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पाकिस्तान डायरी: इमरान की अमेरिका को दो टूक, कहा- 'किराए की बंदूक' नहीं बनेंगे

यह बात समझ से परे है कि आर्थिक मदद के लिए दुनिया के आगे हाथ फैलाने को मजबूर पाकिस्तान कैसे अपने प्रधानमंत्री के एक बयान से खुद्दार बन सकता है. इमरान खान के दिए बयान का मकसद अपनी गिरती लोकप्रियता को बचाए रखने के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता

Seema Tanwar

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान धीरे-धीरे सीख रहे हैं कि अपने देश की जनता और मीडिया को कैसे खुश करना है. अगस्त में सत्ता में आने के बाद से जो इमरान खान आर्थिक संकट और बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर लगातार घिरे हुए थे, वो आजकल अमेरिका के खिलाफ सिर्फ एक बयान देकर समूचे पाकिस्तानी उर्दू मीडिया की वाहवाही बटोर रहे हैं.

एक इंटरव्यू में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा है कि वो 'अमेरिका से ऐसे संबंधों के लिए हरगिज तैयार नहीं हैं जिनमें पाकिस्तान की हैसियत किराए के सिपाही या किराए की बंदूक की हो. अब वो वही करेंगे जो पाकिस्तान के हित में होगा.' ऐसे बयानों से पाकिस्तान को फायदा तो क्या होगा, बल्कि नुकसान ही उठाना पड़ सकता है. लेकिन पाकिस्तानी उर्दू मीडिया बस इस बात पर खुश है कि उनके प्रधानमंत्री ने अमेरिका को दो टूक जवाब दिया है.


पराई जंग

जंग ने इस विषय पर अपने संपादकीय को शीर्षक दिया है, प्रधानमंत्री का साहसी रुख. अखबार ने लिखा है कि वॉशिंगटन पोस्ट को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने अपने दो टूक एलान से असल में पूरी पाकिस्तानी कौम के दिली जज्बात को जाहिर किया है. अखबार की राय है कि अमेरिका हुकमरानों की तरह हमेशा पाकिस्तान को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश करता आया है. जबकि पाकिस्तान और चीन के रिश्ते दोस्ती, आपसी सम्मान और साझा हितों की बुनियाद पर टिके हैं.

अखबार कहता है कि पाकिस्तान का सैन्य और असैन्य नेतृत्व अब इस बात को लेकर दृढ़ संकल्प है कि अब पराई जंग लड़ने की गलती नहीं दोहराएंगे. अखबार का इशारा आतंकवाद के खिलाफ उस लड़ाई की तरफ है जिसमें अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना अहम सहयोगी बनाया था. पाकिस्तानी मीडिया अक्सर इस जंग में पाकिस्तान को भारी नुकसान होने की बात तो करता है लेकिन यह भूल जाता है कि इसकी एवज में उसने अमेरिका से अरबों डॉलर भी तो ऐंठे थे.

इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी और बढ़ी है

औसाफ लिखता है कि पहली बार किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने खुल कर पराई जंग को अपने घर तक ना लाने का दो टूक एलान किया और साफ कर दिया है कि 'हम किसी दूसरे मुल्क के लिए अब किराए की बंदूक की भूमिका अदा नहीं करेंगे.' अखबार कहता है कि 9/11 के बाद आंतकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग में शामिल होने की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 150 अरब डॉलर का नुकसान हुआ और उसने 80 से 85 हजार जानों की कुर्बानी भी दी है.

अमेरिका से बराबरी के आधार पर रिश्तों की वकालत करते हुए अखबार लिखता है कि अफगानिस्तान में स्थाई शांति के लिए पाकिस्तान को साथ लेना बहुत जरूरी है और अफगान सरकार और तालिबान के बीच बातचीत में भी वो अहम भूमिका अदा कर सकता है. इसके साथ ही अखबार अमेरिका से अपील करता है कि वो अफगानिस्तान में भारत के असर को खत्म करे.

ट्रंप से सावधान

अकसर प्रधानमंत्री इमरान खान को निशाना बनाने वाले अखबार जसारत ने उनकी तारीफ की है. अखबार कहता है कि इमरान खान की जुर्रत पाकिस्तान के पिछले हुकमरानों के मुकाबले तारीफ के काबिल है, क्योंकि यहां तो सिर्फ टेलीफोन पर एक धमकी पर पूरा देश और उसके संसाधन अमेरिका के हवाले कर दिए गए थे. आपको याद होगा कि यह टेलीफोन 9/11 हमले के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ को किया था जिसके बाद पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में शामिल होने का फैसला किया था.

बहरहाल जसारत ने अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति को मक्कार और चालाक करार देते हुए प्रधानमंत्री इमरान खान को उनसे खबरदार रहने को कहा है.

नवा-ए-वक्त अखबार ने भी अमेरिका को आंख दिखाने के लिए इमरान खान की पीठ ठोकी है. अखबार के मुताबिक, यकीकन पाकिस्तान की सियासत में पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत के अलावा अमेरिका को भी सरकारी स्तर से बाकायदा तौर पर ठोस जवाब दिया गया है.

अखबार लिखता है कि प्रधानमंत्री से यही उम्मीद है कि अमेरिका और भारत के संबंध में राष्ट्रीय भावनाओं और राष्ट्रीय हितों के मुताबिक रुख अपनाएं. अखबार के अनुसार अगर ऐसा हुआ तो फिर अमेरिका न तो पाकिस्तान की तरफ तिरछी आंख से देखेगा और न ही उसे गुलाम समझ कर उससे लगातार 'डू मोर' की मांग करने की जुर्रत करेगा.

अमेरिका के साथ संबंधों में कड़वाहट आने के बाद पाकिस्तान अपने पड़ोसी चीन के काफी करीब हो गया है (फोटो: रॉयटर्स)

कैसी खुद्दारी

रोजनामा दुनिया लिखता है कि ऐसा नहीं है कि अमेरिका से पाकिस्तान के रिश्ते अब सुधरेंगे नहीं, लेकिन इसके लिए अमेरिका को पाकिस्तान के प्रति अपनी सोच, नीति और कदमों पर फिर से विचार करना होगा. अखबार की राय में, यह बहुत ही उत्साहवर्धक बात है कि अब पाकिस्तान ने किसी के लिए इस्तेमाल न होने का इरादा कर लिया है और अपने हितों की रक्षा का संकल्प ले लिया है.

अखबार के मुताबिक यहीं से खुद्दारी और आत्मनिर्भरता की राहें खुलेंगी.

बहरहाल यह बात समझ से परे है कि आर्थिक मदद के लिए दुनिया के आगे हाथ फैलाने को मजबूर कोई देश कैसे अपने प्रधानमंत्री के एक बयान से खुद्दार बन सकता है. और बयान भी ऐसा, जिसका मकसद अपनी गिरती लोकप्रियता को बचाए रखने के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता.