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मनी लॉन्ड्रिंग के चलते पाकिस्तान 'लिस्ट ऑफ शेम' में शामिल

हालांकि लगता नहीं कि बेशर्म पाकिस्तान इससे सुधरेगा

Sreemoy Talukdar

पाकिस्तान की कारस्‍तानियों में एक और नया अध्‍याय जुड़ गया है. पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) जो एक वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक वित्तपोषण निगरानी एजेंसी है, उसने इस दुष्‍ट राष्‍ट्र को बेदम होने की हालत में ला दिया है. खास बात ये है कि जिस तरह से इस ‘लिस्‍ट ऑफ शेम’ यानी शर्मनाक सूची में पाकिस्तान को शामिल किया गया है, वो इस भरोसे को मजबूत करता है कि दुनिया अब इस असफल राज्य से आजि़ज आ गई है.

एफएटीएफ के पूर्ण सत्र की कार्यवाही पूरी निजी होती है. तीन दिन की गहन बातचीत के बाद, आधिकारिक दस्तावेज में "ग्रे लिस्‍ट" में पाकिस्तान के नाम का कोई जिक्र नहीं हुआ जिसमें इथियोपिया, इराक, सर्बिया, श्रीलंका, सीरिया, त्रिनिडाड और टोबैगो, ट्यूनीशिया, वानुआतु और यमन जैसे देशों के नाम शामिल थे.


जैसा कि पाकिस्तान के मीडिया के प्रमुख नाम डॉन ने बताया, "बैठक के बाद रेग्‍युलेटर के जारी हुये सार्वजनिक बयान में पाकिस्तान का नाम नहीं था. इसी तरह, एफएटीएफ की पूर्ण बैठक के बाद इसके परिणामों का उल्लेख करने वाले बयान में पाकिस्तान का उल्लेख नहीं किया गया."

और फिर भी, अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियां मसलन रॉयटर्स और वॉल स्ट्रीट जर्नल, न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबारों ने अधिकारियों और राजनयिकों के हवाले से कहा है कि पाकिस्तान को वॉच लिस्‍ट में रखा गया है और जून में होने वाली बैठक में इसकी आधिकारिक पुष्टि की जायेगी. अंतरिम रूप से, आतंकवाद वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए पाकिस्तान के कामों पर इंटरनेशनल को-आपरेशन रिव्‍यू ग्रुप (आईसीआरजी) नजदीक से निगरानी करेगा.

क्या है इस विसंगति का मतलब

इस स्पष्ट विसंगति ने संदेश ये भेजा कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करते समय गोपनीय समूह के सभी 37 सदस्य आपस में सहमत नहीं थे. वास्तव में, रिपोर्टों से पता चलता है कि आखिरकार जो फैसला अंत में सर्वसम्मति से सामने आया, वह अमेरिकी उग्रता और रक्षक पाकिस्तान के रूप में गहन पैरवी और दूसरे स्‍तर पर अंदरखाने की बातचीत के जरिए आया.

पाकिस्तान को वॉचलिस्‍ट में वापस भेजने के अमेरिकी और ब्रिटिश प्रस्‍ताव पर सऊदी अरब, तुर्की, रूस और चीन ने असहमति जताई. पाकिस्‍तान तीन साल (2012-15) इस सूची में रह चुका है. इस पर वॉशिंगटन ने दूसरा प्रस्‍ताव रखा जिसने काम कर दिया. ट्रम्प प्रशासन ने इस मुद्दे पर दबाव डालना शुरू कर दिया क्योंकि पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने उतावलापन दिखाते हुये बुधवार को पूर्ण सत्र समाप्त होने से दो दिन पहले ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान को एफएटीएफ से राहत मिल गई है जिससे समूह की गोपनीयता बनाए रखने संबंधी धाराओं का उल्लंघन हुआ.

डब्ल्यूएसजे ने कार्य बल की सदस्यता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारियों के हवाले से बताया कि, "अमेरिकी अधिकारियों ने रियाद के प्रतिनिधियों से बातचीत करते हुये उन्हें याद दिलाया कि दोनों देशों की व्यापक साझेदारी है. बाद में जब सऊदी अरब ने पाकिस्तान को समर्थन देने की बात से किनारा कर लिया, तो, चीन ने भी साथ छोड़ दिया. "

टाइम्स ऑफ इंडिया में, इंद्राणी बागची ने पर्दे के पीछे की कहानी बताई है, जिसमें भारत ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. "अमेरिका ने गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (सऊदी अरब की अगुआई) को विरोध छोड़ने के लिए राजी कर लिया. रूस भी पाकिस्तान की तरफ झुका था लेकिन भारत ने उसे अपने असर में ले लिया. चीन के लिए, पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को देखते हुए, यह कठिन मुश्किल काम था लेकिन चीन एफएटीएफ में शीर्ष स्थान के लिए पैरवी कर रहा है और इसके लिए उसे प्रायोजक देशों के समर्थन की आवश्यकता होती. पाकिस्तान पर चीन की तटस्थता के बदले भारत और अमेरिका ने चीन को समर्थन देने की बात कही"

द प्रिंट में, प्रणब ढल सामंत आगे स्पष्टीकरण देते हैं: "जब अमेरिका ने सऊदी अरब और तुर्की से बात की, तो भारत ने अकेले चीन से मोर्चा संभाला... आखिरकार, भारतीय प्रतिनिधिमंडल,जो नई दिल्ली से निर्देशों पर कार्य कर रहा था, उसने चीनी टीम के साथ एक समझौता किया जो कि भविष्य में बीजिंग के लिए एफएटीएफ में बड़ी भूमिका निभाने के समर्थन से संबंधित है."

पाकिस्तान को अब आईसीआरजी को एक एक्‍शन प्‍लान पेश करना होगा. अगर उसे मंजूरी दी जाती है, तो इसे "ग्रे लिस्‍ट" में औपचारिक रूप से रखा जाएगा और उसका कामकाज, उसके इसमें बने रहने की सीमा को निर्धारित करेंगे. दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के मीडिया में अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर इस्लामाबाद की रिपोर्ट असंतोषजनक मिलती है, तो एफएटीएफ इसे "ब्‍लैक लिस्‍ट" में डाल सकती है.

पाकिस्तान की मीडिया एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है, "एफएटीएफ को मई में एक पाकिस्‍तान से एक एक्‍शन प्‍लान की जरूरत होगी ताकि आने वाले महीनों या वर्षों में उसे सूची से हटाया जा सके. एक बार जब एफएटीएफ ने जून में इस एक्शन प्लान को मंजूरी दी, तो ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान को रखने के बारे में एफएटीएफ की यह एक औपचारिक घोषणा होगी. अगर पाकिस्तान कोई योजना प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो एफएटीएफ को यह विकल्‍प होगा कि वह इस देश को अपनी ब्लैक लिस्ट में डाल दे, जिसका खासा गंभीर असर होगा."

कोई भी इस पर गंभीरता से विश्वास नहीं करता कि एफएटीएफ की कार्रवाई पाकिस्तान को अपना रवैया बदलने के लिए मजबूर करेगी. इस दुष्ट राष्ट्र ने हाफि़ज सईद की कुछ संपत्तियों पर कब्जा कर एक "जिम्मेदार हितधारक" के रूप में पेश करने के लिए कुछ हालिया कदम उठाए, एक वित्तीय निगरानी इकाई बनाई और मनी लांड्रिंग पर अंकुश लगाने के लिए नए नियमों को पेश किया, लेकिन इनमें से ज्यादातर कदम एफएटीएफ के मार से बचने के मकसद से ही थे और महज सतही भी.

मुंबई हमले की मास्‍टर माइंड सईद को हाल ही में नज़रबंदी से छोड़ दिया गया और उसने फिर से अपनी तथाकथित धर्मार्थ संस्थान के लिए पैसा जुटाना शुरू कर दिया, जो उसके अपने आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का दिखावटी चेहरा है. पिछले साल सईद, जिसके सिर पर 10 मिलियन डालर का अमेरिकी सरकार का इनाम है, उसने मिली मुस्लिम लीग नामक एक पार्टी बनाई, वह अपने कामकाज को मुख्यधारा में लाने की कोशिश में धोखा दे रहा है.

हालांकि ट्रम्प प्रशासन ने अपनी पाकिस्तान की नीति में बदलाव का संकेत दिया है. इस्लामाबाद ने अमेरिकी दबाव को देखते हुये चीन पर अपनी निर्भरता बढ़ाना अधिक सुविधाजनक पाया. अमेरिका ने 1.3 बिलियन डालर वाली सहायता को रोक लिया, पर इसका थोड़ा ही असर पड़ा.

2015 में एफएटीएफ के निर्देश के बारे में बहुत थोड़ा ही ध्यान दिया गया है (जब इस्लामाबाद को वॉचलिस्‍ट में डाला गया था) कि इस देश को अभी भी यूएन के बताए आतंकवादियों पर "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 1267 को पूरी तरह कार्यान्वित करने" की इच्छा और क्षमता दिखाने की जरूरत है.

क्यों मिली है पाक को छूट

इसलिए, यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान को जून तक का क्‍यों मौका दिया जा रहा है. आखिरकार, हालांकि "ग्रे सूची" कानूनी या दंड प्रक्रियाओं को लागू नहीं करती है, यह अभी भी पाकिस्तान के बैंकिंग क्षेत्र को पंगु बना सकती है, विदेशी बैंको को उसकी धरती पर कामकाज करने पर पुनर्विचार करने और देश के वैश्विक अलगाव को तेज करने के लिए मजबूर करती है. वॉचलिस्ट में शामिल देशों (विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों) को धन जुटाना, कर्ज का भुगतान करना और वैश्विक बाजारों का उपयोग करना मुश्किल होता है. पाकिस्तान के स्टॉक मार्केट में एक महत्वपूर्ण सुधार आया, जब उसके टेरर वॉचलिस्‍ट में शामिल होने पर खबर सामने आई.

पाकिस्तान हमेशा की तरह टालमटोल कर रहा है. प्रधानमंत्री शाहिद अब्बासी के वित्तीय सलाहकार मिफ्ताह इस्माइल ने जिओ न्यूज को बताया कि "ग्रे सूची" ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और हकीकत में पाकिस्तान के साथ कुछ नहीं होगा. उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान का इकोनॉमिक ढांचा "मजबूत" हैं और 2015 के दौरान भी शेयर बाजार में भी तीन प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है.

यह इस बात से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान में अगले छह महीने में चुनाव होने की संभावना है और यह सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों के लिए माकूल बात नहीं होगी कि लोगों को यह पता चले कि "ग्रे सूची" में शामिल देशों की निगरानी में वृद्धि होगी जिससे व्यापार और निवेश के लिए अनुकूल माहौल प्रभावित होगा. कुल मिलाकर पाकिस्तान जो पहले ही खस्‍ताहाल है, उसपर और मुश्किल आन पड़ी है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां उसके लिए आगे डाउनग्रेड जारी कर सकती हैं.

रायटर्स ने एक रिपोर्ट में कहा है, "विदेशी लेनदेन में गिरावट और विदेशी मुद्रा प्रवाह में गिरावट ने पाकिस्तान के बढ़े हुये चालू खाता घाटे को और अधिक बढ़ा दिया है. यह अर्थव्यवस्था के लिए उसी तरह की बहुत मुश्किल की घड़ी हो सकती है जब भुगतान संतुलन के लिए 2013 में उसे आईएमएफ के बेलआउट की जरूरत हुई थी". रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी स्थिति भी है जहां स्टैंडर्ड चार्टर्ड या सिटी बैंक जैसे विदेशी बैंकों को बाहर निकालना पड़ सकता है."

जून के अंत तक पाकिस्तान का नाम "ग्रे सूची" में टालने की एक वजह ये हो सकती है कि, ये संकटग्रस्त राष्ट्र को एक 'संक्रमणकालीन क्षेत्र' की तरह पेश कर सकता है और उसके व्यवहार की निगरानी कर सकता है. मुसीबत यह है कि एफएटीएफ "ग्रे लिस्‍ट" स्वयं ही एक 'संक्रमणकालीन क्षेत्र' है जहां दुष्ट राष्ट्रों को या तो नियमों का पालन करना है या और अधिक प्रतिकूल "ब्‍लैक लिस्‍ट" में शामिल किया जा सकता है.

अपने स्वयं के नियमों से हटना और 'हल्की ग्रे लिस्‍ट' बनाने के लिए, जैसा कि यह है, ये धमकी देना कि "पाकिस्‍तान को ग्रे लिस्‍ट में शामिल किया जायेगा", यह एक संकेत है कि एफएटीएफ पाकिस्तान को नियमों का पालन करवाना चाहता है जितना की इस्लामाबाद से अपेक्षा करने की अपेक्षा है, या ऐसा करने की क्षमता है. अगर पाकिस्तान फिर से विफल हो जाता है, तो नियमों को  "डार्क ग्रे" का रूप दे दिया जायेगा और मामला आगे "ब्लैक" में धकेलने के लिए आगे टल सकता है.

जो भी है, जिस तरह से एफएटीएफ ने कदम उठाए हैं या उठाने का वादा किया है,  उसके बावजूद, पाकिस्तान आतंकवाद पर अपनी नीति को बदलेगा, इसका चांस बहुत कम हैं. दुनिया सामूहिक रूप से उस जो असर डाल सकती है उसके बनिस्‍पत आदर्शवादी, अस्तित्वपरक आवेगों का दबाव कहीं अधिक ताकतवर होता है