ब्रिटेन की राजनीतिक पार्टी यूनाइटेड किंग्डम इंडेपेंडेंस पार्टी (यूकेआईपी) में लीडरशिप का संकट आखिरकार थम गया. पॉल नटॉल इसके नए नेता होंगे. उन्होंने नेतृत्व के संघर्ष में सुजेन इवान्स और जॉन रीस इवान्स को बहुत बड़े अंतर से हरा दिया.
नटॉल थे पहले पार्टी के उप नेता
ध्यान रहे कि नटॉल इसके पहले पार्टी के उप नेता थे. नीजेल फ़राज़ ने इसी साल जुलाई में ‘अपना उद्देश्य पूरा करने के बाद’ पार्टी के सर्वोच्च पद से इस्तीफा दे दिया था. ब्रिटेन की आंतरिक राजनीति में हो रही इस हलचल की दुनिया में शायद कोई सुध नहीं ली जाती, अगर दुनिया के लिहाज से इस साल की शायद दूसरी सबसे बड़ी घटना ‘ब्रेक्जिट (Brexit)’ नहीं हुई होती (पहली घटना अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प का चुनाव है).
यूरोपीय संघ से बाहर आने के सवाल पर कराए गए जनमत में फैसला ‘हां’ के पक्ष में आया था और उसने पूरी दुनिया को हिला दिया था. संभव है टेम्स नदी का अशांत जल भी इस घटना के बाद थोड़ा और अशांत हो गया हो. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून तक को इस चक्कर में अपने ओहदे से हाथ धोना पड़ा था और थेरेसा मे ने सत्ता संभाली (वे कुछ दिनों पहले भारत की यात्रा पर थीं). तब से इस पूरे मसले को लेकर जिस तरह की बहसें और विवाद दुनिया में हो रहे हैं और हर रोज एक नया पहलू उनमें जुड़ता जा रहा है, उन्हें देखते हुए लगता है कि ब्रेक्जिट की प्रक्रिया को अभी कई दीवारें लांघनी होंगी.
'ब्रेक्जिट का मतलब ब्रेक्जिट'
खैर, यूकेआईपी के लीडरशिप बदलाव में कुछ खास बातें हैं, जिन पर गौर करना ब्रिटेन की राजनीति का भविष्य समझने के लिए बेहद जरूरी है. नेता चुने जाने के बाद पॉल नटॉल ने कुछ उकसाने वाली बातें कही हैं. उनका यह कहना तो समझ में आता है कि, ‘यूकेआईपी यह सुनिश्चित करेगा कि ब्रेक्जिट का मतलब ब्रेक्जिट हो, कोई टालमटोल या लचीलापन स्वीकार नहीं होगा.’
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http://www.bbc.com/news/uk-politics-38125432
Courtesy: BBC
उन्होंने लगे हाथों पार्टी के उन नेताओं को चेतावनी भी दे डाली जो उनसे सहमत नहीं हैं, ‘जो लोग भी पार्टी की एकता को भंग करने की कोशिश में लगे हैं, यूकेआईपी में उनका अंत नजदीक आ गया है.
ब्रिटेन के कामगार जनता की आवाज
लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने एक काफी दिलचस्प बात कही, ‘मैं ब्रिटेन की कामगार जनता की देशभक्त आवाज के रूप में लेबर पार्टी की जगह यूकेआईपी को लाना चाहता हूं.’ हालांकि इस कथन में उन्होंने थोड़ी असावधानी बरती है. उन्होंने चुपचाप यह मान लिया है कि लेबर पार्टी अब भी ब्रिटेन की कामगार जनता की आवाज है, जिसका भ्रम खुद लेबर पार्टी को भी नहीं है. खासतौर पर ब्रेक्जिट के बाद.
डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में भी यह कहा जा रहा है कि अमेरिका की कामगार जनता ने उनका समर्थन किया. और हमारे देश में मोदी को लेकर भी ऐसा ही समझा जाता है कि उन्हें गरीबों को समर्थन हासिल है.
बहरहाल, ब्रेक्जिट के पक्ष में यूकेआईपी अगुआ पार्टी थी और इसे काफी कुछ श्रेय भी मिला. इसलिए, उसकी सारी साख इस फैसले के अमल और कामयाबी पर टिकी है. लेकिन भविष्य में खुद को ब्रिटेन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी (कंजरवेटिव पार्टी की टक्कर में) के रूप में देखना एक बड़ी महत्वाकांक्षा है.
संभव है कि लेबर पार्टी के भीतर अपने नेता जेरेमी कॉरबिन को लेकर जो अंसतोष बढ़ा है, उसे वे भुनाना चाहते हों. हालांकि जेरेमी कॉरबिन को बड़े उत्साह से लेबर पार्टी का नेता चुना गया था. लेकिन, फिलहाल ब्रिटेन में उनकी और उदार राजनीति की पकड़ बहुत ढीली हो चुकी है, जैसा कि पूरी दुनिया में हो रहा है. फिर भी, अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर करते हुए अगर नटॉल ब्रिटेन, लेबर पार्टी और यूकेआईपी के इतिहास और वर्तमान का ख्याल रखते, तो शायद उनकी बात थोड़ी ज्यादा अर्थपूर्ण होती.
इसमें शायद ही किसी को कोई शक होगा कि ब्रिटेन में यूकेआईपी का जबरदस्त उभार हुआ है और ब्रेक्जिट का परिणाम (हादसा कहें तो ज्यादा बेहतर होगा) इसकी तस्दीक है, लेकिन अभी उसे लंबी यात्रा करनी है.