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कुलभूषण जाधव का नया वीडियो : पाकिस्तान का ये नया पैंतरा क्यों उसकी भारी भूल है

पाकिस्तान द्वारा जारी वीडियो का टारगेट यूएन हेडक्वार्टर हेग न होकर अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन है

Sreemoy Talukdar

ये पहली बार नहीं है जब कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान ने भारत समेत दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की हो. पाकिस्तान ने अब कुलभूषण जाधव के दूसरे कथित अपराध कबूलनामे का वीडियो जारी किया है.

इस वीडियो में एक अटेंडेंट दावा कर रहा है कि पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा से कथित रूप से बलूचिस्तान में जासूसी, विध्वंस और आतंकवाद जैसी करतूतों के लिए दया की अपील की है. लेकिन इस वीडियो का टारगेट यूएन हेडक्वार्टर हेग न होकर अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन है. क्योंकि यहीं से दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के मुखिया की नजर पूरी दुनिया पर रहती है.


पाकिस्तान द्वारा जारी कुलभूषण जाधव के कबूलनामा का दूसरा वीडियो

अमेरिकी कांग्रेस पाकिस्तान को छूट देने के मूड में नहीं

आतंकवाद के खिलाफ जारी लड़ाई में विश्वासघात के तमाम आरोपों के बीच अमेरिकी कांग्रेस पाकिस्तान को और छूट देने के मूड में नहीं है. अब जबकि नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच होने वाली मुलाकात निश्चित हो चुकी है. उम्मीद की जा रही है कि आंतकवाद की समस्या पर दोनों ही नेताओं की जुगलबंदी से पाकिस्तान की समस्या बढ़ सकती है क्योंकि दोनों ही नेता आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए जाने जाते हैं.

दरअसल पाकिस्तान की रणनीति भारत को आतंकवाद का पीड़ित न बताकर उसका पोषक साबित करने की है. पाकिस्तान ऐसा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस दावे को कमजोर करना चाहता है जिसके तहत वो खुद भारत को सीमा पार आतंकवाद का पीड़ित बता रहा है. इसके साथ ही पाकिस्तान की रणनीति अमेरिका की नाराजगी को कम करने की है.

हाल के दिनों में अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव के लिए अमेरिका की नजरों में पाकिस्तान की भूमिका संदिग्ध रही है. पाकिस्तान की रणनीति में भारी जोखिम है लेकिन उसके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है. इसी वजह से पाकिस्तान ने ऐसे वक्त में कुलभूषण जाधव के अपराध कबूलनामे का दूसरा वीडियो जारी किया है.

पाकिस्तान की रणनीति बुरी तरह कमजोर और कमियों से भरी

समस्या ये है कि पाकिस्तान का दावा बेहद खोखला और आसानी से पकड़ा जाने वाला है. खुद को भारत प्रायोजित आतंकवाद का पीड़ित बताने और अमेरिकी सरकार की नाराजगी कम करने की उसकी रणनीति बुरी तरह कमजोर और कमियों से भरी हुई है. क्योंकि जिस वीडियो को पाकिस्तान ठोस सबूत बताने में लगा है उसमें कई खामियां हैं. ऐसे में पाकिस्तान क्या साबित करना चाहता है और किसे साबित करना चाहता है?

नीदरलैंड में आईसीजे के बाहर पाकिस्तान के राजदूत मो. आज़म ख़ान मीडिया से बात करते हुए (फोटो: पीटीआई)

सवाल तो ये भी उठता है कि भारतीय मूल के नागरिक को जब पाकिस्तानी मिलिट्री कोर्ट में मुकदमा चलाकर दोषी करार दे दिया गया. यहां तक कि उसे मौत की सजा भी सुना दी तो फिर पाकिस्तान को कबूलनामे के इस वीडियो को जारी करने की जरूरत क्यों पड़ी?

क्या ऐसा कर पाकिस्तान दुनिया में ये साबित करना चाहता है कि इस मामले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता? इसमें दो राय नहीं है कि पाकिस्तान की करतूतों से ये बात साफ हो चुकी है कि कुलभूषण जाधव मामले में पारदर्शिता नहीं बरती गई. जिससे ये मामला पूरी तरह से हास्यास्पद बन जाता है.

भारत सरकार ने कबूलनामे के ताजा वीडियो को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में कुलभूषण जाधव मामले में सुनवाई को भटकाने वाला और प्रभावित करने की कोशिश के तौर पर पेश किया है. गौर करने वाली बात है कि 18 मई को आईसीजे ने अपनी सुनवाई में पाकिस्तान को कुलभूषण जाधव की फांसी पर तब तक रोक लगाने को कहा था जब तक कि इस मामले में फैसला पूरा नहीं हो जाता.

इसके साथ ही आईसीजे ने भारत को अपनी याचिका 13 सितंबर तक दायर करने को कहा था. जबकि पाकिस्तान 13 दिसंबर तक अपनी याचिका दायर कर सकता है.

ICJ की कार्रवाई में पूर्वाग्रह शामिल करने की कोशिश

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने इस पर दिए अपने बयान में पूरे मामले को अयोग्य, भ्रामक और झूठे प्रचार के जरिए आईसीजे की कार्रवाई में पूर्वाग्रह शामिल करने की कोशिश बताया है.

हालांकि भारत को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि आईसीजे को कोई बहका सकेगा. आईसीजे ने 15 मई की अपनी सुनवाई में पाकिस्तान से कुलभूषण जाधव के अपराध कबूलनामे का वीडियो बनाने पर रोक लगा दी थी.

कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी और सजा सुनाए जाने पर देश भर में पाकिस्तान के प्रति लोगों का गुस्सा फूट पड़ा

अब कोर्ट के फैसले को किसी तरह से भी प्रभावित करने की पाकिस्तान के किसी भी चाल पर कोर्ट सख्त रवैया अख्तियार कर सकता है. इसके साथ ही पाकिस्तान ने जो दूसरा वीडियो जारी किया है उसके पीछे भी कोई तर्क नहीं दिखता है.

जाहिर है वीडियो जारी करने का वक्त आईसीजे में चल रही मामले की सुनवाई को बल नहीं देता है. बल्कि पाकिस्तान की इस करतूत ने जुड़वां मजबूरियों को उजागर किया है.

पहली मजबूरी घरेलू है जिसके तहत अब तक नवाज शरीफ सरकार को आईसीजे में जाधव मामले में हुई किरकिरी से लोगों की भारी नाराजगी झेलनी पड़ी है. दूसरा राजनीतिक मजबूरी है जिसके तहत आतंकवाद के प्रायोजक के तौर पर पाकिस्तान की छवि फिर दुनिया के सामने आई है. कुलभूषण जाधव महज पाकिस्तान के हाथ की कठपुतली है जिसे नवाज सरकार अपनी दुश्वारियों से निपटने के लिए इस्तेमाल कर रही है.

कुलभूषण मामले में भारत की चिंताओं की परवाह नहीं

एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि भारत चाहे कितनी भी हाय-तौबा मचा ले कि पाकिस्तान ने जाधव मामले में उसे काउंसलर एक्सेस नहीं दी. या जाधव की मां ने जो दया याचिका दायर की उसमें अड़ंगा लगाया. लेकिन हकीकत यही है कि पाकिस्तान को कुलभूषण मामले में भारत की चिंताओं की परवाह नहीं है. इस लिहाज से वो आईसीजे के फैसले से बंधा भी नहीं है.

जाधव मामले से साफ है कि पाकिस्तान दुनिया भर में अपनी छवि को बदलने की कोशिश में लगा हुआ है. पाकिस्तान दुनिया को ये बताना चाहता है कि वो आतंकवाद का प्रायोजक नहीं बल्कि पीड़ित है. इसे साबित करने के लिए पाकिस्तान जाधव को भारत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है.

आईसीजे ने कुलभूषण जाधव मामले में जिस तरह का फैसला सुनाया उससे पाकिस्तान में नवाज शरीफ सरकार की खूब किरकिरी हुई

जाधव को ये कबूल करने पर मजबूर किया गया है कि वो रॉ के इशारे पर बलूचिस्तान में विद्रोहियों को भड़का कर चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के निर्माण में बाधा पहुंचा रहा था.

इसकी आखिर क्या जरूरत है? जैसा कि पहले भी जिक्र किया गया है कि आतंकवाद से जारी संघर्ष में पाकिस्तान के दोगलेपन की कलई खुल चुकी है. अफगानिस्तान में अमेरिका शांति बहाल की कोशिशों में कामयाब नहीं हो पाया है.

गुरुवार को दक्षिणी अफगानिस्तान प्रांत के हेलमंड में एक कार बम धमाका हुआ जिसमें 34 लोगों की मौत हो गई. इसमें 58 से ज्यादा लोग घायल हो गए. आतंकी हमले में मारे गए लोगों में ज्यादातर नागरिक थे जो ईद की तैयारियां कर रहे थे. तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी.

अफगानिस्तान में अमेरिका जीत नहीं रहा

दरअसल हक्कानी नेटवर्क के साथ मिलकर तालिबान युद्ध की आग में जल रहे अफगानिस्तान में शांति बहाली की अमेरिकी कोशिशों को कमजोर कर रहा है. इसे देखते हुए ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में और सेना भेजने पर भी विचार कर रहा है. हाल ही में अमेरिकी रक्षा सचिव जिम मैटीज ने सीनेट को कहा है कि अफगानिस्तान में हम जीत हासिल नहीं कर रहे हैं.

ये हालात तब है जबकि अफगानिस्तान की जमीन पर 3500 अमेरिकी सैनिक हैं और 5000 की संख्या में नाटो की सेना है. सेना के ये जवान उन सभी आतंकियों की तलाश कर रहे हैं जो पाकिस्तान की जमीन के बाहर से सक्रिय हैं.

अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज और नाटो सेना मिलकर एक दशक से ज्यादा समय से तालिबान के खिलाफ जंग लड़ रही हैं

आंकड़े काफी निराशाजनक हैं. वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक वर्ष 2016 के शुरुआती आठ महीनों में 15 हजार अफगान सुरक्षा जवान घायल हुए हैं जबकि 5 हजार से ज्यादा जवानों की मौत हो गई. नागरिकों की मौत का आंकड़ा भी काफी रहा. वर्ष 2016 में 11 हजार नागरिक घायल हुए जबकि 3,495 नागरिकों की मौत हुई.

सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका काफी संदिग्ध है. पाकिस्तान की फौज पर किताब लिखने वाले लेखक प्रोफेसर सी क्रिस्टिन फेयर के मुताबिक अफगानिस्तान में ज्यादातर मौतों के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान जिम्मेदार है. पाकिस्तान ही तालिबान को नियंत्रित करता है. पाकिस्तान ही तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को निर्देश देता है, उसकी सुरक्षा करता है.

तालिबान, हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान सेना की कठपुतली

अमेरिकी खुफिया से जुड़े लोगों का भी मानना है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क दरअसल पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के ही कठपुतली हैं. पाकिस्तान इस तरह की दोमुंही रणनीति अपना कर 9/11 हमले के बाद अमेरिका से अब तक 33 अरब डॉलर की मदद ले चुका है.

यही वजह है कि अमेरिकी सरकार में इसे लेकर काफी नाराजगी है. ट्रंप प्रशासन ने संकेत दे दिए हैं कि पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद में वो कटौती करेगा. यहां तक कि जिन आतंकियों को पाकिस्तान पाल पोस रहा है उन्हें खत्म करने के लिए अमेरिकी सरकार पाकिस्तान की सरजमीं पर अपने ड्रोन भेजेगी.

संकेत तो ये भी मिल रहे हैं कि पाकिस्तान की ‘मेजर नॉन-नाटो एलाई’ (एमएनएनए) स्टेटस को भी कमतर करने पर विचार किया जा रहा है जिससे पाकिस्तान में घोर निराशा का माहौल है. शुक्रवार को आई रिपोर्ट के मुताबिक रिपब्लिकन सांसद टेड पो और डेमोक्रेटिक लॉमेकर रिक नोलन ने पाकिस्तान के ‘मेजर नॉन-नाटो एलाई’ स्टेटस को खत्म करने के लिए संसद में प्रस्ताव दिया है.

माना जाता है कि पाकिस्तान की आर्मी ही तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को कंट्रोल करती है

अमेरिकी लोगों के खून के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार

डेट पो, जिन्होंने बतौर फॉरेन अफेयर्स कमेटी के सदस्य और आतंकवाद पर बनी सब कमेटी के चेयरमैन के तौर पर काम किया है, उनका कहना है कि अमेरिकी लोगों के खून के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना चाहिए.

ये महज इत्तेफाक नहीं है कि पाकिस्तान खुद को आतंकवाद पीड़ित बताकर दुनिया भर की सहानुभूति बटोरने में लगा हुआ है. पाकिस्तान के पास इससे अच्छा दूसरा विकल्प नहीं हो सकता है कि वो जाधव को प्रताड़ित करे और भारत को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में विलेन साबित करे.

लेकिन पाकिस्तान को शायद ही इस बात का इल्म है कि उसकी ये रणनीति उसी पर मजाक साबित हो रही है.