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भारत-चीन सीमा विवाद : बहुत खतरनाक है इस बार ड्रैगन की चाल

डोकलाम पठार के जरिए पूर्वोत्तर के इलाके को शेष भारत से काट सकता है चीन

Sumit Kumar Dubey

पिछले दिनों रूस में आयोजित एक कांफ्रेंस में बोलते हुए भारत के पीएम मोदी ने कहा था कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद होने के बावजूद पिछले 40-50  साल से बॉर्डर पर एक भी गोली नहीं चली है. मोदी के इस बयान की चीन में भी काफी सराहना हुई थी. और दुनिया भर में माना जा रहा था कि भारत और चीन अपने सीमा विवाद को बातचीत से निपटाने में सक्षम हैं.

लेकिन 40-50 साल पहले यानी सितंबर 1967 में भारत और चीन के बीच सीमा पर आखिरी बार जिस इलाके में जोरदार फायरिंग हुई थी, सिक्किम के बॉर्डर का वही इलाका इस वक्त दोनों देशो के की सेनाओं के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बन गया है. सिक्किम के बॉर्डर पर ताजा विवाद में दोनों सेनाओं के बीच हुआ विवाद इतना गंभीर है कि अगर इसे जल्दी ही नहीं सुलझाया गया तो बात दोनों सेनाओं के बीच 'धक्का-मुक्की' से आगे बढ़ सकती है.


पिछली घुसपैठों से अलग है इस बार का मसला

यूं तो भारत और चीन के बीच सीमा पर वक्त-वक्त पर अतिक्रमण की खबरें आती रहती हैं. लेकिन इस बार यह घटना इतनी बड़ी है कि इसे साल 2013 दौलतबेग ओल्डी सेक्टर के मामले से भी ज्यादा गंभीर माना जा रहा है. पिछले मामलों के उलट इस बार चीनी मीडिया भारत के प्रति बेहद सख्त भाषा का इस्तेमाल कर रहा है . और ग्लोबल टाइम्स ने तो भारत को सबक सिखाने की चुनौती भी दे डाली है.

चीन ने इस बार की घटना के विरोध में कूटनीतिक कदम उठाते हुए कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा तक को रोक दिया है. यानी इस बार यह मामला चुमार, डेमचौक और चेपसांग के इलाकों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की पिछली घटनाओं से अलग है.

कैसे बढ़ा तनाव

दरअसल चीन का दावा है कि भारत ने डोकलाम सेक्टर के जोम्पलरी इलाके में 4 जून को सड़क निर्माण कर रहे उसके सैनिकों को रोक दिया. और उनके साथ हाथापाई भी की. इसके बाद अगले दिन चीनी सैनिकों ने भूटान की सीमा में स्थित भारत के दो अस्थाई बंकर गिरा दिए.

हालात इस वक्त इतने तनावपूर्ण हैं कि दोनों देशों के करीब 1000-1000 सैनिकों ने इस इलाके में डेरा डाल लिया है.भारतीय सेना की 17वीं डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग खुद इस मामले को देख रहे हैं. भूटान के साथ भारत का समझौता होने के कारण उसकी संप्रभुता की जिम्मेदारी भारत की ही है.

क्यों अहम है डोकलाम का पठार

269 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का यह इलाका भारत,चीन और भूटान की सीमाओं के पास है. यही वह इलाका है जहां तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं.

1914 की मैकमोहन रेखा के मुताबिक यह इलाका भूटान के अधिकार में है. जबकि चीन इस लाइन को मानने से ही इनकार करता है. और वक्त-वक्त पर उसके सैनिक भूटान की सीमा का अतिक्रमण करते रहते हैं.

डोकलाम के पठार की रणनीतिक रूप से इस इलाके में बेहद अहमियत है. चंबी घाटी से सटा हुआ होने के चलते चीन इस पठार पर अपनी सैन्य पोजीशन को मजबूत करना चाहता है.

चीन की कोशिश है कि इस इलाके में सड़कों का जाल बिछाया जाए ताकि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में जल्द से जल्द इस इलाके में सैन्य मदद पहुंचाई जा सके. डोकलाम के पठार पर चीन की इसी मंशा ने भारत को सख्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है.

क्या हो सकता है ड्रैगन का प्लान

दरअसल डोकलाम के पठार से सटी चंबी घाटी ही वह इलाका है जहां से पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाले इलाके के रूप में  सिलीगुड़ी ही एक मात्र संकरी पट्टी है.

युद्ध की भाषा में इसे ‘ चिकन नेक’  कहा जाता है. यानी अगर इस इलाके पर चीन का कब्जा हो गया तो वह बड़ी आसानी से पूर्वोत्तर को शेष भारत से काट सकता है. चंबी घाटी से भारत की यह दुखती रग यानी ‘चिकन नेक ‘ महज 50 -60 किलोमीटर ही दूर है.

यानी डोकलाम के पठार पर चीन की मजबूत स्थिति भूटान ही नही बल्कि भारत की संप्रभुता के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती है. यही वजह है कि भारतीय सेना इस घटना पर पूरा एहतियात और चौकसी बरत रही है और भारत के सेनाध्यक्ष जनरल विपिन सिंह रावत भी हालात का जायजा लेने उस इलाके में पहुंचे हैं.