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मालदीव का फाफू द्वीप बिकने की खबर से बढ़ी भारत की फिक्र

सऊदी अरब के बादशाह सलमान इब्न अब्दुल अज़ीज़ 99 साल के लिए खरीद सकते हैं यह द्वीप

Shantanu Mukharji

सऊदी अरब के बादशाह सलमान इब्न अब्दुल अज़ीज़ अगले महीने मालदीव की यात्रा पर जाने वाले हैं.

ऐसी अफवाहें हैं कि वो एक अहम समझौते पर दस्तखत करेंगे और इस समझौते के तहत मालदीव अपने फाफू प्रवाल द्वीप को 99 साल के पट्टे पर एक विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) के लिए सऊदी अरब को दे देगा. 


सऊदी अरब के इस कदम को लेकर सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के जानकारों की शुरुआती प्रक्रिया बेचैनी भरी थी.

पैदा हो रहा है शक

सऊदी अरब-मालदीव के किसी भी सहयोग से यह शक पैदा होता है कि इस्लामिक ताकतें मजबूत हो सकती हैं या मालदीव में कट्टरपंथी तत्व फिर सिर उठा सकते हैं.

खुफिया सूत्रों के मुताबिक मालदीव के सैकड़ों कट्टरपंथी नागरिक सीरिया पहुंचे थे और उन्होंने वहां जिहाद में इस्लामिक स्टेट का साथ दिया. इसलिए यह प्रतिक्रिया हैरान नहीं करती.

सऊदी अरब ने अपनी ओर से मालदीव को भरोसा दिलाया है कि फाफू प्रवाल द्वीप को विश्व स्तरीय शहर के तौर पर विकसित किया जाएगा, जहां बेहतरीन सुविधाएं होंगी जिनमें अस्पताल, शिक्षा संस्थान और पर्यटन संबंधी केंद्र शामिल हैं.

परियोजना से कई उम्मीदें

इसके अलावा, अगर परियोजना को अमली जामा पहनाया जाता है तो- जिसके होने की काफी संभावना है. यहां खाड़ी देशों से हजारों सैलानी आएंगे जिससे यहां पर्यटन की संभावनाएं बढ़ेंगी.

अहम बात यह है कि भ्रष्टाचार विरोधी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने मांग की है कि मालदीव सरकार फाफू प्रवाल द्वीप के लिए अपनी योजना की पूरी जानकारी दे.

आने वाली परियोजना पर उठे सवाल पूरी परियोजना को राजनीतिक एंगल दे देते हैं.

इतिहास में क्या है?

हालिया इतिहास पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि पूर्व राष्ट्रपति मौमून गयूम ने साल 2014 में रियाद में मालदीव के दूतावास की नींव रखी थी.

यह पूरे पश्चिम एशिया में मालदीव का पहला राजयनिक मिशन था.  उनके भाई राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने साल 2015 में सऊदी दूतावास फिर खोले जाने को मंजूरी दी थी.

विश्लेषकों का मानना है कि यमीन भारत विरोधी हैं क्योंकि वो लगातार सऊदी अरब, चीन या पाकिस्तान से गर्मजोशी भरे रिश्ते भरे रखकर भारत को चिढ़ाते रखते हैं.

वो ऐसे संकेत देते हैं कि मालदीव भी अलग-थलग नहीं है और इसके असरदार और ताकतवर दोस्त हैं जिन पर ये भरोसा कर सकता है.

रिश्तों में आएगी मजबूती 

सऊदी अरब और गयूम के रिश्ते हमेशा मजबूत रहे हैं और भविष्य में समझौता होने से ये संबंध और मजबूत हो जाएंगे.

मालदीव पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का ये भी मानना है कि पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ही एकमात्र भारत समर्थक नेता हैं जो इस तरह के समझौतों को खटाई में डाल सकते हैं और भारत के हितों को सबसे ऊपर रख सकते हैं.

हालांकि राजनीतिक अखाड़े में उनकी वापसी के आसार बहुत कम हैं. और तब तक इस तरह की राजनीतिक और लंबी खिंचने वाली प्रक्रिया जारी रहेगी और भारत को तंग करने वाली हरकतें होती रहेंगी.

फाफू प्रवाल द्वीप से जुड़े मसलों में राजनीतिक पेंच पर जोर देने के लिए मुनासिब होगा कि यहां याद किया जाए कि किस तरह 2008 में प्रचार किया गया था कि मराओ द्वीप एक सैन्य अड्डे के लिए चीन को दिया जा रहा है.

यह कदम भी शायद भारत को परेशान करने के लिए था लेकिन पूरा प्रचार नशीद के सत्ता में लौटने के बाद हवा हो गया था.

मालदीव में कट्टरपंथी ज्यादा

मालदीव इस्लामी मुल्क है और यहां कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के जड़े जमाने की संभावना ज़्यादा है.

मैं भी साल 2009 से 2010 के बीच मालदीव में था और इसी दौरान वहां इस्लामी प्रचारक ज़ाकिर नाइक का दौरा हुआ था.

नाइक ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को अपनी प्रभावी भाषण शैली से सम्मोहित कर दिया था, उनका भाषण इस्लाम के इर्द-गिर्द था और जैसे मालदीव के लोगों पर जादू सा हो गया था.

फाफू प्रवाल द्वीप पर सऊदी मौजूदगी से वहाबियों को मालदीव में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के मौके मिलेंगे.

इसलिए वाकई सावधानी बरती जानी चाहिए. इससे पहले कि मालदीव-सऊदी ताल्लुकात से आतंकवादियों को पनपने का मौका मिले, हैरानी नहीं कि खबरों के मुताबिक भारत भी चिंतित है.

क्या यह दूर की कौड़ी है?

हालांकि ये दूर की कौड़ी लग सकता है लेकिन इस्लामिक स्टेट के सिमटने के बाद इसके सदस्य अपने-अपने देश लौट सकते हैं और गुप-चुप बैठे सदस्यों को सक्रिय कर सकते हैं.

मालदीव में भारत के दूतावास में विदेश मंत्रालय और दूसरी भारतीय एजेंसियों के प्रतिनिधि हैं.

उम्मीद की जाती है कि वो घटनाक्रम पर पैनी नजर रखेंगे और सुरक्षा हितों को भी ध्यान में रखेंगे.

भारत को मिलेगा आईसीसी से सपोर्ट

मालदीव में एक भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (ICC) भी है, जो कि भावनाओं को शांत करने और भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ मौजूद साजिशों को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है.

दूतावास के हर विभाग को दूसरे से मिलकर भारत के हित में काम करना चाहिए. नाम न छापने की शर्त पर अंदर के लोग बताते हैं कि मालदीव में पोस्टिंग पाने वाले विदेश सेवा या दूसरी सेवा के अधिकारी अक्सर सबसे बढ़िया नहीं होते.

शायद अधिकारियों की पोस्टिंग की नीति की भी समीक्षा होनी चाहिए. सबसे बढ़िया अधिकारी पश्चिमी देशों में पोस्टिंग चाहते हैं और नतीजतन मालदीव में भारत को बढ़िया अधिकारी नहीं मिलते और यह द्वीप असुरक्षित रह जाता है.

मालदीव में भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जरूरी

हिंद महासागर के एक और देश मॉरीशस में गुप्तचर पृष्ठभूमि के एक भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं.

शायद समय आ गया है कि मालदीव भी ऐसा करे ताकि ऐसा व्यक्ति इस तरह के मसलों को देख सके और जिनकी सलाह सुरक्षा मामलों में ली जा सके.

खास तौर पर फाफू प्रवाल द्वीप मसले के बाद ऐसा और जरूरी लगता है. मालदीव की रणनीतिक अहमियत और इसकी भारत से नजदीकी को नहीं भूला जाना चाहिए.

यह इस्लामी विद्वानों और यात्रियों की नज़रों से कभी ओझल नहीं हुआ. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मोरक्को का घुमक्कड़ विद्वान इब्न बतूता (1304-1368) था.

इब्न बतूता ने 14वीं शताब्दी में मालदीव की यात्रा की वहां के लोगों, समाज, राजनीति, धर्म और कारोबार को लेकर अपने विचार लिखे.

इब्न बतूता के दौर के साढ़े छह सौ साल बाद भी मालदीव घूमने और चीजों की पड़ताल के लिए एक दिलचस्प द्वीप है.

अगर इस तरह की पड़ताल अकादमिक और खोजी किस्म की हो तो ठीक है, लेकिन कोई भी छिपा हुआ एजेंडा सामने आना ही चाहिए.

( लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं. वो इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन के वरिष्ठ फेलो भी हैं.  यहां व्यक्त विचार निजी हैं. )