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'चीन को उम्मीद नहीं थी कि भारत भी उसे आक्रामक जवाब देगा'

यूरोपीय संसद के उपाध्यक्ष ने कहा कि चीन, डोकलाम से लेकर भूटान के क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र में एकतरफा सड़क का निर्माण कर रहा है

FP Staff

डोकलाम इलाके को लेकर भारत-चीन के बीच जारी तनाव पर यूरोपीय संसद ने चीन को ही आड़े हाथों लिया है. यूरोपीय संसद ने कहा है कि इस मुद्दे पर तेज-तर्रार रुख अखतियार करने वाले चीन को ये उम्मीद नहीं थी कि भारत भी इस मुद्दे पर उसे आक्रामक जवाब दे देगा.

'ईपी टुडे' में छपे एक लेख में यूरोपीय संसद के उपाध्यक्ष अरेसार्द चारनियेत्सकी ने कहा कि चीन, डोकलाम से लेकर भूटान के क्षेत्र में आने वाले जोम्पेलरी तक एकतरफा सड़क का निर्माण कर रहा है. उन्होंने कहा कि चीन को ये अंदाजा नहीं था कि उसके इस कदम पर भारत इतने कड़े शब्दों में उसे जवाब देगा.


चारनियेत्सकी ने इस लेख में चीन के उस झूठ का भी पर्दाफाश किया जिसके तहत वो (चीन) अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ये कहता आया है कि उसका 'शांतिपूर्ण उत्थान' दुनिया की किसी भी अन्य व्यवस्था को नहीं बिगाड़ेगा, बल्कि विश्व में शांति का वातावरण स्थापित करेगा. उन्होंने लिखा है कि चीन की विदेश नीति साफ तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन करती दिख रहा है.

डोकलाम इलाके में भारत, चीन और भूटान की त्रिकोणीय हिस्सेदारी के मुद्दे पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, 'चीन इसी नीति के तहत डोकलाम से जोम्पेलरी तक सड़क का निर्माण करवा रहा है. भूटान द्वारा कूटनीतिक तरीके से इसका विरोध किए जाने की चीन फिर भी उम्मीद कर रहा था. लेकिन उसे ये बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि इस मुद्दे पर भारत आक्रामक रूप से भूटान के साथ खड़ा हो जाएगा.'

आपको बता दें कि डोकलाम विवाद पर भारत की गतिविधी को लेकर चीनी सरकार से लेकर उसका मीडिया कड़ी प्रतिक्रिया दे चुका है. इसी प्रतिक्रिया के तकह चीन ने भारत को 1962 का जंग भी याद करने की बात कही थी और बोला था कि अब चीन उस वक्त जैसा नहीं है. हालांकि चीन की इस बात का भारत ने दो-टूक जवाब दिया था कि अब भारत भी 1962 वाला देश नहीं रहा है.

चारनियेत्सकी ने अपने लेख में कहा, 'भारत के कदम के बाद चीन ने भारत के प्रति विरोधी तेवर दिखाना शुरू कर दिया. चीन का कहना है कि डोकलाम से भारतीय सेना हटने तक वह सीमा विवाद पर नई दिल्ली से कोई बात नहीं करेगा।' इसके अलावा उन्होंने कहा कि चीन को यह समझने की जरूरत है कि सैन्य ताकत और आर्थिक ताकत बढ़ने के साथ-साथ किसी देश को अंतर्राष्ट्रीय नियमों का भी पालन करना चाहिए.

(न्यूज़18 से साभार)