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पाकिस्तान डायरी: मुल्क में हाहाकार, चौतरफा दबाव में इमरान सरकार

इमरान खान सरकार के 100 दिन पूरे होने के साथ ही पाकिस्तान को जोरदार आर्थिक झटका लगा है और डॉलर अचानक ही 142 रुपए तक पहुंच गया जो पाकिस्तानी करंसी के इतिहास में गिरावट का रिकॉर्ड है

Seema Tanwar

पाकिस्तान में आर्थिक मोर्चे पर हाहाकार मचा है. आर्थिक तंगियों के बीच पहले ही पाकिस्तान दुनिया के सामने हाथ फैलाने को मजबूर है और अब डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया भी लगातार डूब रहा है. पिछले दिनों एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 142 पाकिस्तानी रुपए तक जा पहुंची. इसीलिए पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में इमरान खान सरकार की आर्थिक नीतियों पर नुक्ताचीनी हो रही है.

जहां एक तरफ सरकार पर देश के सामने असली तस्वीर पेश ना करने के आरोप लग रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कई अखबार सरकार की तरफ से दी जा रही झूठी तसल्लियों से खफा हैं. पाकिस्तानी उर्दू अखबार अपनी सरकार से प्रभावी नीतियों के साथ-साथ जनता को राहत देने की भी अपील कर रहे हैं.


रिकॉर्ड गिरावट

रोजनामा जसारत लिखता है कि इमरान खान सरकार के 100 दिन पूरे होने के साथ ही पाकिस्तान को जोरदार आर्थिक झटका लगा है और डॉलर अचानक ही 142 रुपए तक पहुंच गया जो पाकिस्तानी करंसी के इतिहास में गिरावट का रिकॉर्ड है.

अखबार कहता है कि जिन लोगों को डॉलर की कीमत बढ़ने की भनक मिल जाती है वो फौरन डॉलर खरीद लेते हैं और कीमत बढ़ते ही उसे बेच देते हैं.

अखबार लिखता है कि देश में मची आर्थिक अफरा-तफरी का इल्जाम भी इमरान खान पुरानी सरकारों पर डाल कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर सकती है. अखबार के मुताबिक प्रधानमंत्री इमरान खान तसल्ली तो दे रहे हैं कि घरबराने की जरूरत नहीं है और कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा, लेकिन क्या सरकार की आर्थिक टीम इतनी काबिल है कि डॉलर की उड़ान को रोक सके और रुपए के मूल्य को स्थिर रख सके?

पाकिस्तानी रुपए का अमेरिकी मुद्रा डॉलर की तुलना में हाल के दिनों काफी अवमूल्यन हुआ है

अखबार ने तंज करते हुए लिखा है कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने खुशखबरी दी है कि वित्त वर्ष 2019 के शुरुआती 4 महीनों में महंगाई और बढ़ेगी, ऐसे में जिनके घरों में चूल्हे की आग बुझ रही है, वो घबराएं नहीं तो क्या करें.

रोजनामा नवा ए वक्त लिखता है कि इमरान खान की सरकार 7 हफ्तों के दौरान रुपए की कीमत में 9 से 11 फीसदी तक की कमी कर चुकी है और जिस तरह से रुपया सस्ता किया जा रहा है, महंगाई में भी उसी तेजी से इजाफा किया जा रहा है. अखबार ने जानकारों के हवाले से लिखा है कि पाकिस्तान में डॉलर महंगा होने से महंगाई का नया तूफान आ गया है.

अखबार कहता है कि अब सरकार का हनीमून पीरियड भी खत्म हो गया है और जनता को महंगाई से राहत देना बहुत जरूरी है और यह सरकार की स्थायी आर्थिक नीतियों से ही संभव हो पाएगा. अखबार की राय है पाकिस्तानी रुपए में रिकॉर्ड गिरावट और बढ़ती महंगाई से जनता पर भले ही मार पड़ रही है लेकिन इससे विपक्ष के तेवरों में जान आ गई जो चुनाव में हार के बाद से मरणासन्न था.

विरोधाभासी दावे

जंग कहता है कि अविश्वास की सबसे बड़ी वजह सरकार की तरफ से आने वाले विरोधाभासी दावे हैं. अखबार लिखता है कि वित्त मंत्री के प्रवक्ता ने पिछले दिनों देश की जनता को खुशखबरी सुनाई कि सरकार ने आईएमएफ की शर्तें ना मानने का फैसला किया है और विदेशी मुद्रा भंडार से जुड़ा संकट भी खत्म हो गया है लेकिन इस खुशखबरी के सिर्फ 16 घंटे बाद ही डॉलर बेलगाम हो गया और हमारे विदेशी कर्जों में बैठे बिठाए 486 अरब रुपए का इजाफा हो गया.

अखबार के मुताबिक जाने-माने आर्थिक विशेषज्ञ मौजूदा स्थिति को आईएमएफ की कड़ी शर्तें मानने का नतीजा करार देते हैं और रुपए की कीमत में और कमी के साथ-साथ बिजली की दरों में इजाफे की आशंका जाहिर करते हैं.

अखबार लिखता है कि विरोधाभासी दावों के कारण लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक हालत संतोषजनक है या फिर चिंताजनक, इसीलिए जरूरी है कि सरकार जनता को असल तस्वीर दिखाए. अखबार ने सरकार से प्रभावी आर्थिक नीतियां लागू करने के साथ ही उनमें निरंतरता बनाए रखने कहा है.

पिछले हफ्ते बड़ी गिरावट के बाद एक डॉलर की कीमत 142 पाकिस्तानी रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंची है (फोटो: रॉयटर्स)

रोजनामा पाकिस्तान ने इस मुद्दे पर अपने संपादकीय को शीर्षक किया है: 'रुपए की बेकदरी और प्रधानमंत्री की बचकानी तसल्लियां'. अखबार लिखता है कि करंसी मार्केट में डॉलर की उड़ान उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी थी और अगर स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान हस्तक्षेप नहीं करता तो इसमें और तेजी की संभावना थी क्योंकि डॉलर की तलब जारी थी और महंगे दामों में इसे खरीदने के लिए लोग बाजार में मौजूद थे.

अखबार लिखता है कि आईएमएफ का पैकेज जब मिलेगा, तब मिलेगा, लेकिन उससे पहले जो कर्ज ले रखे हैं वो बिना और कर्जा लिए ही बढ़ रहे हैं क्योंकि अगर डॉलर एक रुपया भी बढ़ता है तो इसका मतलब कर्जों में अरबों का इजाफा होता है. ऐसे में अखबार प्रधानमंत्री इमरान खान के इस बयान को बचकानी तसल्ली बताता है कि सब ठीक हो जाएगा और रुपया भी जल्द मजबूत होगा.

मुश्किल में आम आदमी

रोजनामा दुनिया लिखता है कि मौजूदा वित्त वर्ष के पहले 4 महीने का व्यापारिक घाटा पिछले साल इसी अवधि के मुकाबले सिर्फ 0.3 प्रतिशत कम है, जिसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में बेहतरी के कोई आसार नहीं हैं. अखबार की राय में जिस तरह के कदम मौजूदा सरकार उठा रही है, वो अर्थव्यवस्था के और ज्यादा सिकुड़ने की वजह बनेंगे. अखबार कहता है कि इससे आम आदमी की मुश्किलों में इजाफा होना तो तय है.