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‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ की यात्रा पर एक नजर

चीन ने अपना वर्चस्व बनाए रखा जबकि पकिस्तान ‘जी हुजूर’ की भूमिका से आगे नहीं बढ़ सका

Nazim Naqvi

‘चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ यानी ‘सीपीइसी’ का जन्म 4 साल पहले इसी मई के महीने में हुआ. बीते चार-वर्षों में इसके कालक्रम पर एक नजर डालिए तो कई दिलचस्प मोड़ इसके माध्यम से उजागर होंगे.

घटनाक्रम से साफ जाहिर होता है कि किस तरह चीन ने हर कदम पर अपना वर्चस्व बनाए रखा है. दूसरी ओर पकिस्तान ‘जी हुजूर’ की भूमिका से आगे नहीं बढ़ सका है. अब यह तो समय ही बताएगा कि इनमें से चतुर खिलाड़ी की उपाधि किसे मिलेगी.


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मई 22-23, 2013: चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग ने पाकिस्तान का दो-दिवसीय दौरा किया और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग और दोनों देशों के बीच बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने का प्रस्ताव के साथ-साथ 'चीन के पश्चिमी क्षेत्र से समुद्र तक पहुंचने का दरवाजा खोलने के लिए' चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का प्रस्ताव रखा.

जुलाई 3, 2013: ‘मई-वार्ता’ को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपनी पहली राजकीय यात्रा पर बीजिंग पहुंचे.

अगस्त 27, 2013: ‘चीन पाकिस्तान संयुक्त सहयोग समिति’ की पहली बैठक जिसमें विस्तार से कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार हुई. चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के अधीन ऊर्जा-नियोजन रिपोर्ट पर काम शुरू हुआ.

नवंबर, 2013: चीन के राष्ट्रीय विकास सुधार आयोग (एनडीआरसी) ने सीपीईसी पर तैयार लंबी अवधि योजना के संकलन को ‘चीन विकास बैंक’ (सीडीबी) को सौंपा.

फरवरी 19, 2014: संयुक्त सहयोग समिति की दूसरी बैठक. योजना और प्राथमिकताओं की चर्चा को आगे बढ़ाया गया.

मध्य मई 2014: योजना के अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए ‘चीन विकास बैंक’ (सीडीबी) द्वारा चीन और पाकिस्तान की राष्ट्रीय परिस्थितियों पर एक संगोष्ठी रखी गई जिसमें यह निर्णय लिया गया है कि योजना के दो संस्करण प्रस्तुत किए जाएंगे. एक पर केवल चीन काम करेगा जबकि दूसरा दोनों-पक्षों द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया जायेगा.

मई (अंतिम सप्ताह) 2014: घरेलू योजनाओं के आकलन के लिए ‘चीन विकास बैंक’ और राष्ट्रीय विकास सुधार आयोग ने 'विभिन्न क्षेत्रों के' विशेषज्ञों को झिंजियांग भेजा. शोध रिपोर्ट पूरी हुई.

अगस्त 27, 2014: ‘चीन विकास बैंक’ ने दीर्घकालिक योजना की एक रूपरेखा को अंतिम रूप देकर एनडीआरसी को सौंपा. बीजिंग में आयोजित तीसरी संयुक्त सहयोग समिति में रूपरेखा प्रस्तुत की गई. कमेटी ने रूपरेखा को अपनी स्वीकृत दी.

नवंबर 8, 2014: ‘चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर ऊर्जा परियोजना सहयोग’ पर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बीजिंग में हस्ताक्षर किए गए. यह समझौता छह वर्ष के लिए मान्य होगा तथा इसके अंतर्गत पाकिस्तान में 17 हजार मेगावॉट बिजली परियोजना के लिए चीन निवेश करेगा.

मार्च 25, 2015: संयुक्त सहयोग समिति (जेसीसी) की चौथी बैठक आयोजित. ‘चीन विकास बैंक’ और एनडीआरसी के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विभाग, विदेश मामलों के मंत्रालय (चीन) के एशियाई सहयोगियों के विभाग, और परिवहन-योजना एवं परिवहन मंत्रालय (चीन) के अनुसंधान संस्थान द्वारा विशेषज्ञों की एक टीम ने क्षेत्रीय-अनुसंधान के लिए पकिस्तान का दौरा किया.

अप्रैल, 2015: सीबीडी और एनडीआरसी के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विभाग ने ऊर्जा, परिवहन, ग्वादर बंदरगाह और पर्यटन सहित छह विशेष क्षेत्रीय रिपोर्टों पर चर्चा की. दीर्घकालीन योजना के मसौदे में कुछ संशोधन किये गए.

अप्रैल 20-21 2015: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान का दौरा किया. यात्रा के दौरान, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के लिए ‘शीघ्र परिणाम कार्यक्रम’ के अंतर्गत कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.

मध्य मई, 2015: योजना का मसौदा पूरा हुआ और उसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग विभाग को सौंपा गया. चीन-पाकिस्तान संयुक्त समिति के 16 चीनी सदस्यों से उसपर टिप्पणियां मांगी गईं.

जून, 2015: 16 चीनी सदस्यों से प्राप्त प्रतिक्रिया की रोशनी में रिपोर्ट को संशोधित किया गया और एनडीआरसी द्वारा टिपण्णी हेतु उसे पकिस्तान भेजा गया.

नवंबर 12, 2015: कराची में आयोजित पांचवीं ‘संयुक्त सहयोग समिति’ की बैठक में पाकिस्तान ने रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए परिवहन की ढुलाई-योजना में बदलाव की सलाह दी.

मध्य दिसंबर, 2015: चीनी विशेषज्ञ पैनल द्वारा पाकिस्तान की प्रतिक्रिया को शामिल किया गया और समापक मसौदा, चीनी संयुक्त समिति को भेजा गया. रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया.

अगस्त, 2016: ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के विवरणों पर चर्चा के लिए ‘संयुक्त ऊर्जा कार्यदल’ ने लाहौर में बैठक की.

दिसंबर 12, 2016: बीजिंग में आयोजित विशेष द्विपक्षीय बैठक में चर्चा को अंतिम रूप दिया गया.

दिसंबर 29, 2016: बीजिंग में छठी ‘संयुक्त सहयोग समिति’ की बैठक आयोजित. बैठक में 31 मार्च 2017 तक दीर्घकालिक योजना को अंतिम रूप देने का निर्णय लिया गया.

फरवरी 22, 2017: दीर्घकालिक योजना का अंतिम प्रारूप तैयार. समापक मसौदा 30 पेज लंबा है जिसमें परिभाषाओं के व्यापक बिन्दु, परिकल्पना और लक्ष्य, दिशानिर्देश और सिद्धांत, सहयोग के मौलिक क्षेत्रों, निवेश और वित्तपोषण तंत्र और सहायक उपायों पर व्यापक समझ शामिल है.

अप्रैल, 2017: योजना का अंतिम प्रारूप हस्ताक्षर के लिए प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के पास भेजा गया.

मई 11, 2017: ओबोर (वन बेल्ट वन रोड) शिखर सम्मलेन के लिए प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ बीजिंग रवाना.

यह भी जानते चलें कि चीन ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीइसी) के संदर्भ में जिस टैग लाइन ‘वन बेल्ट वन रोड’ का प्रयोग कर रहा है उसके ऐतिहासिक अर्थ हैं. ‘वन बेल्ट’ से उसका मतलब उस ‘सिल्क-रूट’ से है जो इस भौगोलिक-रणनीतिक क्षेत्र का महाद्वीपीय आयाम प्रकट करता है.

‘वन रोड’ से उसका अभिप्राय वह समुद्री मार्ग है जिसमें दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, खाड़ी, पूर्वी अफ्रीका और भूमध्य सागर में फैले चीन के पूर्वी समुद्र तट से बंदरगाहों के साथ अन्य तटीय ढांचों का पूरा नेटवर्क शामिल है.