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मोदी रिश्ते क्यों सुधारेंगे, चुनाव जो लड़ना है: पाक मीडिया

भारत ने पाकिस्तान के साथ विदेश मंत्री स्तर की बातचीत रद्द कर दी उसके बाद पाकिस्तानी मीडिया में भारत की आलोचना शुरू हो गई है. पाकिस्तान के एक अखबार ने कहा है, 'भारत अपनी आदत के मुताबिक डंक मारेगा ही'

Seema Tanwar

भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की मुलाकात को रद्द करने का भारत का फैसला पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में छाया हुआ है. इस फैसले ने पाकिस्तानी अखबारों को भारत के खिलाफ अपनी नफरत और गुस्से को जाहिर करने का एक और मौका दे दिया है. कई अखबारों ने भारत पर हठधर्मिता का आरोप लगाते हुए लिखा है कि उसने शांति का एक और मौका गंवा दिया है.

पाकिस्तानी मीडिया ने अपनी आदत के मुताबिक आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की जायज आपत्तियों पर ध्यान दिए बिना कश्मीर मुद्दे पर पुराना राग अलापा है. कई अखबार भारत के फैसले की वजह अगले साल होने वाले चुनावों को बता रहे हैं, तो कोई इसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को को खुश करने की कोशिश बता रहा है.


‘पाक की साख बढ़ेगी’

‘औसाफ’ लिखता है कि विदेश मंत्रियों की मुलाकात से बर्फ पिघलने की उम्मीद थी लेकिन इस मुलाकात पर भारत के इकरार के बाद इनकार से शांति का एक और अवसर बेकार चला गया. अखबार कहता है कि भारत ने अपनी हठधर्मिता से दुनिया को संदेश दिया है कि वह अमन नहीं चाहता. अखबार कहता है कि पाकिस्तान ने कश्मीर में बीएसएफ जवानों की मौत के मामले की साझा जांच की पेशकश की, लेकिन इसकी बात ही नहीं कर रहा है.

अखबार लिखता है कि विदेश मंत्रियों की मुलाकात रद्द करने के भारत के फैसले से दुनिया में पाकिस्तान की साख बेहतर होगी. क्योंकि पाकिस्तान आज शांति की तरफ खड़ा है और भारत शांति की कोशिशों को नाकाम बना रहा है.

रोजनामा ‘दुनिया’ ने अपने संपादकीय में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के इस ट्वीट को प्रमुखता दी है जिसमें उन्होंने भारतीय नेतृत्व की तुलना बड़े पदों पर बैठे छोटे लोगों से की है. अखबार लिखता है कि भारत में अगले साल अप्रैल या मई में चुनाव होने हैं, ऐसे में बीजेपी की सरकार पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर करके पाकिस्तान विरोधी अपने चुनावी नारे को छोड़ने को तैयार नहीं है. अखबार के मुताबिक, हो सकता है कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएं, पाकिस्तान के साथ ऐसे बर्ताव को और बढ़ावा दिया जाए.

अखबार की राय में, पाकिस्तान को भारत के साथ बातचीत को लेकर बेताबी दिखाने की जरूरत नहीं है, बल्कि कोशिश की जाए कि भारत के हथकंडों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब करें.

इमरान को नसीहत

वहीं रोजनामा ‘पाकिस्तान’ ने इमरान खान को सलाह दी है कि वह भारत के साथ बातचीत का खयाल पालने की बजाय देश की अंदरूनी समस्याओं को हल करने पर अपना ध्यान लगाएं.

अखबार कहता है कि अगले चुनाव में अगर मोदी जीत गए तो हो सकता है कि बातचीत का कोई सिलसिला चल निकले और अगर मोदी चुनाव हार गए तो बातचीत फिर नई सरकार से ही होगी.

अखबार की इमरान खान सरकार को सलाह है कि अब बातचीत को लेकर कोई गर्मजोशी ना दिखाए, क्योंकि अगर उसका जवाब भी ऐसा ही मिला तो यह समझदारी नहीं होगी. अखबार की राय में, इतने साल बातचीत के बिना निकल गए और कोई आसमान नहीं गिरा, इसलिए अगर चंद महीने या चंद साल और बातचीत नहीं होगी तो इसमें परेशानी क्या है.

रोजनामा ‘नवा ए वक्त’ लिखता है कि पाकिस्तान के साथ संबंध बिगाड़ना भारत की मजबूरी है ताकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर के लिए आवाज न उठा सके. अखबार कहता है कि पाकिस्तान को भारत के साथ रिश्तों को लेकर किसी खुशफहमी में रहने की जरूरत नहीं है क्योंकि ‘वह अपनी आदत के मुताबिक डंक मारेगा ही’.

अखबार कहता है कि पाकिस्तान को पूरी तैयारी के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिस्सा लेना चाहिए ताकि इस विश्व मंच पर कश्मीर में ढाए जा रहे जुल्मों को दुनिया के सामने लाया जा सके. अखबार ने इमरान खान सरकार को हिदायत दी है कि कश्मीर पर वह पाकिस्तान के लंबे समय से चले आ रहे सैद्धांतिक रुख में कोई कमजोरी ना आने दे.

दोस्ती के खतरे

‘जसारत’ ने लिखा है कि अमेरिका को खुश करने के चक्कर में भारत ने विदेश मंत्रियों की मुलाकात को रद्द किया है. अखबार लिखता है कि अमेरिका की चाकरी और चापलूसी के बावजूद पाकिस्तान को राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से लताड़ ही मिल रही है और पाकिस्तान पर हर रोज नई पाबंदियां लगाई जा रही हैं.

अखबार की राय में, अमेरिका को खुश करने के लिए भारत भी पाकिस्तान से तनाव बढ़ा रहा है. साथ ही अखबार ने अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का हवाला देते हुए लिखा है कि अमेरिका की दोस्ती दुश्मनी से ज्यादा खतरनाक होती है. अखबार के मुताबिक, पाकिस्तान तो कब से यह दोस्ती भुगत रहा है, लेकिन भारत को यह बात समझने में जरा देर लगेगी.