रविवार को इंडोनेशिया के लोकप्रिय पर्यटन स्थल लोम्बोक में काफी तेज भूकंप आया था. ये भूकंप लोगों के लिए तबाही बनकर आया. इसमें 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए. इस दौरान काफी सारी इमारतों को भी नुकसान पहुंचा. हादसे के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है.
दरअसल ये वीडयो एक मस्जिद का है. इस वीडियो में मौलाना के साथ कुछ और लोग नमाज पढ़ते हुए नजर आ रहे हैं. इस दौरान अचानक लोगों को भूकंप के झटके महसूस होते हैं और वो वहां से भाग जाते हैं. लेकिन हैरानी वाली बात ये होती है कि मौलाना भूकंप के बावजूद नमाज पढ़ता रहता है. भूंकप के तेज झटकों से मस्जिद बुरी तरह हिल जाती है, लेकिन मौलाना दीवार पकड़ लेता है और नमाज अदा करता है. उसको देख कर वहां से भागे हुए लोग भी वापस आते हैं और दोबारा नमाज पढ़ना शुरू कर देते हैं.
सोशल मीडिया पर ये वीडियो इस वक्त खूब वायरल हो रहा है. लोग मस्जिद में नमाज पढ़ रहे इन लोगों की हिम्मत की दाद दे रहे हैं. लोगों का कहना है कि भूकंप के दौरान नमाज पढ़ रहे इन लोगों की आस्था की दाद देनी चाहिए जिसे भूकंप भी नहीं हिला सका. ट्विटर पर इस घटना की वीडियो शेयर करते हुए मौलाना की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं. कुछ लोग तो इसे चमत्कार का नाम दे रहे हैं. उनका कहना है कि भूकंप के तेज झटकों के बीच लोगों को खरोंच तक नहीं आई ये चमत्कार के अलावा और कुछ नहीं.
किस तरह की आस्था है ये?
लेकिन गौर से देखने पर ये पूरी घटना एक बेवकूफी से ज्यादा और कुछ नहीं है. ये चमत्कार नहीं उनकी किस्मत है कि उनको कुछ नहीं हुआ. वरना इस घटना में उनकी जान भी जा सकती थी और पीछे रह जाता उनका रोता-बिलखता पूरा परिवार. क्या जानबूझकर अपनी जिंदगी को जोखिम में डाल देना समझदारी है?
क्या ये घटना वाकई तारीफ के लायक है?
वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि भूंकप के तेज झटकों से मस्जिद बुरी तरह हिल रही है. सर पर जान का खतरा मंडरा रहा है. इसके बावजूद नमाज पढ़ते रहना कहां की समझदारी है? क्या आस्था लोगों की जान से बढ़ कर हो गई है? अगर नमाज पढ़ रहे इन लोगों को कुछ हो जाता तो उनके परिवारों का क्या होता? उनके बच्चों की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए बर्बाद हो जाती.
एक खुदकुशी से ज्यादा और कुछ नहीं
जो लोग सोशल मीडिया पर नमाज पढ़ रहे इन लोगों की तारीफ कर रहे हैं आखिर वो किस बिना पर इस घटना को तारीफ के लायक समझ रहे हैं? एक तरफ जहां लोग भूंकप में किसी तरह अपनी जान बचाने के रास्ते तलाश रहे थे वहीं दूसरी तरफ खुद की जान जोखिम में डालकर नमाज पढ़ते जाना किस तरह की आस्था है? ये किसी खुदकुशी से कम नहीं है.
रविवार को आए इस भूंकप की तीव्रता 7 थी. इसमें कई लोग बेघर हो गए. कई लोगों को अभी भी मलबे से निकाला जा रहा है. किसी का पूरा का पूरा परिवार नष्ट हो गया तो किसी के बच्चे अनाथ हो गए. ऐसे में आस्था के नाम पर खुद की जान जोखिम डालना और कुछ हो जाने पर अपने परिवर को रोता-बिलखता छोड़ देना बेवकूफी से ज्यादा और कुछ नहीं है.