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क्या राहिल की शांतिपूर्ण विदाई से पाक में लोकतंत्र मजबूत होगा?

20 सालों में पहली बार है कि कोई पाक सेना प्रमुख सिर्फ तय कार्यकाल पूरा कर रहा है.

Amit Singh

लंबे समय से पाकिस्‍तान में चल रही अटकलों का दौर अब खत्‍म हो गया है. पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ 29 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. उन्होंने अपनी विदाई यात्राओं में उपस्थित होना भी शुरू कर दिया है.

अभी नए सेना प्रमुख का नाम सामने नहीं आया है लेकिन यह तय हो गया है कि राहिल रिटायर हो रहे हैं.


पाकिस्तान में हो रहे इस बदलाव से तमाम सवाल उभर रहे हैं. ये सवाल पड़ोसी देश के साथ आने वाले समय में हमारे रिश्ते तय करेंगे.

पहला सवाल यह है कि क्या भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण होने के बावजूद राहिल की विदाई नवाज शरीफ की मजबूती का परिचायक है? क्या पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार सेना पर भारी पड़ रही है?

क्या पुराने आर्मी चीफ की विदाई और नए आर्मी चीफ की नियुक्ति शांतिपूर्ण तरीके से हो गई तो पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत होगा?

पाकिस्तान में पिछले 20 सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई सेना प्रमुख सिर्फ तय कार्यकाल पूरा कर रहा है.

दरअसल पाकिस्तान में हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि सेना सर्वोच्च हो गई है.वहां सेना प्रमुख की नियुक्ति प्रधानमंत्री करता तो है लेकिन पद संभालते ही सेना प्रमुख देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति बन जाता है. बाद में अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए प्रधानमंत्री सेना प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाते रहते हैं.

लेकिन राहिल शरीफ ने बेहतरीन लोकप्रियता होने के बावजूद उन्होंने अपने पूर्ववर्ती अशफाक परवेज कयानी और परवेज मुर्शरफ की राह नहीं पकड़ी. जबकि पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि जनरल शरीफ को पाक सेना का प्रमुख रहने दिया जाए.

क्यों लोकप्रिय है राहिल

भारत का विरोध करना पाकिस्तान में हिट होने का सबसे लोकप्रिय फार्मूला है. राहिल शरीफ ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान भारत के विरूद्ध कड़ा रुख अपनाया है.

राहिल ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से आतंकवाद विरोधी अभियान छेड़ रखा है. इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता मिली है. इस दौरान सीमांत क्षेत्र के नागरिकों को परेशानी तो हुई लेकिन बाकी पाकिस्तानियों के लिए वह हीरो बन गए.

अभी पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ को फील्ड मार्शल का दर्जा देने के लिए याचिका दाखिल की गई है.

याचिकाकर्ता ने कहा है, 'जनरल राहिल का कार्यकाल बढ़ाना और उन्हें फील्डमार्शल का दर्जा देना जनहित में होगा. मौजूदा चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (जनरल राहिल) ने शांति और युद्ध के समय जिस तरह का अनुकरणीय, असाधारण और पेशेवर प्रदर्शन किया, जिस तरह का समर्पण और निष्ठा दिखाई, उसकी वजह से वे राष्ट्रीय प्रशंसा, अवार्ड और पहचान पाने के पूरी तरह योग्य हैं.'

याचिका में ग्लोबल टेरेरिज्म इंडेक्स 2016 का हवाला देते हुए कहा गया है कि पाकिस्तान में पिछले साल आतंकवाद में काफी कमी आई है. पिछले साल पाकिस्तान में उससे पहले के साल की तुलना में 45 फीसदी कम हमले और 38 फीसदी कम मौतें हुईं.

पनामा पेपर्स में नाम आने के कारण नवाज शरीफ की स्थिति कुछ कमजोर हुई थी. उन्होंने बड़ी संख्या में जनता का भरोसा खोया. ऐसे में राहिल अपने काम से लोगों में बीच में खूब लोकप्रिय हो गए.

जनरल राहिल के समर्थक खुलेआम उनसे राजनीति में आने की अपील भी करते हैं. हालांकि मियां नवाज से भी उनके संबंध बेहतर रहे. कभी इसमें टकराव की खबर नहीं आई.

आगे क्या करेंगे राहिल

पाकिस्तान में आर्मी चीफ के रिटायर होने की प्रकिया छोटी नहीं है. रिटायरमेंट तय हो जाने के बाद आर्मी चीफ विदाई यात्रा पर निकलते हैं. इस दौरान वे देश भर में सेना के प्रमुख केंद्रों का दौरा करते हैं. वहां वे अफसरों व जवानों से मिलते हैं.

रा‍हिल शरीफ का भी फेयरवेल टूर शुरू हो गया है. लाहौर की सैन्य छावनी से उनकी विदाई यात्रा शुरू हुई. रा‍हिल इसके बाद गुजरांवाला गए जहां उन्होंने अफसरों और जवानों को संबोधि‍त किया. इसके बाद अब वह जल्द ही कराची और पेशावर भी जाएंगे.

सरकार और सैन्य सूत्रों के अनुसार अगले सेना प्रमुख का नाम भी तय किया जा चुका है और इसके लिए राहिल शरीफ से भी मशविरा किया गया है. इसकी घोषणा 29 नवंबर को जनरल राहिल के रिटायरमेंट के समय ही की जाएगी.

नवाज अगर यह करने में सफल होते हैं तो यह पांचवां मौका होगा जब वह पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख का चयन करेंगे. यह निश्चित तौर पर उन्हें मजबूती देने वाला होगा. मतलब पाकिस्तान में सत्ता का प्रमुख केंद्र जनता द्वारा चुनी हुई सरकार होगी.

गौरतलब है कि इससे पहले वे 1991 में जनरल आसिफ नवाज जंजुआ, 1993 में जनरल वहीद काकर, 1998 में जरनल परवेज मुशर्रफ और 2013 में जनरल राहिल शरीफ की नियुक्ति कर चुके हैं.

फिलहाल पाकिस्तान में लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इकबाल रामदे, जनरल स्टाफ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जुबैर हयात, सेना के प्रशिक्षण और मूल्यांकन इकाई के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल क़मर जावेद बाजवा, मुल्तान में कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल इशफाक नदीम अहमद का नाम नए सेना प्रमुख के लिए जोर-शोर से चल रहा है.

भारत का क्या फायदा

अगर यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीके से पूरी हो गई तो वाकई पाकिस्तान की सियासत में मील का पत्थर साबित होगी. भारत और पाकिस्तान सीमा पर इन दिनों तनातनी का माहौल चल रहा है. ऐसे में पाकिस्तान में नए सेना प्रमुख की नियुक्ति से भारत-पाक संबंधों में बदलाव होने की उम्मीद है.

पाकिस्तान में लोकतंत्र की मजबूती से भारत को निश्चित तौर पर लाभ होगा. अगर पड़ोस में चुनी हुई सरकार का शासन होगा तो शायद सीमा पर गोलीबारी, आतंकवाद समेत दूसरे विवादों का समाधान निकालने का प्रयास शुरू हो.

नवाज शरीफ और पाकिस्तान दोनों नाजुक दौर से गुजर रहे हैं. उम्मीद करनी चाहिए कि इस दौर के बाद लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत होंगी.