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डोकलाम के बाद ब्रिक्स में चीन को घेरेगा भारत, पाकिस्तान भी निशाने पर!

भारत कह सकता है कि 'जगह भी तुम्हारी है और वक्त भी तुम्हारा लेकिन फैसला हम करेंगे कि हमें क्या बोलना है और क्या नहीं'

Kinshuk Praval

डोकलाम पर चीन की सड़क रोक कर भारत ने साबित कर दिया कि साल 1962 और 2017 में जमीन-आसमान का फर्क है. सीमा विवाद के मुद्दे पर न सिर्फ चीन पहली बार झुका बल्कि भारत ने कूटनीतिक तरीके से ही चीन को पटखनी देकर एशियाई वर्चस्व में अपने दावेदारी ठोक दी.

डोकलाम विवाद से जो नई तस्वीर सामने आई वो भी चीन की आंखें खोलने के लिए जरूरी थी. भारत के साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का खड़ा होना तो पर्दे के पीछे से रूस के दबाव ने चीन को 'न्यू इंडिया' की ताकत भी दिखा दी.


डोकलाम फतह करने के बाद पीएम मोदी ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में शामिल होने जा रहे हैं. ब्रिक्स में भारत के लिए आतंकवाद का मुद्दा ही बड़ा सवाल है. यहां देखने वाली बात होगी कि आतंकवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर चीन क्या रुख अपनाता है.

क्योंकि पिछले साल गोवा में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में चीन ने पाकिस्तान के मुद्दे पर चुप्पी ओढ़ रखी थी. गोवा में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में चीन ने आतंकवादी समूह की सूची में जैश-ए-मोहम्मद और  लश्कर-ए-तैयबा के नाम शामिल करने की भारत की कोशिश का समर्थन नहीं किया था.

इस बार फिर चीन ने पीएम मोदी को सलाह दी है कि वो ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद का मुद्दा नहीं उठाएं.

जबकि ब्रिक्स के घोषणा पत्र में साफ कहा गया है कि आतंकवाद को पनाह देने और फैलाने वालों के खिलाफ साझा कार्रवाई की जरूरत है. जबकि चीन का विदेश मंत्रालय कह रहा है कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी कदम पर बात करने के लिए ठीक विषय नहीं है बल्कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दुनिया को पाकिस्तान की कुर्बानी को स्वीकार करना चाहिए.

चीन कभी नहीं चाहेगा कि उसकी जमीन से भारत चीन के मित्र राष्ट्र पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद विरोधी मुहिम में दूसरे देशों को लामबंद करे. चीन के तमाम सामरिक और व्यापारिक हित अब पाकिस्तान से जुड़ चुके हैं.

'दुश्मन का दुश्मन दोस्त' की नीति पर चलते हुए चीन पाकिस्तान को अपना पिट्ठू बना चुका है. तभी वो लगातार आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ देता आया है.

चीन आतंकियों को दे रहा है शह

संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के आतंकियों का हमेशा चीन ने अपने वीटो पावर से बचाव किया है. हाफिज सईद, मौलाना मसूद अजहर और सैयद सलाउद्दीन के मामले में चीन ने भारत को झटका देने का ही काम किया है.

संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की भारत की कोशिश को रोका. जबकि अमेरिका, फ्रांस और यूके ने संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करना का प्रस्ताव किया था.

वहीं चीन ने मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और उसके संगठन जमात-उद-दावा पर भी संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंध को वीटो कर दिया था. इसके अलावा हिजबुल मुजाहिदीन के चीफ सैयद सलाहुद्दीन पर भी बैन को लेकर अड़ंगा डाला था.

ऐसे समय जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को जम कर लताड़ा है तो वहीं चीन ब्रिक्स शिखर सम्मेलन को पाकिस्तान के प्रति अपनी दोस्ती दिखाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है.

दिलचस्प ये है कि चीन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करने की बात कर रहा है. आतंकवाद के मुद्दे पर चीन का डबल स्टैंडर्ड सबके सामने है और चीन हमेशा ही पाकिस्तान के आतंकी चेहरे पर नकाब डालने का काम करता आया है. हद तो ये है कि ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका की वजह से चीन का जोर नहीं चल पा रहा है वर्ना वो ब्रिक्स का विस्तार करवाकर पाकिस्तान को भी इसमें शामिल कर ले.

ब्रिक्स में दिखेगा डोकलाम फैक्टर

बहरहाल डोकलाम विवाद में कूटनीतिक जीत हासिल करने के बाद भारत मनोवैज्ञानिक बढ़त बना चुका है. ऐसे में वो ब्रिक्स मुद्दे पर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बख्शने की गलती नहीं करेगा. ये भारत के पास सुनहरा मौका है क्योंकि अब भारत की छवि एक गंभीर और मजबूत देश की बनती जा रही है जिससे उसकी आवाज अनसुनी नहीं की जा सकती है.

डोकलाम विवाद ने भारत को भूटान के न सिर्फ और करीब ला दिया बल्कि दुनिया के सामने भी भारत की छवि को मजबूत पेश किया है. भूटान के साथ भारत संधि से जुड़ा हुआ है जिसके तहत भूटान के भूभाग के मामलों को देखना भारत की जिम्मेदारी है.

चीन को उम्मीद नहीं थी कि भूटान के मामले में भारत इस तरह से खुलकर सामने आएगा. संधि के तहत भारत का विरोध करना भूटान की संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी था.

लेकिन डोकलाम का दूसरा पक्ष ये भी था डोकलाम से चालीस किमी की दूरी पर सिलिगुड़ी कॉरीडोर मौजूद है. चीनी सेना के डोकलाम पर झंडा गाड़ने के बाद भारत के पूर्वोत्तर में खतरा बढ़ जाता. लेकिन भारत ने चीन की तमाम युद्ध की धमकियों को नजरअंदाज करते हुए बेहद कूटनीतिक तरीके से डोकलाम के गतिरोध को खत्म कर दिया.

चीन हालांकि अभी भी ये कह रहा है कि वो इलाके में चीनी सेना की गश्त जारी रखेगा लेकिन इससे भारत को कोई आपत्ति नहीं है. भारत की बड़ी आपत्ति सड़क निर्माण को लेकर थी जिसे चीन ने रोक दिया. बुलडोजर टेंट और दूसरी निर्माण सामग्री के हटा लेने से साफ है कि चीन डोकलाम जैसे मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बना कर अपने खिलाफ माहौल नहीं खड़ा करना चाहता है.

एशिया में सिर्फ चीन की दबंगई नहीं चलेगी

वहीं दूसरी तरफ उसके भारत के साथ कारोबारी हित भी जुड़े हैं. भारत के साथ चीन का पांच अरब डॉलर का सालाना कारोबार है. ऐसे में जंग का जोखिम उठाकर चीन अपने कारोबार को संकट में भी नहीं डालना चाहता है.

लेकिन एशिया में अपने वर्चस्व को दिखाने के लिए भारत को हमेशा वो घेरने की कोशिश में जुटा हुआ है. भारत पर दबाव बनाने के लिये ही वो लगातार पाकिस्तान को मजबूत करने में लगा है.

बहरहाल डोकलाम विवाद से एक मिथ टूट गया कि एशिया में सिर्फ चीन की सरपरस्ती ही है बल्कि चीन की विस्तारवादी नीति को जवाब देने के लिये 'न्यू इंडिया' तैयार हो चुका है. अब जरूरत ब्रिक्स सम्मेलन के जरिए आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान पर नकेल कसने की है. भारत कह सकता है कि 'जगह भी तुम्हारी है और वक्त भी तुम्हारा दिया हुआ लेकिन फैसला हम खुद करेंगे कि हमें क्या बोलना है और क्या नहीं.'