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नो वन किल्ड बेनज़ीर भुट्टो: वो जिंदा है इतिहास के पन्नों में और भुलाई गई तारीखों में

बेनज़ीर की रूह अब उस पाकिस्तान को देख रही है जहां उसके हत्यारों का पता खुद उनकी ही पार्टी की सरकार नहीं चला सकी

Kinshuk Praval

किसी के लिये वो 'पूरब की बेटी' थी तो किसी के लिये 'शहजादी' तो किसी के लिये 'मिस साहिबा'. लेकिन पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के लिये वो पिंकी थी. एक ऐसी बेटी जो 'बेनजीर' थी जिसकी कोई मिसाल नहीं थी.

बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान में सेना की कट्टरशाही के बीच लोकतंत्र की मिसाल थीं. जिसका कलेजा जनरल जिया उल हक की जेल में पांच साल तक नहीं कांपा. जिसके हौसले पिता की फांसी से नहीं डिगे. अपने ही मुल्क से बेगाना हो कर निर्वासित जिंदगी जीने के बाद जिस अंदाज में बेनजीर ने पाकिस्तान में वापसी की वो बेनज़ीर है.


दस साल हो चुके हैं बेनज़ीर को गुज़रे हुए. आज वो पाकिस्तान के इतिहास का बीता पन्ना है. लेकिन बेनज़ीर भुट्टो के बिना पाकिस्तान की सियासत का हर अध्याय अधूरा है.

बेनज़ीर के ही वक्त ने पाकिस्तान में लोकतंत्र की लड़ाई को मजबूत किया. उस लोकतंत्र का ही नतीजा है कि आज नवाज़ शरीफ की हुकूमत कायम है तो इमरान खान अपने तरीके से इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे है. वहीं जनरल से राष्ट्रपति बने परवेज़ मुशर्रफ को जनता ने दोबारा कुबूल नहीं किया. पाकिस्तान मार्शल लॉ से बचा हुआ है.

पिता की फांसी से टूटी नहीं थीं बेनज़ीर

पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी के बाद एक बेटी ने हुकुमत से लड़ाई का ऐलान किया जिसे लोकतंत्र के हथियार से जीत कर बताया.

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी बेनज़ीर की आवाज़ बनी जिसे पाकिस्तान की जनता ने दिल से सुना. दिलचस्प ये है कि इस पार्टी का गठन बेनज़ीर ने लंदन में किया था. पीपीपी के जरिये बेनज़ीर ने जनरल जिया उल हक को खिलाफ सियासत का मोर्चा खोला और लोकतांत्रिक तरीके से वो प्रधानमंत्री चुनी गईं. इसकी बड़ी वजह जनरल जिया उल हक का विमान दुर्घटना में मारा जाना है. जिया उल हक की मौत ही बेनजीर के सियासी करियर का टर्निंग प्वाइंट माना जा सकता है.

मुस्लिम मुल्क में बनीं पहली महिला पीएम

महज 35 साल की उम्र में बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. किसी भी मुस्लिम मुल्क में पहली महिला प्रधानमंत्री होने का मौका उन्हें मिला. साल 1988 में पहली दफे वो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं.

लेकिन महज दो साल के वक्त के बाद ही बेनज़ीर को सत्ता छोड़नी पड़ गई. सियासत का उतार-चढ़ाव कभी खत्म नहीं हुआ. 1993 में वो फिर से प्रधानमंत्री बनीं लेकिन तीन साल बाद उन्हें फिर से हटना पड़ गया.

भ्रष्टाचार के आरोपों से छवि पर पड़ा असर

ये इत्तेफाक नहीं था. सियासत का दूसरा पहलू उनकी छवि पर दाग़ चस्पा कर रहा था. बेनजीर और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे. दरअसल बेनज़ीर की सरकार में पति आसिफ अली जरदारी की दखलंदाजी हर स्तर पर थी. जरदारी पर भ्रष्टाचार के आरोपों के लगने की वजह से पाकिस्तान की अवाम का बेनज़ीर से भरोसा भी उठने लगा था. ज़रदारी को दस साल की सजा भी हुई.

जहां पाकिस्तान सरकार के साथ हुए समझौते के बाद बेनज़ीर को पांच मामलों में आम माफी मिली तो वहीं एक मामले में उन्हें दोषी भी माना गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद बेनज़ीर अपने पति और तीन बच्चों के साथ पाकिस्तान से बाहर चली गईं.

8 साल बाद वापसी का फैसला गलत साबित हुआ

तकरीबन 8 साल बाद साल 18 अक्टूबर 2007 में बेनज़ीर ने पाकिस्तान में वापसी की. उनकी वापसी के बाद निकले काफिले में दो धमाके हुए थे जिसमें 125 लोगों की मौत हो गई थी. इस हमले के बाद से ही उनकी जान को खतरे का अंदेशा था. दूसरे हमला बेनज़ीर के लिये आखिरी साबित हुआ. दिसंबर 2007 की एक शाम बेनज़ीर की चुनावी रोड शो के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई.

बेनजीर की मौत से गहराया सियासी शून्य

पाकिस्तान अपने उस नेता को खो चुका था जिसे इस्लामिक कट्टरपंथ के बीच अपनी आज़ाद सोच और आधुनिकता की वजह से पूरब की बेटी माना जाता था. पूरब में बेनजीर का सूरज अस्त हो चुका था. लेकिन पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को बेनज़ीर लहर ने साल 2008 का आम चुनाव जिता दिया. आसिफ अली जरदारी को सजी हुई थाली में राष्ट्रपति पद मिला. बेटे बिलावल भुट्टो को मां की राजनीति की विरासत मिली. लेकिन जरदारी और बिलावल दोनों ही बेनज़ीर की सियासत को आगे नहीं बढ़ा सके.

यही वजह है कि बेनज़ीर के बाद पाकिस्तान की सियासत में इमरान खान जैसे दूसरे बड़े किरदार आ गए. आज पाकिस्तान के परिदृश्य में नवाज़ शरीफ और इमरान के अलावा कोई तीसरा नेता जनता की नुमाइंदगी करता नहीं दिखाई दे रहा है. तख्तापलट के लिये बदनाम पाक सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई की सरकार पर हुकूमत खुल कर नहीं दिखाई देती है.

लेकिन वो पार्टी जिसे बेनजीर ने खड़ा किया अब सिंध के दायरे में सिमटी नजर आती है. भुट्टो खानदान के भारत से हजार साल जंग करने के नारों में जंग लग चुकी है. बेनज़ीर की रूह अब उस पाकिस्तान को देख रही है जहां उसके हत्यारों का पता खुद उनकी ही पार्टी की सरकार नहीं चला सकी. बेनजीर की मौत का रहस्य कई सरकारों के बदले जाने के बावजूद बेनकाब नहीं हो सका है. कहा जा सकता है कि 'नो वन किल्ड बेनज़ीर भुट्टो'.