view all

दलाई लामा के दौरे पर चीन की बौखलाहट उसके 'डर' का नतीजा है

चीन को अगर असली महाशक्ति बनना है तो उसे सब्र करना सीखना होगा.

Sreemoy Talukdar

तिब्बत के धर्म गुरू दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर चीन बुरी तरह भड़का हुआ है. चीन की ये तिलमिलाहट उसकी खुद को दुनिया की अगली महाशक्ति बताने के दावे के पीछे की असुरक्षा की भावना को दिखाता है.

वो चीन जो खुद को महान आर्थिक-सामरिक महाशक्ति बताता है. जो अमेरिका की जगह खुद को दुनिया की अगली महाशक्ति होने का दावा करता है.


चीन के दावे अपनी जगह हैं. मगर जिस तरीके से वो खुद के महाशक्ति होने के दावे को बाकी दुनिया पर लादना चाहता है, उससे तमाम देशों को ऐतराज है. उनकी चिंता बढ़ी हुई है.

वजह ये है कि चीन जो दुनिया की अगुवाई करना चाहता है. जो मुक्त व्यापार का चैंपियन होने का दावा करता है. वो चीन पड़ोसी देशों के साथ हमेशा विरोध की नीति पर ही अमल करता है.

चीन की विदेश नीति दूसरे देशों को धमकाने या उन्हें लालच देकर अपने पाले में करने की है. उसकी आर्थिक नीति भी हर कीमत पर कारोबार बढ़ाने की है. चीन के बारे में पड़ोसी देशों की यही राय है. इसकी दो वजहें हैं... पहली तो ये है कि चीन मुक्त व्यापार तो चाहता है, मगर वो वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के नियम-कायदे मानने से अक्सर इनकार करता है.

दूसरा, दुनिया में जिन नियमों के तहत कारोबार होता है...चीन अक्सर वो नियम तोड़ता है. तमाम देशों के चीन के साथ कारोबारी रिश्ते इस तरह हैं कि चीन का निर्यात ज्यादा होता है और आयात कम.

जाहिर है, चीन के साथ कारोबार करने वाले देश इससे नाखुश हैं. अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो चीन के साथ व्यापार घाटे को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था और इसका उन्हें फायदा भी मिला.

अब-जब वो फ्लोरिडा में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलेंगे तो व्यापार घाटा दोनों के बीच बातचीत का बड़ा मुद्दा होगा.

चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग (रॉयटर इमेज)

दोस्ती से परहेज

दूसरी बड़ी बात ये है कि चीन पड़ोसी देशों से दोस्ताना ताल्लुक रखने में कम ही यकीन रखता है. जैसे-जैसे चीन की आर्थिक और सैन्य ताकत बढ़ रही है वो पड़ोसी देशों पर धौंस जमाकर, उन्हें हड़काकर और दबाकर रखना चाहता है.

चीन कभी भी अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन नहीं करता. बहुराष्ट्रीय रिश्तों में उसका यकीन हमेशा से कमजोर रहा है. वो समझौते के बजाए दादागीरी से अपनी बात मनवाने की कोशिश करता रहा है. यही वजह है कि दुनिया के मंच पर अक्सर चीन अकेला ही खड़ा नजर आता है.

शी जिनपिंग की अगुवाई में चीन बड़ी तेजी से आर्थिक-सामरिक महाशक्ति बन रहा है. अब वो मध्य युग के उस दौर के ख्वाब की ताबीर करना चाहता है जब चीन दुनिया में बड़ी महाशक्ति था. वो दौर 'मिडिल किंगडम' के नाम से जाना जाता है.

अब चीन अपनी ताकत के बूते बाकी देशों से अपनी बात मनवाना चाहता है. तभी तो दक्षिणी चीन सागर पर हेग-ट्राईब्यूनल का आदेश खारिज करने में चीन ने जरा भी देर नहीं की.

चीन चाहता है कि दक्षिणी चीन सागर से जुड़े सभी देश उसकी 'नाइन डैश लाइन' के सिद्धांत को मानें. कहने का मतलब ये कि चीन को अंतरराष्ट्रीय नीतियों और नियमों में कोई दिलचस्पी नहीं है. वो तो अपनी मनमर्जी ही चलाना चाहता है.

दक्षिणी चीन सागर में चीन की दादागीरी की सबसे बड़ी वजह, आर्थिक है. यहां पर तेल के बड़े संसाधन हैं. फिर यहां मछलियां पकड़ने का कारोबार भी खूब होता है. चीन इस पूरे कुदरती संसाधन पर अपना अकेला हक चाहता है. वो चाहता है कि दुनिया उसके आगे झुके. इसीलिए फिलीपींस को चीन की नीतियों से घबराहट होती है.

दक्षिणी चीन सागर पर हक जताने की दूसरी वजह सामरिक है. अमेरिका को लगता है कि चीन यहां पर अपने सैनिक अड्डे का विस्तार कर रहा है. यहां पर वो अपने मिसाइल सिस्टम तैनात कर रहा है. जिसकी मदद से वो पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया पर अपनी धौंस जमा सके.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग

महत्वकांक्षी चीन

चीन की इस दादागीरी के बारे में ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक मामलों के जानकार मैल्कम डेविस लिखते हैं, 'दक्षिणी चीन सागर का विवाद, चीन की महत्वाकांक्षा की एक मिसाल है. चीन चाहता है कि दक्षिणी पूर्वी एशिया के सारे देश उसके आगे सिर झुकाएं.'

मैल्कम आगे कहते हैं- 'मकसद आगे चलकर अमेरिका को चुनौती देना है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपमान की एक सदी की जिस थ्योरी का प्रचार करती है. जिसके बदले में चीन आज दादागीरी से काम ले रहा है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को ऐसी बातों से राजनैतिक वैधता मिलती है'.

ये तय है कि जैसे-जैसे चीन की ताकत बढ़ेगी वो दक्षिण-पूर्वी एशिया में अपनी धौंस जमाएगा. दिक्कत ये है कि चीन की तरक्की अचानक हुई है. दूसरे देशों से झगड़ना उसकी आदत बनता जा रहा है.

ये भी पढ़ें: चीन मीडिया की धमकी, ईट का जवाब पत्थर से देंगे

चीन शांति से दुनिया की महाशक्ति नहीं बन रहा. वो ताकत के बूते ऐसा करना चाह रहा है. इसीलिए वो दक्षिणी चीन सागर पर हेग ट्राइब्यूनल के आदेश को खारिज करता है. जापान से लेकर फिलीपींस और भारत तक को धमकी देता है.

चीन का मलयेशिया, वियतनाम, ब्रुनेई, इंडोनेशिया और ताइवान से झगड़ा चल रहा है. ये सभी देश दक्षिणी चीन सागर पर दावा करते हैं. चीन की ऐसी नीतियों से निपटने के लिए भारत जैसे तमाम देश एक दूसरे से तालमेल बढ़ा रहे हैं.  ताकि वो मिलकर चीन का मुकाबला कर सकें.

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ नरेंद्र मोदी

एशिया पिवोट

बराक ओबामा ने चीन से मुकाबले के लिए ही 'एशिया पिवोट' नाम से नीति बनाई थी. हालांकि, वो नीति तो नाकाम रही. मगर चीन से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और फिलीपींस आपस में सहयोग बढ़ा रहे हैं. इसका मकसद चीन की चुनौती से निपटना भी है.

'काउंसिल फॉर फॉरेन रिलेशंस', की फेलो एलीजा आयर्स लिखती हैं कि 'एक तरफ भारत और जापान आपसी सहयोग बढ़ा रहे हैं. एक दूसरे के रणनीतिक साझीदार बन रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया और भारत में भी तालमेल बढ़ रहा है.'

एलीजा आगे लिखती हैं- 'दोनों देशों ने 2009 में ही अपने रिश्ते को रणनीतिक साझीदार का दर्जा दिया था. दोनों देशों के विदेश और रक्षा सचिवों के बीच नियमित बैठकें हो रही हैं. दोनों देशों की सेनाएं मिलकर युद्धाभ्यास भी कर रही हैं. ऑस्ट्रेलिया और भारत में एटमी डील भी हुई है.'

ये भी पढ़ें: दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा से भड़का चीन

तमाम देशों के आपसी सहयोग से ही चीन की असुरक्षा और बढ़ रही है. चीन को लगता है कि ये देश उसके खिलाफ लामबंद हो रहे हैं. उसके महाशक्ति बनने की राह में रोड़े अटकाने की तैयारी कर रहे हैं. इसीलिए चीन अपने सरकारी मीडिया के जरिए वो धमकियां देता है जो चीन की सरकार नहीं दे सकती.

जैसे दलाई लामा के अरुणाचल दौरे पर वहां के मीडिया ने लिखा कि, 'अगर भारत की हरकतों से दोनों देशों के रिश्ते खराब होते हैं और दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन बनते हैं तो क्या भारत इसका नुकसान उठाने के लिए तैयार है?'

'चीन की जीडीपी भारत की कई गुना है. चीन की सैन्य शक्ति की पहुंच हिंद महासागर तक है. चीन के भारत के पड़ोसी देशों से भी अच्छे रिश्ते हैं. ऐसे में अगर चीन भारत के उन इलाकों में दखल दे, जहां हालात ठीक नहीं है तो भारत क्या करेगा....क्या वो चीन से जीत सकता है?'

किसी भी महाशक्ति को ऐसा बर्ताव शोभा नहीं देता. चीन एक 80 साल के धार्मिक नेता के दौरे से इतना बौखलाया है कि वो पड़ोसी देश को धमकी दे रहा है.

चीन को अगर असली महाशक्ति बनना है तो उसे सब्र करना सीखना होगा. दूसरे देशों को धमकाने के बजाय उनसे दोस्ताना ताल्लुक बनाने पर जोर देना होगा. तभी वो सही अर्थों में महाशक्ति बन पाएगा.