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पाक मीडिया का सवाल, जब गृहमंत्री ही सुरक्षित नहीं तो जनता का क्या होगा?

पाकिस्तानी गृहमंत्री अहसन इकबाल पर हमले के बाद पाक मीडिया ने इस घटना की निंदा की है और राष्ट्रीय सुरक्षा पर चिंता जताई है

Seema Tanwar

पाकिस्तान में धमाके और हमले होना नई बात नहीं है. लेकिन पिछले दिनों देश के गृह मंत्री अहसन इकबाल पर हुए जानलेवा हमले से हर कोई सन्न है. पाकिस्तानी उर्दू अखबारों के संपादकीय आम चुनावों से पहले हुए इस हमले के ब्यौरे और विश्लेषणों से भरे पड़े हैं, वहीं कुछ अखबारों ने देश के सुरक्षा हालात पर नुक्ताचीनी की है. कई अखबारों ने पाकिस्तानी सियासत को कोसते हुए लिखा है कि जलसों और रैलियों में धड़ल्ले से नफरत फैलाए जाने की वजह से आज ऐसे हालात पैदा हुए हैं.

चुनावों पर सवालिया निशान


‘जंग’ लिखता है कि असहन इकबाल अपने चुनाव क्षेत्र में एक सभा में भाषण देने के बाद अपनी कार की तरफ जा रहे थे कि तभी 22 साल के एक नौजवान ने उन पर 30 बोर की पिस्तौल से फायरिंग कर दी. अखबार लिखता है कि मुल्जिम आबिद हुसैन परचून की दुकान पर काम करता है और एक धार्मिक पार्टी का सदस्य बताया जाता है.

अखबार की राय में, इस हमले के कारण क्या हैं और इसके क्या नतीजे होंगे, यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन इतना साफ है कि चुनावी कार्यक्रम की घोषणा से चंद हफ्ते पहले इस हमले ने चुनावों के शांतिपूर्ण आयोजन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. अखबार के मुताबिक, ऐसी अफवाहें भी हैं कि कुछ तत्व खून-खराबा, तोड़फोड़ और हंगामों के जरिए माहौल को खराब कर आम चुनावों में बाधा डालना चाहते हैं, लेकिन ऐसी कोशिशों को किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं होने देना चाहिए.

रोजनामा ‘दुनिया’ लिखता है कि गृह मंत्री पर हमला बताता है कि देश में सुरक्षा समस्याएं अब भी बनी हुई हैं. अखबार के मुताबिक देश में चुनाव का मौसम है और आने वाले दो-ढाई महीनों में सियासी जलसे, जुलूस और नुक्कड़ सभाएं होनी हैं और अगर सुरक्षा की स्थिति यही बनी रही तो नेताओं के लिए खतरे बढ़ जाएंगे और वे अपने घोषणापत्रों और भविष्य की अपनी रणनीति से जनता को अवगत नहीं करा पाएंगे.

अखबार सवाल उठाता है कि कहीं चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के इरादे से तो असहन इकबाल पर हमला नहीं कराया गया है? अखबार के मुताबकि अगर ऐसा है तो फिर कानून लागू करने वाली एजेंसियों और अन्य सभी संस्थाओं की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है.

कौन है जिम्मेदार?

रोजनामा ‘पाकिस्तान’ अपने संपादकीय में लिखता है कि अहसन इकबाल को करीब से गोली मारी गई और अगर सुरक्षाकर्मी हमलावर को काबू नहीं करते तो वह और गोलियां चलाता. अखबार ने इस तरह की घटनाओं के लिए पूरी पाकिस्तानी सियासत को कठघरे में खड़ा किया.

वह लिखता है कि पाकिस्तान में चंद बरसों से राजनीति के नाम पर होने वाली भाषणबाजियों के जरिए नफरत फैलाई जा रही है जिनका बारीकी से जायजा लेने की जरूरत थी, लेकिन बदकिस्मती से इस बारे में रवैया बेहद ठंडा रहा, जिसकी वजह से खतरनाक तत्व फैलते रहे. अखबार कहता है कि सरकार के विरोध में भाषण देना और उसके किसी कदम की आलोचना करना एक बात है और सरकार विरोधी भावनाओं में बहकर किसी को मारने की मुहिम चलाना बिल्कुल दूसरी बात है.

‘नवा ए वक्त’ लिखता है कि एक चुनावी कार्यक्रम में देश के गृहमंत्री पर कालिताना हमला होने से देश में अविश्वास और असुरक्षा की भावना पैदा होना स्वाभाविक है. अखबार का कहना है कि इस हमले में अहसन इकबाल की जिंदगी बच तो गई लेकिन चुनावी मुहिम के शुरुआती दौर में ही देश के गृह मंत्री पर हमला होना देश की कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाता है. अखबार कहता है कि हमले के बाद ये अटकलें भी शुरू हो गई हैं कि क्या चुनाव निश्चित समय पर और शांतिपूर्ण तरीके से हो पाएंगे?

फिर कौन है सुरक्षित?

रोजनामा ‘जसारत’ के संपादकीय का शीर्षक है- गृहमंत्री ही सुरक्षित नहीं तो जनता का क्या होगा. अखबार ने लिखा है कि गृह मंत्री पर हुए हमले को किसी एक राजनीति पार्टी के नेता पर हमला करार न दिया जाए, बल्कि यह देश के गृह मंत्री पर हमला है.

अखबार की टिप्पणी है कि अगर यह हमला वैसा ही है जैसा बयान किया जा रहा है तो चिंता की बात गृह मंत्री के लिए नहीं, बल्कि देश के 20 करोड़ लोगों के लिए है, जिन्हें गोली लगने के बाद हेलीकॉप्टर तो क्या एंबुलेंस भी मय्यसर नहीं होती, और अगर जैसे-तैसे अस्पताल पहुंच भी जाएं तो डॉक्टर नहीं मिलता. अखबार के मुताबिक, पहले ही देश की जनता अपने आपको असुरक्षित महसूस करती है, लेकिन गृहमंत्री पर हमले के बाद उनकी यह असुरक्षा और बढ़ेगी.