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अब रूस पता लगाएगा, अमेरिका के चांद पर जाने की कहानी झूठी है या सच्ची

रूस अब भी नासा के इस मिशन को शक की नजरों से देखता है, अब वो खुद इसकी सच्चाई पता लगाएगा

FP Staff

दुनिया में एक 'प्रजाति' होती है- कॉन्सपिरेसिस्ट की. इस प्रजाति का काम होता है दुनिया की हर घटना के पीछे एक षड्यंत्र ढूंढना. ये हर षड्यंत्र को सपोर्ट करते हैं. दुनिया में बहुत सारी कॉन्सपिरेसी थ्योरी हैं, लेकिन उनमें भी सबसे खास है- अमेरिका का मिशन अपोलो. यानी 60 के दशक में अमेरिका के सबसे पहले चांद पर पहुंचने की कहानी.

कॉन्सपिरेसिस्ट्स मानते हैं कि अमेरिका कभी चांद पर पहुंचा ही नहीं था. बल्कि अपोलो मिशन के तहत जितनी तस्वीरें और फुटेज रिलीज की गई थीं, वो अमेरिका में ही स्टूडियो में फिल्माई गई थीं. इसके पक्ष में कई तर्क भी पेश किए जाते हैं.


एक और बात है जो आपको जाननी चाहिए, वो ये कि रूस चांद पर जाने के लिए अमेरिका के पहले से प्रयोग कर रहा था, लेकिन अमेरिका ने उसके पहले ही अपने अपोलो मिशन के सफलता की घोषणा कर दी. उस वक्त भी अमेरिका और रूस दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश थे लेकिन उनकी दुश्मनी आज से ज्यादा गहरी थी, इसलिए रूस की तरफ से इसे अमेरिका की तरफ गढ़ी हुई कहानी माना गया.

रूस अब भी नासा के इस मिशन को शक की नजरों से देखता है. अब रूस खुद पता लगाने वाला है कि चांद पर जाने की ये कहानियां सच्ची हैं या झूठी.

रूस की रोस्कोसमोस अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि चांद पर जाने वाले रूस के प्रस्तावित मिशन का काम यह पता लगाना होगा कि क्या वास्तव में अमेरिकी चांद पर पहुंचे हैं.

दिमित्री रोगोजिन ने शनिवार को ट्विटर पर पोस्ट किए एक वीडियो में कहा कि हमने यह वेरिफाई करने के लिए एक उपकरण तैयार किया है कि वे वहां गए भी थे या नहीं. रोगोजिन उस सवाल का जवाब दे रहे थे जिसमें पूछा गया था कि नासा करीब 50 साल पहले क्या वास्तव में चांद पर गया था या नहीं.

सोवियत संघ ने 1970 के दशक के मध्य में अपने मिशन मून को छोड़ दिया था क्योंकि चांद पर भेजे जाने वाले चार प्रयोगात्मक रॉकेटों में विस्फोट हो गया था.

आप नीचे दिए गए वीडियो में अमेरिका के मिशन मून से जुड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरी के बारे में जान सकते हैं.

(एजेंसी से इनपुट के साथ)