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राफेल और अपनी यात्रा पर उठ रहे सवालों के बीच फ्रांस की रक्षामंत्री से मिलीं सीतारमण

यह बातचीत वार्षिक भारत-फ्रांस रक्षा मंत्रीस्तरीय वार्ता के फॉर्मेट के तहत हुई जिस पर मोदी और मैक्रों के बीच शिखर वार्ता दौरान सहमति बनी थी

Bhasha

राफेल सौदे पर उठे भारी विवाद के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण अपने तीन दिवसीय दौरे पर फ्रांस पहुंची हुई हैं. गुरुवार को उन्होंनेअपने फ्रांसीसी समकक्ष फ्लोरेंस पार्ली के साथ मुलाकात की. यहां दोनों मंत्रियों ने भारत और फ्रांस के बीच सामरिक और रक्षा सहयोग को मजबूत करने के तौर तरीकों पर व्यापक बातचीत की.

यह बातचीत वार्षिक भारत-फ्रांस रक्षा मंत्रीस्तरीय वार्ता के फॉर्मेट के तहत हुई जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों के बीच शिखर वार्ता दौरान सहमति बनी थी.


आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि दोनों रक्षामंत्रियों ने परस्पर हित के विभिन्न द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद आपस में बातचीत की.

दोनों पक्षों ने अपने सशस्त्र बलों खासकर समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के अलावा दोनों देशों द्वारा सैन्य मंचों और हथियारों के सह-उत्पादन पर चर्चा की. फिलहाल यह जानकार नहीं है कि बातचीत के दौरान राफेल सौदा का विषय उठा या नहीं.

सीतारमण की फ्रांस यात्रा फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन से 36 राफेल जेट विमानों की खरीद को लेकर उठे भारी विवाद के बीच हो रही है. बुधवार को फ्रांस की न्यूज एजेंसी मीडियापार्ट ने खबर दी कि राफेल मैन्युफैक्चरर दसॉ एविएशन को यह सौदा करने के लिए भारत में अपने ऑफसेट साझेदार के तौर पर अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को चुनना पड़ा.

जब इन आरोपों के बारे में पूछा गया तो सीतारमण ने कहा कि सौदे के लिए ऑफसेट दायित्व अनिवार्य था, न कि कंपनियों के नाम.

मीडियापार्ट का यह नया खुलासा ऐसे समय में आया है जब उससे पहले पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने तीन हफ्ते पहले कहा था कि फ्रांस को दसॉ के लिए भारतीय साझेदार के चयन के लिए कोई विकल्प नहीं दिया गया था और भारत सरकार ने इसी भारतीय कंपनी के नाम का सुझाव किया था. ओलांद जब फ्रांस के राष्ट्रपति थे तभी यह सौदा हुआ था.

अधिकारियों ने बताया कि सीतारमण राफेल के उत्पादन की प्रगति का जायजा लेने के लिए शुक्रवार को पेरिस में राफेल के मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट जाएंगी.

कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है और कह रही है कि सरकार 1670 करोड़ रुपए प्रति विमान की दर से राफेल खरीद रही है जबकि यूपीए सरकार के समय इस सौदे पर बातचीत के दौरान इस विमान की कीमत 526 करोड़ रुपए प्रति राफेल तय हुई थी. कांग्रेस दसॉ के ऑफसेट पार्टनर के तौर पर रिलायंस डिफेंस के चयन को लेकर भी सरकार को निशाना बना रही है.