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पाक मीडिया: कश्मीर पर धमकी लेकिन जवानों से बदसलूकी पर चुप्पी

पाकिस्तानी मीडिया में भारत को मुंहतोड़ जबाव देने की पाकिस्तानी आर्मी चीफ की धमकी छाई है

Seema Tanwar

भारत में जहां दो फौजियों की मौत और शवों से बदसूलकी किए जाने के बाद माहौल गर्म है, वहीं पाकिस्तानी मीडिया में भारत को मुंहतोड़ जबाव देने की पाकिस्तानी आर्मी चीफ की धमकी हर तरफ छाई है. इसके अलावा हाल में भारत के दौरे पर आए तुर्की के राष्ट्रपति के बयान ने भी पाकिस्तानी मीडिया का ध्यान खींचा है जिसमें उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की.

पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के जिस बयान की चर्चा हो रही है वह उन्होंने नियंत्रण रेखा के पास हाजी पीर सेक्टर में अपने जवानों और अफसरों का हौसला बढ़ाते हुए दिया. उन्होंने जहां भारत की तरफ से किसी भी आक्रमण का भरपूर जवाब देने की बात कही, वहीं यह भी कहा कि पाकिस्तानी सेना के मुंहतोड़ जबाव से मायूस हो कर भारत अपना गुस्सा कश्मीरियों और नियंत्रण रेखा के आसपास के गांवों पर उतार रहा है. पाकिस्तानी आर्मी चीफ ने घाटी में भारत पर सरकारी दहशतगर्दी करने का इल्जाम जड़ते हुए यह भी कहा कि वहां जो हो रहा है, पाकिस्तान उससे मुंह नहीं मोड़ सकता.


दो नस्लें बर्बाद

रोजनामा ‘दुनिया’ ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ के इस बयान को दिलेर बयान बताया है. अखबार ने घाटी में गूंजने वाले आजादी के नारों का हवाला देते हुए लिखा है कि भारत को यह बात अब मान लेनी चाहिए कि कश्मीरी उसके साथ नहीं रहना चाहते हैं.

अखबार के मुताबिक कश्मीरियों की दो नस्लें आजादी के संघर्ष की भेंट चढ़ चुकी हैं और अब भी भारत पैलेट गनों से कश्मीरियों को अंधा कर रहा है और सैकड़ों लोगों की जानें ले चुका है. मारे गए कश्मीरियों को ‘शहीद’ बताते हुए अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है कि पाकिस्तान इस तरह की बर्बरता पर चुप नहीं रह सकता.

‘औसाफ’ ने भी अपने संपादकीय में भी आर्मी चीफ के बयान का जिक्र करते हुए लिखा है कि भारत की तरफ से कंट्रोल लाइन पर किसी भी कदम का भरपूर और निर्णायक जबाव देना होगा और इसके लिए फौज को बेहद चौकस रहने की जरूरत है.

इसके अलावा अखबार ने पिछले दिनों एक भारतीय उद्योगपति सज्जन जिंदल से मिलने के लिए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आड़े हाथ लिया है. अखबार लिखता है कि बदकिस्मती की बात यह है कि भारत के साथ हमारे राजनीतिक नेतृत्व की दोस्तियां कश्मीरियों के जख्मों पर नमक छिड़ने के बराबर हैं.

अखबार की राय में ‘अगर हमारे हुकमरान भारतीय उद्योगपतियों को आंखों पर बिठाएंगे और उनसे अकेले में मिलेंगे तो पाकिस्तान और कश्मीर की जनता में बैचेनी तो फैलेगी ही.‘ अखबार कहता है कि भारत के साथ व्यापार और खेल समेत सभी तरह के संपर्कों को कश्मीर मुद्दा हल होने तक सीमित कर देना चाहिए.

दोस्ती का दम

रोजनामा पाकिस्तान के संपादकीय का शीर्षक है: कश्मीर मुद्दे पर राष्ट्रपति एर्दोगान की मध्यस्थता की पेशकश क्या भारत मानेगा? अखबार कहता है कि एर्दोगान पहले नेता नहीं हैं जिन्होंने कश्मीर मुद्दे को बातचीत से हल करने की जरूरत बताते हुए मध्यस्थता की पेशकश की है.

हालांकि अखबार को यह उम्मीद कम ही है कि भारत ऐसी किसी पेशकश को मानेगा क्योंकि कश्मीर को दोतरफा मसला मानते हुए वह इससे पहले चीन, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की तरफ से ऐसी पेशकशों को खारिज कर चुका है.

बहरहाल, भारत दौरे से ठीक पहले तुर्क राष्ट्रपति ने एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया, उस पर अखबार गदगद है. अखबार ने एर्दोगान के हवाले से लिखा है- पाकिस्तान के साथ हमारा खून का रिश्ता है और वहां हमारे मुसलमान भाई बसते हैं.

अकेला रास्ता

‘नवा ए वक्त’ लिखता है कि कश्मीर पर ना तो भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को मान रहा है और न ही इस मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत के दरवाजे खोल रहा है, तो फिर इसके हल के लिए ताकत के इस्तेमाल के सिवाय और क्या रास्ता बचता है.

अखबार की राय है कि तुर्की पाकिस्तान का भरोसेमंद दोस्त है और इसीलिए अगर कल को भारत की तरफ से उसकी सुरक्षा को खतरा होता है, तो तुर्की पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा होगा. अखबार को यह भी उम्मीद है कि राष्ट्रपति एर्दोगान भारत दौरे में मोदी सरकार को पाकिस्तान की सुरक्षा के हवाले से ठोस पैगाम देकर आए होंगे.

रोजनामा ‘जंग’ लिखता है कि तुर्की के राष्ट्रपति ने मध्यस्थता की पेशकश कर भारत को यह मुद्दा शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का मौका दिया है. अखबार के मुताबिक विश्व बिरादरी और खासकर बड़ी ताकतों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह भारत पर दबाव डाल कर बातचीत के जरिए दशकों से खिंचे आ रहे इस मसले का हल निकालने का रास्ता तैयार करें.