बातचीत और मेल-मिलाप की तरफ आना होगा और उम्मीद करनी चाहिए कि करतारपुर बॉर्डर दोनों देशों के लिए शांति का कोरिडोर साबित होगा.