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13 साल का नबी ड्रम के सहारे म्यांमार से पहुंचा बांग्लादेश

नबी ने कहा कि मैं मरने को लेकर बेहद डरा हुआ था. मुझे लगा कि यह मेरा आखिरी दिन होने वाला है

Bhasha

रोहिंग्या मुसलमान किशोर नबी हुसैन की उम्र महज 13 साल है. वो तैर नहीं सकता. म्यांमार में अपने गांव से भागने से पहले उसने कभी करीब से समुद्र नहीं देखा था. नबी ने जिंदा रहने की अपनी सबसे बड़ी जंग एक पीले रंग के प्लास्टिक के ड्रम के सहारे जीती.

उसने म्यांमार से बांग्लादेश तक का समुद्र का सफर पीले रंग के प्लास्टिक के खाली ड्रम के सहारे लहरों को मात देकर पूरा किया. करीब ढाई मील की इस दूरी के दौरान समुद्री लहरों के थपेड़ों के बावजूद उसने ड्रम पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ी.


धारीदार शर्ट और चेक की धोती पहने पतले-दुबले नबी ने कहा, ‘मैं मरने को लेकर बेहद डरा हुआ था. मुझे लगा कि यह मेरा आखिरी दिन होने वाला है.’

लाखों रोहिंग्याई समुद्र के रास्ते पहुंच रहे हैं बांग्लादेश 

नबी बांग्लादेश में किसी को नहीं जानता है. म्यांमार में उसके माता-पिता को ये नहीं पता कि वह जीवित है. नबी अपने माता-पिता की नौ संतानों में चौथे नंबर का है. म्यांमार में पहाड़ियों पर रहने वालो उसके किसान पिता पान के पत्ते उगाते थे.

म्यांमार में हिंसा की वजह से सहमे रोहिंग्या मुसलमान हताशा में अपना घर छोड़ कर भाग रहे हैं. वे तैरकर पड़ोस के बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे हैं. एक हफ्ते में ही तीन दर्जन से ज्यादा लोगों ने तेल के ड्रमों का इस्तेमाल छोटी नौके के तौर पर कर रहे हैं. अगस्त के बाद से करीब छह लाख रोहिंग्या बांग्लादेश जा चुके हैं.

म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान दशकों से रह रहे हैं लेकिन वहां बहुसंख्यक बौद्ध उन्हें अब भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के तौर पर देखते हैं. सरकार उन्हें मूलभूत अधिकार नहीं देती. संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें दुनिया की सबसे पीड़ित अल्पसंख्यक आबादी कहा था.