लंदन की टैक्सियों पर बलूचिस्तान की आजादी के हक में नारे लिखे जाने पर पाकिस्तानी उर्दू मीडिया उबल रहा है. पाकिस्तान की सरकार ने इसे अपनी संप्रुभता पर हमला बताया है. इस बारे में ब्रिटेन से बाकायदा विरोध दर्ज कराया गया है. पाकिस्तान के कई अखबारों ने कहा है कि ब्रिटेन को पाकिस्तान विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देना चाहिए. साथ ही, इन गतिविधियों के पीछे भारत का हाथ बताया गया है.
इसके अलावा, पिछले दिनों पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बेटी दीना वाडिया के निधन पर भी कई पाकिस्तानी अखबारों ने संपादकीय लिखे हैं.
कश्मीर का बदला बलूचिस्तान में?
‘नवा ए वक्त’ ने लिखा है कि पाकिस्तान की विदेश सचिव तहमीना जंजुआ ने ब्रिटेन के हाई कमीश्नर थॉमस ड्रयू से टेलीफोन पर बात की और लंदन में टैक्सियों पर दर्ज ‘फ्री बलूचिस्तान’ के नारे और अन्य माध्यमों से पाकिस्तान की भौगोलिक संप्रभुता और खुदमुख्तारी के खिलाफ नारे प्रसारित करने पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है.
अखबार लिखता है कि पाकिस्तान से बलूचिस्तान को अलग करने के लिए कुछ लोग इस प्रांत में सक्रिय हैं तो कुछ विदेशों में बैठकर झूठ, फरेब और बेबुनियाद आरोपों के जरिए पाकिस्तान के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं.
अखबार की राय में, कुछ जागीदार लंबे समय से बलूचिस्तान को अलग करने का सपना देख रहे हैं और इन्हीं अलगाववादियों को पाकिस्तान के दुश्मन अपने मक्कार इरादों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और भारत इनमें सबसे ऊपर है. अखबार की राय में कश्मीर का बदला बलूचिस्तान में लेने के दावे और बलूचिस्तान में भारत की दखलंदाजी इसका सबूत है.
अखबार ने एक बार फिर भारत पर अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए लिखा है कि अफगान हुकमरान मुसलमान होने के बावजूद भारत की कठपुतली बनते हुए पाकिस्तान में दखलंदाजी को आसान बना रहे हैं.
निशाने पर चीनी कोरिडोर
‘एक्सप्रेस’ लिखता है कि लंदन में अगर यह पाकिस्तानी विरोधी मुहिम चल रही है तो जाहिर है कि इसे कोई न कोई फंड भी कर रहा होगा क्योंकि फंडिंग के बिना ऐसी मुहिम नहीं चलायी जा सकती. अखबार का कहना है कि लंदन जैसी ही मुहिम कुछ दिन पहले स्विटजरलैंड के शहर जेनेवा में भी देखने को मिली थी.
अखबार लिखता है कि पाकिस्तान के दुश्मनों की कोशिश है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर को नाकाम किया जाए और इस मकसद को हासिल करने के लिए अब बलूचिस्तान को टारगेट किया जा रहा है. अखबार के मुताबिक बलूचिस्तान में ही ग्वादर पोर्ट है, यहीं प्राकृतिक संसाधनों के भंडार हैं और बलूचिस्तान ही दरअसल पाकिस्तान का भविष्य है और इसी के जरिए पूरे देश को तरक्की करनी है.
अखबार कहता है कि कोरिडोर परियोजना के विरोधियों में भारत तो है ही, लेकिन अमेरिका भी इसे पूरा होते नहीं देखना चाहता जबकि शायद कुछ मुस्लिम देश भी इसके हक में नहीं हैं.
इस पाकिस्तानी अखबार की राय में, दुश्मन की चालें और इरादें सबके सामने हैं जबकि हमारे जो अंदरूनी विरोधाभास हैं उनका इल्म हमें भी है और हमारे दुश्मन को भी, इसलिए इस बारे में ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
‘औसाफ’ लिखता है कि ब्रिटेन को अपनी सरजमीन चरमपंथियों और खुराफाती लोगों से मुक्त रखनी चाहिए. इस अखबार ने भी लंदन की टैक्सियों पर बलूचिस्तान की आजादी के नारे लिखवाए जाने की मुहिम का फाइनेंसर और स्पॉन्सर होने का इल्जाम भारत के ही माथे मढ़ा है.
अखबार के मुताबिक ब्रिटेन की सरजमीन पर पाकिस्तान के खिलाफ इस घिनौनी मुहिम का मकसद पाकिस्तान को बदनाम और अस्थिर करना है. अखबार कहता है कि हाल सालों में ब्रिटेन में पाकिस्तानी समुदाय को लेकर लोगों की सोच में तब्दीली आयी और कई गलतफहमियां पैदा हुई है.
अलविदा दीना
वहीं ‘रोजनामा पाकिस्तान’ ने देश के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह की इकलौती बेटी दीना वाडिया के निधन पर संपादकीय लिखा है. अखबार कहता है कि दीना ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ पारसी वाडिया खानदान में शादी की और इसीलिए शादी के बाद पिता से उनके संबंध खत्म हो गए.
अखबार के मुताबिक, दीना अपने पिता के निधन पर पाकिस्तान आयी थीं और फिर उसके बाद 2004 में उन्होंने पाकिस्तान का दौरा किया. अखबार ने दीना वाडिया के निधन पर अफसोस तो जताया है लेकिन यह भी लिखा है कि उन्होंने कायद ए आजम को दुख पहुंचाया. अखबार कहता है कि अगर वह अपने पिता की बात मान लेतीं तो पाकिस्तान में आज वह बहुत सम्मानित हस्ती होतीं.
‘जंग’ लिखता है कि अपने पारसी पति मिस्टर वाडिया से दीना की ना बन सकी और दोनों में तलाक हो गया और इसके कुछ समय बाद वह मुंबई से न्यूयॉर्क में जाकर बस गयी थीं. अखबार के मुताबिक दीना शक्लो सूरत में हूबहू अपने महान पिता की छवि थीं और इसीलिए उनके निधन से दुनिया से कायद ए आजम की जीगी जागती छवि भी विदा हो गयी.