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श्रीलंका में राजनीतिक उथलपुथल: आखिर तीन दिन में कैसे विक्रमसिंघे का PM पद छिना और मिला

इस संघर्ष की शुरुआत तो तब ही हो गई थी जब राष्ट्रपति सिरिसेना को मारने की प्लानिंग में भारत की संलिप्तता की खबर सामने आई थी

FP Staff

पिछले कुछ दिनों से श्रीलंका की राजनीति में काफी हलचल देखने को मिल रही है. सत्ता के शीर्ष पद के लिए चल रहे इस संघर्ष की शुरुआत तो तब ही हो गई थी जब राष्ट्रपति सिरिसेना को मारने की प्लानिंग में भारत की संलिप्तता की खबर सामने आई थी. हालांकि इस उठापटक की औपचारिक शुरुआत शुक्रवार, 26 अक्टूबर को हुई. राष्ट्रपति सिरिसेना ने पहले प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण कराई.

बर्खास्त होने के बाद विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति के इस कदम को अवैध और असंवैधानिक बताया. गौरतलब है कि जब राष्ट्रपति की हत्या की साजिश से जुड़ी खबरें आई थीं. उसके चंद दिनों के भीतर भारत और श्रीलंका ने इसमें भारत की संलिप्तता का खंडन किया था.


इसके बाद एक और खबर आई जिसमें राष्ट्रपति की पार्टी की तरफ से श्रीलंका की संसद में चार रॉ एजेंट होने की बात कही गई. मैत्रीपाला सिरीसेना की पार्टी के ही मंत्री महिंदा अमरवीरा ने कहा था कि कैबिनेट में रॉ से लिंक रखने वाले कुछ मिनिस्टर्स हैं, जिनका नाम उजागर किया जाएगा.

इस पर श्रीलंका सरकार की आलोचना करते हुए विपक्षी पार्टी के नेता और पूर्व राष्ट्रपति महिंगा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे ने कहा कि अमरवीरा और सिरीसेना के आरोप गंभीर हैं. अगर कैबिनेट में रॉ के एजेंट्स हैं, तो उन्हें तुरंत उनके नाम उजागर करने चाहिए.

इसके बाद शुक्रवार को महिंदा राजपक्षे की पार्टी ने अचानक ही प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की संयुक्त राष्ट्र पार्टी (यूएनपी) के साथ वाली गठबंधन की सरकार छोड़ने की घोषणा की. जिसके बाद राष्ट्रपति ने विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर राजपक्षे को प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई.

राष्ट्रपति ने संसद की कार्यवाही भी कर दी थी स्थगित

शनिवार को राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने संसद की कार्यवाही आगामी 16 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी. उनके इस फैसले के बाद देश में राजनीतिक संकट और गहरा गया. वहीं, बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने अपना बहुमत साबित करने के लिए संसद का आपातकालीन सत्र बुलाने की मांग की.

माना जा रहा था कि सिरिसेना का यह कदम नए प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को राहत देने के मकसद से उठाया गया है और इस कदम से राजपक्षे को संसद में बहुमत साबित करने के लिए समय मिल गया है. संसद में राजपक्षे और सिरिसेना के पास कुल 95 सीटें हैं. इस तरह, 225 सदस्यों वाले सदन में साधारण बहुमत के आंकड़े से वे कुछ पीछे हैं.

वहीं, बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसंघे की पार्टी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के पास 106 सीटें हैं और बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने के लिए उन्हें सिर्फ सात सीटें कम पड़ रही हैं. यूएनपी ने दावा किया कि राष्ट्रपति ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि राजपक्षे के पास सदन में बहुमत नहीं है.

जयसूर्या ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र, विक्रमसिंघे फिर बने प्रधानमंत्री

संसद को बर्खास्त करने के राष्ट्रपति सिरिसेना के फैसल के बाद संसद के अध्यक्ष कारु जयसूर्या ने उन्हें पत्र लिखा. इसमें उन्होंने 16 नवंबर तक सदन को निलंबित करने के उनके फैसले पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा कि इससे देश को 'गंभीर और अवांछनीय' परिणाम भुगतने पड़ेंगे.

पत्र में उन्होंने राष्ट्रपति सिरिसेना से विक्रमसिंघे को सरकार के नेता के तौर पर मिले विशेषाधिकार फिर से बहाल करने को कहा था. इस उठापटक में अंत में रविवार को संसद के अध्यक्ष जयसूर्या ने रानिल विक्रमसिंघे को एक बार फिर प्रधानमंत्री के तौर पर मान्यता दे दी.

विषलेशकों का मानना है कि द्वीपिय देश श्रीलंका में चल रही इस राजनीतिक उठापटक के तार काफी हद तक भारत से भी जुड़े हो सकते हैं. वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच ने चेताया है कि यह राजनीतिक उथल-पुथल देश में एक बार फिर से हिंसा के माहौल को जन्म दे सकती है.