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पाकिस्तान डायरी: अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए IMF से ‘भीख मांगने’ पर घिरे इमरान खान

देश के उर्दू अखबरों ने लेख छापा है कि 'आईएमएफ से फिर नया कर्ज लेकर भी देख लीजिए, शायद इससे मर्ज कुछ कम हो, हालांकि रोगी अर्थव्यवस्था आज तक तो आईएमएफ के इंजेक्शन से ठीक नहीं हुई, लेकिन क्या पता, इस बार यह करिश्मा हो जाए!'

Seema Tanwar

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए उनके अपने पुराने बयान मुसीबत बन रहे हैं. सत्ता में आने से पहले वो छाती ठोक कर कहते थे कि खुदकुशी कर लेंगे लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से भीख नहीं मांगेंगे. लेकिन अब उनके सामने आईएमएफ के सामने हाथ फैलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. इसीलिए पाकिस्तान में मीडिया और सोशल मीडिया, दोनों जगह इमरान खान की खिंचाई हो रही है.

आईएमएफ की तरफ से बेलआउट पैकेज के लिए लगाई जा रही कड़ी शर्तें भी पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में छाई हैं. पाकिस्तानी अखबार अमेरिकी की तरफ से इस शर्त पर खासे गर्म हो रहे हैं कि बेलआउट पैकेज को चीन के कर्जे उतारने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. अलबत्ता इस बारे में सब अखबार एकमत हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक हालत बहुत खस्ता है और इससे निकलने की राह बहुत मुश्किल है.


आईएमएफ से भीख

जसारत का संपादकीय है: कड़ी शर्तों पर भीख. अखबार कहता है कि तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की सरकार पाकिस्तान में तब्दीली नहीं, बल्कि महंगाई लेकर आई है. अखबार के मुताबिक सरकार कह रही है कि भीख मांगना मजबूरी है, वरना देश नहीं चलेगा.

पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूर्व में 12 बार कर्ज ले चुका है

अखबार ने इमरान खान सरकार के इन बयानों की भी खिंचाई की है कि पिछली सरकार के कुप्रबंधन के कारण देश के यह हालात हैं. अखबार की टिप्पणी है कि आने वाली सरकार को पता होता है कि खजाना खाली है, अर्थव्यवस्था तबाह है और भारी कर्ज चढ़ा हुआ है तो फिर पार्टियों के बीच सत्ता में आने की होड़ क्यों रहती है.

रोजनामा खबरें लिखता है कि देश के खजाने की हालत ऐसी नहीं थी कि नई सरकार बनते ही प्रधानमंत्री इमरान खान यह घोषणा करने लगें कि आईएमएफ से कर्ज नहीं लेंगे. अखबार के मुताबिक पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था चौतरफा निराशाओं से घिरी है, इसलिए आईएमएफ से कड़ी शर्तों पर मदद मिल भी जाए तो इससे अर्थव्यवस्था का कोई काया-पलट नहीं होने जा रहा है. अखबार लिखता है कि जब तक देश में निवेश नहीं आएगा और पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले स्थिर नहीं होगा, तब तक हालात में बेचैनी ही रहेगी.

चीन पर चकल्लस

दूसरी तरफ नवा-ए-वक्त ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हीदर नोएर्ट के इस बयान का जिक्र अपने संपादकीय में किया है कि चीनी कर्जों के बोझ के कारण पाकिस्तान को आईएमएफ के पास जाना पड़ रहा है. अखबार लिखता है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कई दशकों से आयात और निर्यात में असंतुलन की वजह से विदेशी कर्जों पर निर्भर है.

अखबार कहता है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना (सीपीईसी) के तहत चीन से लिए गए कर्जों की अदायगी 3 साल बाद यानी 2021 से शुरू होगी, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि आईएमएफ से मिलनी वाली रकम से चीनी कर्जे चुकाने की अनुमति नहीं होगी.

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के तहत चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर में 50 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है

रोजनामा दुनिया लिखता है कि आईएमएफ से कर्ज लेने की पाकिस्तान की दरख्वास्त ने अमेरिका को सीपीईसी के खिलाफ दुष्प्रचार करने का एक और मौका दे दिया है.

अखबार कहता है कि अमेरिका इस बात से खौफजदा है कि एशिया, यूरोप और अफ्रीका में चीन की बढ़ती हुई मौजूदगी अमेरिकी हितों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है.

अखबार की राय में अमेरिकी प्रवक्ता का बयान ऐतिहासिक तौर पर सही नहीं क्योंकि अगर इस बार आईएमएफ से कर्ज लेने की वजह चीनी कर्जे हैं तो फिर इससे पहले आईएमएफ से जो 12 बार कर्ज लिया गया, उसकी वजह क्या थी. इसके साथ ही अखबार ने चीन की ‘वन वेल्ट वन रोड’ परियोजना की शान में कसीदे पढ़े हैं.

आईएमएफ का जाल

रोजनामा जंग के मुताबिक अकसर यह कहा जाता है कि जो आईएमएफ के जाल में आ जाता है, वो हमेशा के लिए फंस जाता है. लेकिन अखबार की टिप्पणी है कि फंसता वो है जो ईमानदारी से देश और जनता के लिए काम नहीं करता है, वरना तुर्की की मिसाल हमारे सामने है, जिसने कुछ ही हफ्ते पहले आईएमएफ की किस्त अदा की है. अखबार उम्मीद करता है कि अगर पाकिस्तान ईमानदारी की राह पर चलेगा तो यह पैकेज इस आर्थिक संकट का खात्मा कर देगा.

रोजनामा पाकिस्तान लिखता है कि शुरुआती अंदाज के मुताबिक आईएमएफ से मिलने वाला बेलआउट पैकेज करीब 9 अरब डॉलर का होगा और इमरान खान की सरकार को उम्मीद है कि उसके बाद देश की अर्थव्यवस्था बेहतरी की राह पर आगे बढ़ेगी.

आईएमएफ की लोन देने की शर्तों में से एक यह भी है कि पाकिस्तान अपने खास दोस्त चीन से लिए कर्जों को उतारने के लिए उसके दिए आर्थिक मदद का उपयोग नहीं करेगा

अखबार कहता है कि शुरू में सरकार इसलिए आईएमएफ से कर्ज लेने से इनकार कर रही थी क्योंकि उसने सभी विकल्पों पर गौर किया गया और कुछ मित्र देशों से मदद की आस थी जो पूरी नहीं हुई और आखिरी विकल्प के तौर पर आईएमएफ के पास जाना पड़ा.

अखबार के संपादकीय की आखिरी लाइन है: चलिए, आईएमएफ से फिर नया कर्ज लेकर भी देख लीजिए, शायद इससे मर्ज कुछ कम हो, हालांकि रोगी अर्थव्यवस्था आज तक तो आईएमएफ के इंजेक्शन से ठीक नहीं हुई, लेकिन क्या पता, इस बार यह करिश्मा हो जाए!