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एपल वापस जाओ, तुम्हारे नखरे कौन उठाएगा

स्मार्टफोन तो स्मार्टफोन ही होता है. ठीक वैसे ही जैसे गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो, वह रहेगा गुलाब ही.

R Swaminathan

पक्का टिम कुक का दिमाग ठिकाने पर नहीं होगा. स्मार्टफोन तो स्मार्टफोन ही होता है. ठीक वैसे ही जैसे गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो, वह रहेगा गुलाब ही. कोई स्मार्टफोन दूसरे स्मार्टफोनों से थोड़ा बहुत बेहतर होगा.

कुछ में एक्सट्रा बटन हो सकता है. लेकिन जरूरत पड़ने पर दो अलग-अलग स्मार्टफोन काम एक ही करते हैं. उन्नीस बीस का अंतर हो सकता है. ऐसा कुछ नहीं होता है कि जमीन फट जाए.


छाती चौड़ी करके एपल का मैनेजमेंट भारत आया और सरकार से मांग की कि उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट मिले. एपल की फरमाइशों पर नजर डालेंगे तो हो सकता है कि आपको जेनिफर लोपेज जैसी कोई हसीना और उसके नाज नखरें याद आ जाएं.

इतने नखरे

तो एपल के नाज ओ नखरे यानी मांगों की फेहरिस्त पर नजर डाल लीजिए. एपल ने कच्चे माल (मैन्युफैक्चरिंग और रिपेयर इनपुट्स) पर कस्टम ड्यूटी ना लगाने और इनपुट्स, कम्पोनेंट्स और अहम उपकरणों (पुर्जे भी), मैन्युफैक्चरिंग, सर्विस और रिपेयर में इस्तेमाल होने वाली चीजों पर भी सरकार से नुकसान उठाने को कहा है. और हसरतों की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती.

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शोख नाजनीना को ये रियायतें घरेलू और निर्यात दोनों तरह की जरूरतों के लिए चाहिए. उस पर एक और तुर्रा. एपल को यह छूट 15 साल के लिए चाहिए. हां जी पंद्रह साल के लिए.

इतना ही नहीं, एपल को एक छूट चाहिए जिसे वह लेबलिंग नियमों में ‘ढील’ कहता है. इसका क्या मतबल है? इसका मतलब है कि एपल को अपने उपकरणों पर प्रॉडक्टस से जुडी जानकारी प्रिंट करने की जरूरत नहीं होगी. जो कंपनी सीना ठोक कर अमीरों के लिए ही चीजें बनाती है और जिसे अपने क्वॉलिटी पर घमंड है, वह भला ऐसी रियायत की मागं क्यों करेगी?

एपल भारत के लेबलिंग नियमों में छूट चाहता है

अटकलबाजियां एक तरफ, प्रॉडक्ट की जानकारी न देना ग्राहक के अधिकारों का उल्लंघन है. इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती. कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि टिम कुक और उनकी टीम समझती है कि भारतीय ग्राहक अभी ‘इतने समझदार‘ नहीं हुए हैं कि उन्हें प्रॉडक्ट से जुड़ी जानकारी दी जाए? कोई मुझसे पूछे तो यह एक तरह से हम सब भारतीयों की बेइज्जती है.

उड़ो मत, नीचे आओ

आखिरी मांग, एपल इस्तेमाल किए हुए स्मार्टफोनों को लाकर उन्हें यहां असेंबल करना चाहता है. इससे बड़ा अपमान शायद कोई नहीं हो सकता.

ऐसा लगता है कि जैसे एपल कह रहा हो: ‘तुम भारतीय लोग हमारे खूबी के साथ डिजाइन किए और बेहद शानदार प्रॉडक्टस के लायक ही नहीं हो. जो कुछ बचा खुचा है, बस उसी से कम चलाओ. तुम्हारे लिए यही अच्छा है. ‘शुक्र है कि सरकार ने एपल का यह संदेश इसी अंदाज में सुना और सीधे-सीधे इसे खारिज कर दिया.'

तीन खरी खरी बातें एपल को बिना किसी लाग लपेट अपने दिमाग में रखनी होंगी. पहली बात, भारत के बाजार में एपल की हिस्सेदारी सिर्फ दो प्रतिशत है. और जिस तरह से भारतीय और चीनी कंपनियां क्वॉलिटी और खासियतों के अंतर को पाटने में लगी है, उसे देखते हुए यह दो प्रतिशत हिस्सेदारी भी हवा हो सकती है.

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इसलिए मिस्टर कुक, सौदेबाजी दो बराबर ताकत वाले खिलाड़ियों में होती है. दो प्रतिशत हिस्सेदारी किसी को बताएंगे, तो कहीं उसकी हंसी न छूट जाए. इसलिए हवा में उड़ना छोड़ो और सच के धरातल पर कदम रखो.

चीन में चित्त

दूसरी बात, एपल को चीन से निकलना ही होगा. वहां उसकी लागत बढ़ती ही जा रही है. चीनी स्मार्टफोन कंपनियां उतना ही अच्छा स्मार्टफोन बना रही हैं और वह भी कहीं कम दाम में और इसीलिए उनका मुनाफा भी ज्यादा हो रहा है. और एपल अब वो एपल नहीं रहा जो स्टीव जॉब्स के जमाने में हुआ करता था. वह भी अब अन्य कंपनियों की तरह ही है जो अपने आभामंडल और कुछ ब्रैंड गुडविल पर चल रही हैं. इस कंपनी की भी भद्दी तोंद अब दिखने लगी है.

कुल मिलाकर बात यह है कि एपल को भारत की जरूरत है क्योंकि यहां उसे सस्ते में कर्मचारी, इंजीनियरिंग और आरएंडडी (शोध और विकास) केंद्र मिल जाएंगे और बेशक मेरे और आपके जैसे खरीददार भी. इसलिए मिस्टर कुक आसमान में उड़ना छोड़िए और कुछ सच से भी आंखें मिलाइए और जरा थोड़े से विनम्र बनिए.

एपल कंपनी के प्रमुख टिम कुक ने भारत सरकार के सामने कई शर्तें रखी हैं

तीसरी बात, स्मार्टफोन बनाने वाली किसी कंपनी ने भारत से स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मांगा है. न चीनी कपनी ने, न दक्षिण कोरियाई कंपनी ने और न ही किसी भारतीय कंपनी ने. आपको पता होना चाहिए कि भारत में 42 कंपनियां स्मार्टफोन बना रही हैं.

वे अपने बढ़िया क्वॉलिटी वाले स्मार्टफोनों और दूसरे प्रॉडक्टस के जरिए बाजार पर कब्जा कर रही है और वापस भारत में निवेश भी कर रही हैं. उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं. उन्हें कारोबार दिखाई देता है.

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मिस्टर कुक आप एक बिजनेसमैन हैं या फिर नखरे दिखाने वाली कोई हसीना? अगर आप बिजनेसमैन हैं तो फिर शर्तों को समझिए और करार खत्म कर दीजिए, दरवाजा खुला हुआ है. सब कुछ समेटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.

सबक

इस पूरी रामकहानी से भारत को भी कुछ सीखने की जरूरत है. सरकार ने इलेक्ट्रोनिक्स मैन्युफैक्चरिंग नीति को आसान बनाने की दिशा में बहुत काम किया है और इसमें बहुत सोच विचार और मेहनत लगी है.

यह बात मैं इसलिए कह सकता हूं कि क्योंकि औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन विभाग ने बुनियादी नियम तय करने के लिए जिन नीतिगत दस्तवेजों का इस्तेमाल किया, उनमें से एक मैंने लिखा था. जो लोग इस बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, वे यहां क्लिक कर पॉलिसी पेपर पढ़ सकते हैं.

चीन ने महंगी चिप की डिजाईनिंग की पेटेंट हासिल कर ली है

लेकिन अब भी तीन बातों पर खास तौर से ध्यान दिए जाने की जरूरत है. पहली, महंगी चिप की डिजाइनिंग, पेटेंट हासिल करने और मैन्युफैक्चरिंग में बहुत अधिक निवेश करने की जरूरत है. चीन ने इस पर ध्यान दिया और आज वह इंटरनेट और उससे जुड़े कई क्षेत्रों में उसी का फायदा उठा रहा है.

दूसरी बात, थोड़ा सा संरक्षणवादी होने की भी जरूरत है. भारतीय कंपनियों के लिए जमीन तैयार करनी होगी ताकि वे दुनिया भर में मुकाबला कर सकें. चीन इस काम में माहिर है और उसके नतीजे सब के सामने हैं.

तीसरी बात, खोज और आविष्कारों के लिए कई फंड बनाने होंगे और सूक्षम, छोटे और मझौले स्तर के उद्योगों को बढ़ाने के लिए टैक्स में रियायती देनी होगी. इन कदमों से इस उद्योग को बहुत बढ़ावा मिलेगा.

स्वामीनाथन फर्स्टपोस्ट के कंसल्टिंग एडिटर हैं. उनकी किताब नोट्स ऑफ ए डिजिटल जिप्सी: डिकोडिंग द अदर इंडिया मार्च 2017 में रिलीज हो रही है.