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‘डोनाल्ड ट्रंप नाम है मेरा, मुझे किसी की परवाह कहां...’

ट्रंप के प्रचार से ही साफ था कि वो पिछले राष्ट्रपतियों की खींची हुई ‘लकीर का फकीर’ नहीं बनना चाहते.

Kinshuk Praval

डोनाल्ड ट्रंप एक वो नाम है, जिसे अगले चार साल तक पूरी दुनिया अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर लगातार सुनेगी और हो सकता है कि ये नाम कभी भुला भी नहीं सके. ट्रंप के विवादास्पद बयान ही उनकी शख्सियत का आधा फसाना बयां कर जाते हैं और बाकी उनके कामों का अब इंतजार रहेगा या यूं कह लीजिए कि वक्त आ गया है.

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रंप के ‘ट्रंप कार्ड’ पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों से एकदम उलट हैं. उनके प्रचार से ही साफ हो गया था कि वो पिछले किसी भी राष्ट्रपति की खींची हुई ‘लकीर का फकीर’ नहीं बनना चाहते.


ट्रंप का अपना गणित, अपनी नीति और अपना नजरिया है. जिस पर वो किसी की भी दखल नहीं चाहते. ट्रंप गैरपरंपरावादी पहचान बनाना चाहते हैं. उनकी विदेश नीति से सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोप और चीन भी हिले हुए हैं.

ट्रंप के व्हाइट हाउस में पहुंचने से पहले दुनिया को लेकर उनके नजरिए चौंकाने वाले रहे हैं.

ट्रंप ने 'नाटो' को गैरजरूरी बताया. ट्रंप ने शरणार्थियों के मामले में जर्मनी की चांसलर एंजेला मोर्केल पर सवाल उठाया. यूरोपीय यूनियन के मसले पर उन्होंने कहा कि बाकी देशों को भी इससे बाहर निकल आना चाहिए. यहां तक कि अमेरिका-चीन के रिश्तों का आधार बनी ‘वन चाइना पॉलसी’ पर भी सवाल उठा दिया.

डोनाल्ड ट्रंप (रायटर इमेज)

विदेश नीति पर ट्रंप के बयान चौंकाने का काम कर रहे हैं. कोल्ड वॉर के समय जिस रूस के साथ अमेरिका के रिश्ते उस नाजुक मोड़ पर थे जहां एक गलतफहमी भी दुनिया को तीसरे महायुद्ध में झोंक सकती थी. आज उसी रूस के बारे में डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि रूस पर प्रतिबंध लगाने से रिश्तों पर बुरा असर पड़ा है.

ट्रंप सुधारेंगे रूस से संबंध

ट्रंप ने रूस के साथ संबंध सुधारने का संकेत दिया. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ट्रंप को चुनाव जीतने पर सबसे पहले फोन पर बधाई दी.

दोनों नेताओं ने अमेरिका और रूस के बीच काफी समय से चले आ रहे तनावपूर्ण रिश्तों को सामान्य करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत पर भी सहमति जताई. अब माना जा सकता है कि ट्रंप के शासनकाल में रूस पर लगे प्रतिबंधों पर भी ढील पहुंचेगी.

लेकिन ट्रंप की जीत के बावजूद उनके विरोधियों ने ट्रंप का पीछा नहीं छोड़ा. बदलते घटनाक्रम में ट्रंप की जीत के पीछे रूस को जिम्मेदार बताया गया. ये आरोप लगे कि रूसी हैकरों ने ट्रंप को जितवाने में बड़ी भूमिका निभाई.

ओबामा प्रशासन ने आरोप लगाया कि रूस की खुफिया एजेंसी ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों, नेताओं के सर्वरों और ईमेल की साइबर हैकिंग की. इसके बाद 35 रूसी राजनायिकों को अमेरिका छोड़ने का आदेश सुना दिया.

अब पूरी दुनिया की नजर इस पर है कि नए समीकरण के बाद रूस और अमेरिका के रिश्ते किस मोड़ पर पहुंचेंगे.

पहली दफे दुनिया की दो महाशक्तियों के राष्ट्राध्यक्ष आपस में सच्ची दोस्ती की कसम खा रहे हैं.

भारत के लिये राहत की बात ये है कि डेमोक्रेट्स राष्ट्रपति के बाद अब रिपब्लिकन राष्ट्रपति का रूख भी भारत के साथ सकारात्मक है.

ट्रंप ने पीएम मोदी को बताया महान नेता

ट्रंप ने पीएम मोदी को महान नेता बताया है तो साथ ही उन्होंने ये भी चेताया है कि भारत के पड़ोसियों के दोहरे चरित्र के बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उनका ये इशारा पाकिस्तान की तरफ है. माना जा रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग को ट्रंप और तेज करेंगे.

वहीं भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को आगे बढ़ाते हुए 100 अरब डॉलर के कारोबार को 300 अरब डॉलर तक ले जाने की भी उम्मीद है.

ट्रंप की विदेश नीति की किताब में एक पन्ना वियतनाम के लिये भी बाकी है. वियतनाम युद्ध के बाद ट्रंप नए सिरे से वियतनाम के साथ रिश्तों को परवाज देना चाहते हैं.

ट्रंप ने वियतनाम के प्रधानमंत्री से फोन पर बात कर न सिर्फ दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने की बात की बल्कि वियतनाम के विकास पर भी सहयोग देने का वादा किया .

जाहिर तौर पर ट्रंप की ये बातचीत चीन को उकसाने के लिये है. ट्रंप के प्रचार में चीन के खिलाफ उनके बगावती तेवर पूरी दुनिया ने देखे हैं.  यही नहीं उन्होंने ताइवान की राष्ट्रपति से फोन पर बात कर चीन की त्योरियां बढ़ाने का काम किया.

दक्षिण चीन सागर विवाद को लेकर वियतनाम का चीन से तनाव चल रहा है. वैसे भी चीन और वियतनाम के बीच सीमा विवाद और युद्ध का पुराना इतिहास रहा है.

लेकिन ट्रंप इतने भर से ही नहीं रुके. व्हाइट हाउस में दाखिल होने से पहले ही वे अपने इरादों को दुनिया के सामने खुले दिल और दिमाग से रख गए. ट्रंप ने चीन के प्रति अमेरिका की ‘वन चाइना’ पर ही सवाल खड़े कर दिये.

वन चाइना पॉलिसी पर भी ट्रंप ने साधा था निशाना

वन चाइना पॉलिसी पिछले 38 साल से वजूद में है जिसे अमेरिका मानता आ रहा है. लेकिन ट्रंप ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस नीति से अमेरिका को कोई फायदा नहीं उसे आगे जारी रखने का कोई मतलब नहीं है.

चीन नाराज है ट्रंप से और साथ ही ये भी धमकी दे रहा है कि अगर अमेरिका ने 'वन चाइना पॉलिसी' के साथ छेड़छाड़ कर ताइवान के साथ रिश्तों की पींगें बढ़ाई, तो इसका खामियाजा ताइवान भी भुगतेगा और अमेरिका भी.

'ग्लोबल टाइम्स' ने लिखा है कि ताइवान की आजादी का समर्थन करने वालों का मुहंतोड़ जवाब  दिया जाएगा.

ट्रंप के आने के बाद से अमेरिका-चीन के रिश्तों में तल्खी बढ़ती जा रही है. हाल ही में अमेरिका अंडरवॉटर ड्रोन को चीन ने दक्षिणी चीन सागर से पकड़ लिया था. जिस पर डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को जवाब दिया कि वे ड्रोन अपने पास रख लें और उसे लौटाने की जरुरत नहीं. ट्रंप ने चीन पर ड्रोन की चोरी का आरोप तक लगा दिया था.

चीन भी ट्रंप के अप्रत्याशित बयानों को लेकर आशंकित है और ट्रंप के अनुमान और आंकलन में जुटा हुआ है.

डोनाल्ड ट्रंप (रायटर इमेज)

ट्रंप किसी एक देश के प्रति अपनी बेबाकी नहीं दिखा रहे हैं

दिलचस्प यह है कि जो नाटो सेना अमेरिकी ताकत का हिस्सा है उसको लेकर भी डोनाल्ड ट्रंप संजीदा नहीं है. इराक वॉर को मधुमक्खी के छत्ते में पत्थर फेंकने जैसा बताने वाले ट्रंप ने नाटो सेना को गैरजरुरी बताया है.

उन्होंने कहा कि इस संधि की वजह से नाटो सेना के खर्च का बड़ा हिस्सा अमेरिका को उठाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि नाटो के सदस्य देश अमेरिका को मदद के बदले पैसा दें. ट्रंप के बयान से अब नाटो देश भी हैरान-परेशान है.

बिजनेसमैन से राष्ट्रपति बने ट्रंप अब हर रिश्ते को पैसे के भार से तोल-मोल रहे हैं. कहीं उनकी भावनाएं बेकाबू हैं तो कहीं उनका विरोध. लेकिन एक बात साफ है कि जिस ट्रंप को प्रचार में देखकर अमेरिकी जनता ने अपना राष्ट्रपति चुना वही चेहरा अब व्हाइट हाउस में दाखिल हुआ है.

उस चेहरे की कथनी-करनी में फिलहाल कोई फर्क नहीं दिखा रहा है और यही दुनिया की सबसे बड़ी चिंता की वजह भी बन सकती है.