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मोदी की इजरायल यात्रा से भारत को मिला एक 'स्पेशल पार्टनर'

रूस और अमेरिका के रिश्ते सामान्य हो सकते हैं तो फिर इजरायल और भारत के रिश्ते गहरे क्यों नहीं?

Kinshuk Praval

इजरायल को 70 साल से एक खास पल का इंतजार था. पीएम मोदी ने उस इंतजार को खत्म कर दिया और लम्हों को ऐतिहासिक बना दिया. बतौर प्रधानमंत्री मोदी की इजरायल यात्रा अब तक की सबसे अलग और खास है. इस यात्रा के मायने सिर्फ इतने भर से समझे जा सकते हैं कि पीएम ने फिलिस्तीन के रामल्ला को अपना दूसरा स्टेशन नहीं बनाया.

अब तक का इतिहास रहा है कि अगर कोई भी मंत्री इजरायल गया तो फिलिस्तीन जाना भी जरूरी रहा. उसकी खास वजह ये रही कि भारत अरब देशों की नाराजगी मोल लेने की हालत में नहीं था. वहीं दूसरी तरफ देश में मुस्लिम आबादी के बड़े हिस्से को देखते हुए भी राजनीतिक दल या मंत्री वोटबैंक के चलते ‘सियासी गुस्ताखी’ नहीं करना चाहते थे. इन सबके बावजूद इजरायल का भारत के साथ ‘गोपनीय प्रेम’ बरकरार रहा.


आज वही छिपा हुआ प्यार तब खुल कर दुनिया के सामने आ गया जब इजरायल ने ‘मोदी वेलकम’ में पलक पावड़े बिछा दिये. प्रोटोकाल तोड़ते हुए प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एयरपोर्ट पर मोदी की अगवानी की. रेड कार्पेट पर इस्तकबाल करते हुए कहा – स्वागत है मेरे दोस्त.

पीएम मोदी ने भी इजरायल का दिल जीतते हुए ‘शलोम’ कह कर शुरुआत की और गर्मजोशी से स्वागत का धन्यवाद किया.

70 साल में मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इजरायल के साथ नए और खुले संबधों का हौसला दिखाया.

मोदी के गर्मजोशी से स्वागत के लिये पीएम नेतन्याहू के साथ 11 कैबिनेट मिनिस्टर्स मौजूद थे. ये तस्दीक करने के लिये काफी है कि इजरायल के दिल में भारत के लिये कितनी जगह है.

करगिल युद्ध में इजरायल की ‘गुप्त मदद’

1992 से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध शुरू हुए. 1992 की नरसिम्हा राव सरकार ने इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंधों की आधारशिला रखी. हालांकि इसकी एक बड़ी वजह सोवियत संघ का बिखराव भी था. जिसके बाद भारत को रक्षा जरूरतों के साजो सामान के लिये एक बड़े साझेदार की जरूरत थी.

करगिल का युद्ध इजरायल के लिये रिश्तों को मजबूत करने का मानो एक मौका था. करगिल युद्ध के बाद इजरायल ने भारत की तमाम रक्षा जरूरतों को पूरा किया. करगिल युद्ध के वक्त भारत ने इजरायल से खरीदे हुए लेजर गाइडेड बम और एरियल ड्रोन का इस्तेमाल किया.

इजरायल ने भारत को मिसाइल, एंटी मिसाइल सिस्टम, यूएवी, सरफेस टू एयर मिसाइल, लेज़र गाइडेड बम, बॉर्डर पर चौकस निगरानी के लिये टोह लेने वाला सर्विलांस, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम मुहैया कराया है. आज भारत और इजरायल के बीच रक्षा सौदों की कीमत 1 अरब डॉलर पहुंच चुकी है.

केंद्र में बीजेपी के आने के बाद बढ़ी गर्मजोशी

भारत और इजरायल के रिश्तों में नई गर्माहट की एक बड़ी वजह केंद्र में बीजेपी सरकार का आना भी है.

जिस तरह सत्तर के दशक में जनसंघ का झुकाव इजरायल की तरफ था उसी तरह बीजेपी का भी इज़रायल को लेकर रुख हमेशा साफ रहा.  सत्ता में आने के बाद डेढ़ साल के भीतर गृहमंत्री राजनाथ सिंह , राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का इजरायल दौरा भारत की विदेश नीति का संकेत दे चुका था.

इससे पहले साल 2003 में केंद्र की वाजपेयी सरकार ने इजरायल के प्रधानमंत्री एरियल शेरॉन को भारत आने का न्योता दिया था.

लेकिन इसके ठीक विपरीत यूपीए सरकार अरब देशों की वजह से इजरायल के साथ रिश्तों को लेकर सचेत रहती रही. यूपीए सरकार ने इजरायल के साथ कृषि और व्यापार को ही ज्यादा तवज्जो दी. दोनों देशों के बीच के रिश्ते को पुरानी सरकारों ने खुल कर कभी नहीं जताया.

लेकिन भारत ने जिस तरह अरब देशों की परवाह न करते हुए इजरायल के साथ नए रिश्तों की शुरुआत की वो एक ऐतिहासिक फैसले से कम नहीं. इस कदम से अब आतंक को प्रायोजित करने वाले पाकिस्तान के लिये भी संदेश साफ है कि भारत रक्षा और सुरक्षा के मामले में अपनी चली आ रही विदेश नीति की लकीर का फकीर नहीं है. भारत ने इजरायल के साथ चले आ रहे रिश्तों के ‘गुप्त युग’ को खत्म कर दिया.

स्पेशल पार्टनर के साथ दोस्ती का नया ऐलान भारत के भविष्य के लिये निर्णायक साबित हो सकता है. इसमें दो राय नहीं है कि आतंकवाद से निपटने में इजरायल भारत के लिये एक बेहतर साझेदार साबित होगा. खुद इजरायल का मानना है कि पाकिस्तान से भारत में फैल रहे आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में इजरायल पूरी मदद करेगा.

इजरायल ने हमास और लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी संगठन को एक समान बताते हुए अपनी हिफाजत को जायज ठहराया है.

क्यों अहम है ये नई दोस्ती?

साइबर और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में इजरायल की श्रेष्ठता की दुनिया कायल है. दुनिया में साइबर सिक्योरिटी इन्वेस्टमेंट का 20 प्रतिशत हिस्सा इजरायल का होता है. साइबर हमलों से बचने के लिये इजरायल की फुल प्रूफ सिक्यूरिटी न सिर्फ चीन की हैकिंग को रोक सकती है बल्कि आतंकियों के साइबर नेटवर्क को भी ध्वस्त कर सकती है.

इसके अलावा पानी और कृषि क्षेत्र में इजरायल ने जिस तकनीक के साथ तरक्की की है वो काबिले तारीफ है.

भारत के लिये इजरायल की टेक्नोलॉजी वरदान साबित हो सकती है. महाराष्ट्र के विदर्भ, यूपी के बुंदेलखंड, गुजरात के सौराष्ट्र में पानी की कमी को इजरायल की वॉटर हारवेस्टिंग टेक्नोलॉजी नया जीवन दे सकती है.

भारत इजरायल रिश्तों का अंतर्राष्ट्रीय महत्व

भारत और इजरायल के मजबूत रिश्तों की वजह से अमेरिका के साथ भी रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह पीएम मोदी का वेलकम किया उससे दुनिया में भारत के लिये रिश्तों का नया समीकरण तैयार हो रहा है. हालांकि भारत के लिये मुश्किल ये भी है कि उसने फिलिस्तीन की स्वतंत्रता का समर्थन किया है. साथ ही उसे ईरान और खाड़ी देशों के साथ अपनी ऊर्जा समझौतों का भी ध्यान रखना होगा.

लेकिन भारत ने जिस तरह से अरब देशों के साथ अपना संतुलन बनाया है उसे देखते हुए लगता है कि भारत-इजरायल रिश्तों को लेकर उसकी नई नीति का विरोध नहीं होगा. वक्त की नजाकत देखते हुए भारत इजरायल की अहमियत को नजरअंदाज नहीं कर सकता है. यही वजह है कि भारत अपने स्पेशल पार्टनर के साथ अब रिश्तों का खुला ऐलान कर चुका है. अगर रूस और अमेरिका के रिश्ते सामान्य हो सकते हैं तो फिर इजरायल और भारत के रिश्ते गहरे क्यों नहीं?