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नवाज शरीफ का जाना: कानून की जीत या लोकतंत्र की हत्या?

पाकिस्तान का मीडिया पूछ रहा है, नवाज शरीफ तो गए, बाकी के कब शिकंजे में आएंगे

Seema Tanwar

पाकिस्तानी उर्दू मीडिया के लिए इन दिनों प्रधानमंत्री पद से नवाज शरीफ के इस्तीफे से बड़ी खबर भला क्या होगी? जब से सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को पनामा लीक्स मामले में अयोग्य करार देकर पद छोड़ने को मजबूर किया है, तब से देश के सियासी परिदृश्य को लेकर खूब अखबारों के पन्ने रंगे जा रहे हैं.

कोई नवाज शरीफ की छुट्टी होने पर खुश है तो कहीं इसे एक चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल करने के तौर पर देखा जा रहा है. कई अखबारों ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या नवाज शरीफ के बाद उन सैकड़ों लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी जिनके नाम पनामा लीक्स में शामिल हैं. ये भी अपीलें हो रही हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र कायम रहना चाहिए.


सब पर हो कार्रवाई

नवा ए वक्त’ लिखता है कि इस बात में कोई दोराय नहीं है कि स्वतंत्र न्यायपालिका से बड़ी कोई नेमत नहीं हो सकती, लेकिन पनामा केस के तहत देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की जो बात उभरी थी, वह सब कुछ नहीं दिखाई दे रहा है, बल्कि एक और चुने हुए प्रधानमंत्री को घर बिठा दिया गया है.

अखबार के मुताबिक जो फॉर्मूला प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अयोग्य करार देने के लिए लागू किया गया है, अब जनता को उम्मीद है कि वही फॉर्मूला अब कितने और लोगों पर लागू किया जाएगा.

अखबार पूछता है कि क्या इमरान खान, जहांगीर तरीन और दूसरे वे सब लोग इस फॉर्मूले की जद में नहीं आते जिनकी ऑफशोर कंपनियां और उनके मातहत होने वाले कारोबार साबित हो चुके हैं.

अखबार कहता है कि इसी फॉर्मूले को क्या देश के उन 435 लोगों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए जिनके नाम पनामा लीक्स में शामिल हैं.

कुछ ऐसी राय ‘रोजनामा इंसाफ' की भी है. अखबार लिखता है कि जवाबदेही सबकी तय होनी चाहिए और अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस भारी पत्थर को उठाने का फैसला कर लिया है तो वह तारीफ की हकदार है.

लेकिन अखबार यह भी कहता है कि अगर यह मामला सिर्फ शरीफ खानदान तक सीमित रहा और देश के खजाने को बेतहाशा नुकसान पहुंचा कर स्विस बैंक भरने वालों और यूरोप में महल खरीदने वालों और पार्टी को विदेशों से मिलने वाले चंदों को छुपाने वालों को भी जबावदेही के कटघरे में नहीं खड़ा किया गया तो इससे देश को फायदे की बजाय नुकसान होगा.

अखबार के मुताबिक जब जनता के चुने हुए नुमाइंदे को सबसे सख्त सजा दी गई है तो फिर किसी और भी नहीं बख्शा जाना चाहिए. अखबार कहता है कि कौम की बेटियों को बेचकर डॉलर कमाने वालों की गर्दन भी नापनी होगी.

कुदरत का फैसला

उम्मत’ ने नवाज शरीफ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई को बिल्कुल दुरुस्त करार देते हुए अपने संपादकीय को सुर्खी लगायी- मियां नवाज शरीफ कुदरत के कानून की जद में.

अखबार लिखता है कि अदालती फैसले से पहले नवाज शरीफ के लिए अपनी आबरू बचाने वाला रास्ता यही होता कि वह अपने पद से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी के किसी योग्य व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना देते.

अखबार के मुताबिक नवाज शरीफ का बड़ा से बड़ा समर्थक भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि आखिरी वक्त तक वह यही समझते रहे कि पाकिस्तान में उनके सिवाय कोई इतना काबिल नहीं कि प्रधानमंत्री बन सके.

अखबार की राय में, सारी दुनिया खुली आंखों से देख रही थी कि मियां नवाज शरीफ अपने पद का इस्तेमाल किस तरह अपने खानदार की शोहरत और दौलत बढ़ाने के लिए कर रहे थे.

अखबार कहता है कि पाकिस्तान और मुसलमानों के बदतरीन दुश्मन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खानदानी व्यापारिक संबंधों की वजह से मियां नवाज शरीफ ने पाकिस्तान और कश्मीरियों के हितों को कुरबान किया है.

फिक्र लोकतंत्र की

रोजनामा ‘दुनिया’ ने भी इस मुद्दे को अपने संपादकीय में उठाया है लेकिन अखबार का जोर इस बात पर है कि चाहे कुछ हो, लेकिन देश में लोकतंत्र चलता रहना चाहिए.

अखबार लिखता है कि पनामा केस में अदालत के फैसले के बाद कमोबेश सभी राजनीतिक और धार्मिक पार्टियां इस बात पर एकमत दिखी कि लोकतंत्र को पटरी से नहीं उतरने दिया जाएगा, जो कि पाकिस्तान की सियासत और जम्हूरियत के लिए अच्छा शगुन है.

अखबार लिखता है कि लोकतंत्र चलता रहेगा तो इसकी खामियां भी खुद ब खुद दूर होती चली जाएंगी क्योंकि जिन लोकतांत्रिक देशों की मिसालें आज हम देते हैं, उनका लोकतंत्र भी लंबे संघर्ष और लगातार आगे बढ़ते हुए ही यहां पहुंचा है. अखबार लिखता है कि पाकिस्तान में भी जरूरत इसी बात की है कि लोकतंत्र चलता ताकि वह इतना मजबूत हो जाए कि देश की सभी समस्या का हल निकालने के काबिल हो सके.

जंग’ लिखता है कि विपक्षी पार्टियों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बहुत सी क्षेत्रीय और वैश्विक ताकतें पाकिस्तान को अस्थिर करने के लिए जितनी सक्रिय आजकल हैं, उतनी कभी नहीं थीं.

अखबार की राय है कि पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक मतभेद देश में अव्यवस्था और अफरातफरी फैलने का सबब नहीं बनने चाहिए क्योंकि इससे पाकिस्तान विरोधी ताकतों को अपने इरादे पूरे करने में मदद मिलेगी.

अखबार लिखता है कि अब आम चुनाव होने में चंद महीने बचे हैं इसलिए सियासी पार्टियों को पूरी इमानदारी से अपना कार्यक्रम जनता के सामने रखना चाहिए और वे इस बात को सुनिश्चित करें कि आने वाले चुनाव शांतिपूर्ण और निष्पक्ष हों ताकि देश के आने वाले पांच साल के लिए एक गैर विवादित चुनी हुई सरकार मिले.