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जीत के बावजूद मर्केल को चैन की सांस नहीं लेने देंगे धुर-दक्षिणपंथी

दक्षिणपंथी उभार आने से मर्केल की कंजर्वेटिव पार्टी और मध्य-वाम सोशल डेमोक्रेट दोनों कमजोर हुए

Bhasha

चुनाव में चौथी बार जीत हासिल करने के बाद जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का सामना अब धुर-दक्षिणपंथी विपक्ष और गठबंधन संबंधी कठिन बातचीत से होगा.

चुनाव को काफी बोरियत भरा माना जा रहा था लेकिन इसके नतीजे चौंकाने वाले हैं. दक्षिणपंथी उभार आने से मर्केल की कंजर्वेटिव पार्टी और मध्य-वाम सोशल डेमोक्रेट दोनों कमजोर हुए. दोनों के लिए दशकों में ये नतीजे काफी खराब हैं.


स्थिरता और निरंतरता के वादे पर बीते 12 वर्षों से चल रहे मर्केल के सीडीयू/सीएसयू ब्लॉक को 32.9 फीसदी मत मिले जबकि मार्टिन सेल्ज की सोशल डेमोक्रेट्स को 20.8 फीसदी मत मिले.

मर्केल की शरणार्थी संबंधी नीति की कट्टर विरोधी है एएफडी

इस्लाम विरोधी दल अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) 13 फीसदी मतों के साथ तीसरा सबसे बड़ा दल बना. इस दल ने मर्केल की आव्रजन और शरणार्थी संबंधी नीति को लेकर पर उनका विरोध करने का संकल्प जताया.

जर्मनी की संसद बुनडेस्टेग चैंबर में धुर-दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी दर्जनों सांसदों के प्रवेश के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के जर्मनी में एक ठहराव खत्म हुआ है जिसे वहां के एक बड़े अखबार बाइल्ड डेली ने ‘राजनीतिक तूफान’ करार दिया है.

अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी के एलेक्जेंडर गॉलैंड ने कहा, ‘हम हमारा देश वापस लेंगे.’ हालांकि अन्य दलों ने एएफडी के साथ मिलकर काम करने की संभावना से इनकार कर दिया है. एएफडी के नेताओं ने मर्केल को ‘देशद्रोही’ बताया जिसकी वजह यह है कि मर्केल ने वर्ष 2015 से दस लाख शरणार्थियों को प्रवेश की इजाजत दी है.