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अमेरिका की 638 साजिशों से जीतकर मौत से हारा फिदेल

फिदेल कास्त्रो एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचारधारा और एक युग का नाम है

Krishna Kant

इलाहाबाद से दिल्ली तक हमने कई बार देखा कि आप किसी छात्र के कमरे में प्रवेश करें तो सबसे पहले दीवार पर टंगी एक तस्वीर नजर आ जाए. होटों से सिगार लगाए सिपाही की वर्दी में एक योद्धा की छवि. इलाहाबाद हमने पहली बार फिदेल की तस्वीर एक छात्र के कमरे में ही देखी थी. तब उस सीनियर छात्र से पूछा था 'क्या ये आजादी की लड़ाई का कोई क्रांतिकारी है? उन्होंने जवाब दिया था- हां, लेकिन भारत का नहीं, पूरी दुनिया में आजादी की लड़ाई का महान योद्धा. मैंने पूछा- क्या नाम है इनका? उन्होंने बताया था- फिदेल कास्त्रो. जाओ इनके बारे में पढ़ना. साथ में चेग्वेरा के बारे में भी पढ़ना.

फिदेल कास्त्रो दुनिया भर में क्रांतिकारियों के लिए एक जीवित किंवदंती रहे हैं. उनकी कहानियां, उनकी लड़ाइयां, मानवता के प्रति उनके उद्देश्य, दुनिया की शक्तिशाली ताकतों से टकराने वाले उनके किस्से युवाओं को खूब प्रेरित करते रहे हैं.


फिदेल कास्त्रो (पीटीआई)

बताते हैं कि अमेरिका से सीधी टक्कर लेने वाले फिदेल को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने 638 बार अलग-अलग तरीकों से मारने की कोशिश की लेकिन फिदेल ने हर बार इन साजिशों को मात दे दी. ये कोशिशें इतनी बारीक हुआ करती थीं कि किसी आदमी के लिए उनसे बच पाना लगभग नामुमकिन है. मसलन- जहरबुझी सिगार, जहरीले सूट, विस्फोट करके, पूर्व प्रेमिका के सहारे, तैराकी करते समय, जहर की गोलियां देकर मारने के प्लान बने, लेकिन फिदेल ने हर बार मौत को जीत लिया, साथ में तमाम क्रांतिपसंद लोगों का दिल भी. ब्रिटेन के चैनल-4 ने '638 Ways to Kill Castro' नाम से एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई थी (ये भी देखें).

कास्त्रो की पहचान क्यूबा में क्रांति के जनक रूप में है. उन्होंने अमेरिका समर्थित फुल्गेंकियो बतिस्ता प्रशासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह से क्रांति की शुरुआत की थी.

क्यूबा क्रांति से पहले वकील रहे फिदेल कास्त्रो का जन्म 13 अगस्त, 1926 में हुआ था. राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता अमेरिका के कट्टर समर्थक थे. उनपर अमेरिकी हितों की रक्षा में जनता के हितों को नजरअंदाज करने के आरोप थे. क्यूबा में भ्रष्टाचार और असमानता चरम पर थी. 1952 में क्यूबा क्रांति से पहले कास्त्रो तानाशाह राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता के विरुद्ध चुनाव लड़े. लेकिन साजिशन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. लोग वोटिंग कर पाते, उसके पहले ही वोटिंग खत्म करा दी गई.

फिदेल कास्त्रो (पीटीआई)

क्यूबा के हालात बिगड़ते गए और जनता का गुस्सा बढ़ता गया. 26 जुलाई, 1953 को उन्होंने क्रांति का बिगुल फूंक दिया. अपने करीब 100 साथियों के साथ सैंटियागो डी क्यूबा में उन्होंने एक सैनिक बैरक पर हमला किया. लेकिन यह हमला असफल रहा. उन्‍हें 15 साल की सजा हुई और साथियों के साथ जेल में डाल दिए गए. दो साल 1955 में एक समझौते के तहत उन्हें रिहा कर दिया गया.

ये भी पढ़ें: क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का निधन

जेल से छूटकर वे निर्वासन के तहत अपने भाई राउल कास्त्रो के साथ मैक्सिको चले गए. मैक्सिको में फिदेल और राउल कास्त्रो ने चेग्‍वेरा के साथ बतिस्‍ता शासन के खिलाफ गुरिल्‍ला युद्ध की शुरुआत की. फिदेल के क्रांतिकारी विचारों और आदर्शों को क्यूबा की जनता का भरपूर समर्थन मिला. 1959 में उन्‍होंने राष्ट्रपति फुल्गेन्सियो बतिस्ता का तख्ता पलटकर उसे खदेड़ दिया और प्रधानमंत्री बन गए. 1976 में फिदेल राष्‍ट्रपति बने. लंबे समय बाद 2008 में वे राष्ट्रपति पद से भी हट गए और राउल को पद सौंप दिया.

फिदेल अमेरिका के घोर विरोधी रहे. 1960 में संयुक्त राष्ट्र संघ की 15वीं वर्षगांठ के मौके पर फिदेल न्यूयॉर्क पहुंचे थे. उन्हें कोई होटल अपने यहां जगह देने को तैयार नहीं हुआ. बाद में न्यूयार्क के टेरेसा होटल में उन्हें ठहरने की जगह मिली. यहां पर उनकी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात हुई थी.

1962 तक दुनिया दो ध्रुवों में बंट गई थी. एक तरफ अमेरिका था, दूसरी तरफ सोवियत रूस. अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध के दौरान फिदेल ने रूस को अपनी सीमा में अमेरिका के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल तैनात करने की मंजूरी दे दी. उनके इस कदम ने अमेरिका समेत दुनिया भर को सकते में डाल दिया.

जवाहर लाल नेहरू और फिदेल आपस में मित्र थे और दोनों देशों के रिश्ते काफी अच्छे थे. भारत, इंडोनेशिया और मिस्र की अगुवाई में जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन शुरू हुआ तो फिदेल ने उसे समर्थन दिया. वे 1983 में भारत में हुए गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में यहां आए भी थे. नेहरू के बाद इंदिरा गांधी से भी फिदेल की नजदीकी रही.

फिदेल कास्त्रो दुनिया के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले नेताओं में से एक हैं. उन्होंने 1959 में सत्ता संभाली और 2008 तक बने रहे. फिदेल अमेरिका के लिए चुनौती बने रहे.

अमेरिका ने क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था. इन प्रतिबंधों को 45 साल तक फिदेल झेलते रहे लेकिन अमेरिकी के सामने झुके नहीं. उन्होंने आइजेनहावर से लेकर क्लिंटन तक 11 अमेरिकी राष्ट्रपतियों से लोहा लिया. क्लिंटन के बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में उन्हें सबसे ज्यादा विरोध झेलना पड़ा.

ये भी देखें: फिदेल कास्त्रो: क्यूबा क्रांति की आग थे फिदेल

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ फिदेल कास्त्रो

फिदेल के नाम कई चौंकाने वाले रिकॉर्ड भी हैं. उन्होंने 1980 के दशक में पेट प्रोजेक्ट शुरू किया. इस अभियान की सफलता अभूतपूर्व रही. 'उब्रे ब्लैंका' नस्ल की गाय एक दिन में 110 लीटर दूध देने लगी. यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में दर्ज हुआ.

सबसे लंबा भाषण देने का रेकॉर्ड भी फिदेल के नाम है. 29 सितंबर, 1960 को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में 4 घंटे, 29 मिनट का लंगा भाषण दिया था. इसके बाद 1986 में उन्होंने क्यूबा के हवाना में कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के कार्यक्रम में 7 घंटे, 10 मिनट का लंबा भाषण दिया.

दुनिया भर में कम्युनिस्ट क्रांतियों में शामिल लोग जिस फिदेल कास्त्रो को अपना आदर्श और क्रांति का मसीहा मानते रहे, अब वह सूर्य अस्त हो गया है. कम्युनिस्ट विचारधारा के विरोधी भी इस बात से इनकार नहीं करेंगे कि फिदेल कास्त्रो एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचारधारा और एक युग का नाम है.

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