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डोकलाम में ड्रैगन को डराने में कामयाब रहा भारत, अब नजरें 'डोवाल डॉक्ट्रिन' पर

सिक्किम-भूटान-तिब्बत के त्रिमुहाने पर चीन को सड़क बनाने से रोक कर भारतीय सेना मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर चुकी है

Kinshuk Praval

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर गतिरोध जारी है. डोकलाम से सेना हटाने को लेकर भारत अपने कदम वापस खींचने को तैयार नहीं है. माना जा रहा है कि 26 जुलाई से बीजिंग में ब्रिक्स देशों के एनएसए की बैठक अजित डोवाल शामिल हो सकते हैं. जहां एक कूटनीतिक प्रयास के जरिये सीमा विवाद को सुलझाने की उम्मीद है. हालांकि इसकी एक झलक जर्मनी के हैम्बर्ग में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात को देखकर समझा जा सकता है.

लेकिन अभी की जो स्थिति है वो साफ है कि भारत सीमा से सेना नहीं हटाएगा. चीन की तरफ से लगातार उकसावे वाले बयानों के बावजूद भारत इस बार चीन के सामने मजबूती से डटा हुआ है. चीन कभी 62 की जंग का सबक याद दिलाने की कोशिश करता है तो कभी जंग की धमकी भी देता है.


धमकियों के बावजूद भारत की मांग है कि चीन डोकलाम के इलाके से पीछे हटे. भारत का रुख साफ है कि विवादित डोकलाम इलाके में सड़क निर्माण यथास्थिति में बदलाव लाने वाले हैं. साल 2012 में भारत और चीन में ये सहमति बनी थी कि विवादित डोकलाम इलाके में भारत,चीन और भूटान की बातचीत के आधार पर सीमा निर्धारण किया जाएगा. लेकिन अब चीन की गतिविधियां सहमति का उल्लंघन कर रही हैं.

पीछे पहले कौन हटेगा ये बड़ा सवाल

डोकलाम पर चीन अड़ा हुआ है और इलाके से वापस लौटने के लिये तैयार नहीं है. चीन इस समय जम्फेरी रिज से दो किलोमीटर दूर और बतांग ला दर्रा के दक्षिणी हिस्से के पास है जिसे भारत त्रिमुहाने का हिस्सा मानता है. अगर चीन किसी भी वजह से इस त्रिमुहाने से लौटने को तैयार हो जाता है तब भारत के भी भूटान की सीमा में रहने की जरुरत नहीं होगी. लेकिन चीन के पीछे हटने से उसकी हेकड़ी पर असर पड़ेगा जिसके चलते वो पीछे हटने के बारे में नहीं सोच सकता.

अगर दोनों ही देशों के बीच कोई समझौता नहीं होता है तो बहुत मुमकिन है कि दोनों ही देश अपनी अपनी सेनाओं को लंबे समय तक इलाके में रहने दे. इससे पहले भी साल 1987 में अरुणाचल प्रदेश में समदोरांग चू में दोनों की सेना कई महीने तक आमने सामने रहीं थी. उस समय के सेना प्रमुख जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी के नेतृत्व में हुए ऑपरेशन फाल्कन ने चीन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.

इस बार भी आमना-सामना होने पर भारत की कोशिश है कि वो चीन को डोकलाम में सड़क बनाने से रोक कर रखे. इसमें भारत कामयाब भी हुआ है. भारतीय जवानों के विरोध की वजह से चीनी सैनिकों ने एक बार भी रोड बनाने की कोशिश नहीं की है.

सामरिक नजरिये से देखें तो भारत डोकलाम में अभी चीन पर हावी है. चीन डोकलाम को लेकर भारत पर हमला करने जैसा आत्मघाती कदम भी नहीं उठाना चाहेगा. साल 1967 और 1987 में चीन भारत की सैन्य क्षमता देख चुका है. खुद रक्षामंत्री अरूण जेटली कह चुके हैं कि 1962 और 2017 के भारत में बहुत फर्क है. सबसे बड़ा फर्क ये है कि भारत परमाणु संपन्न देश है. वहीं आज भारत के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े दोस्तों की कमी नहीं है.

चीन भारत की बढ़ती ताकत को बेहतर समझता है. ऐसे में चीन भी चाहेगा कि दोनों देशों के बीच कूटनीतिक वार्ता के जरिये कोई सम्मानजनक हल निकाला जाए. हालांकि उससे पहले वो अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अपनी हेकड़ी दिखाने के लिये लगातार भारत के खिलाफ उकसावे वाले बयान देता रहेगा.

भारत के लिये यहां हार की या फिर अपमान की कोई बात नहीं है. भारत ने जिस तरह से त्रिमुहाने पर चीन को सड़क बनाने से रोका है इसका संदेश चीन के लिये बेहद सख्त गया है.

दोनों देशों की सेना के बीच 16 जून को आमने-सामने टकराव की स्थिति तब पैदा हुई थी जब डोकलाम में चीनी सेना के सड़क बनाने से रोका था. इस इलाके का एक हिस्सा भूटान के पास भी है. चीन का इस इलाके को लेकर  भूटान के साथ भी विवाद है. चीन इसी विवादित इलाके में सड़क निर्माण कर रहा है जिसे भारतीय सेना ने रोकने की कोशिश की.

सिक्किम-भूटान-तिब्बत के त्रिमुहाने पर चीन के सड़क बनना भारत की सुरक्षा के लिये रणनीतिक तौर पर बहुत संवेदनशील हैं. भारतीय जवानों के विरोध के बाद चीन ने न सिर्फ भारतीय सेना पर घुसपैठ का आरोप लगाया बल्कि नाथू ला दर्रा बंद कर मानसरोवर यात्रा भी रुकवा दी.जवाब में भारत चीन के उकसावे वाले बयानों के बावजूद डोकलाम में डटा हुआ है. लगभग तीन सौ जवान टेंट लगा कर जमे हुए हैं.

तकरीबन एक महीना बीतने वाला है और स्थिति धीरे धीरे गंभीर होती जा रही है. चीन का आरोप है कि भारत ने उसकी सीमा के भीतर घुसपैठ की है. जबकि भारत का साफ जवाब है कि वो भूटान की सीमा के पास रखवाली कर रहा है. अगर भारत चीन की बात मानकर दबाव के चलते अपनी सेना हटाता है तो इससे चीन के अतिक्रमण का रास्ता साफ हो जाएगा. वो सड़क बना कर अपने मंसूबों को पूरा कर सकता है.

भारत बिना बातचीत के एकतरफा फैसला लेकर सेना कभी नहीं हटाएगा क्योंकि इससे उसकी साख को भी धक्का पहुंचेगा. वहीं दूसरी तरफ जिस जगह भारतीय सेना के जवान डटे हुए हैं वहां किसी भी तरह की रसद पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं है. ऐसे में भारत जल्दबाजी में दबाव में आ कर चीन के सामने झुकेगा नहीं क्योंकि कूटनीतिक तरीके से कई विकल्प उसके पास हैं.