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क्या फोन की बैटरी पूरी डिस्चार्ज होने के बाद चार्ज करनी चाहिए

मोबाइल फोन से जुड़े कई ऐसी गलत धारणाएं हैं जो आज भी चली आ रही है

FP Tech

टेक्नॉलजी को लेकर हमेशा से लोगों के बीच भ्रम भी रहा है और डर भी. जब ट्रेन आई तो लोगों को उससे डर लगता था. सिनेमा का पर्दा पहली बार देखकर लोग आश्चर्यचकित के साथ-साथ डर भी गए. हम सबको बचपन में लगा होगा कि रेडियो और टीवी के अंदर लोग कैसे आते होंगे. मोबाइल और टेक से जुड़ी कुछ गलत धारणाएं हैं जो चलती रहती हैं.

ज्यादा स्पेस मतलब बेहतर डिवाइस


ये एक गलत धारणा है. इसको मानने वाले लैपटॉप यूज़र भी होते हैं और मोबाइल वाले भी. दुकान पर सेल्समैन भी आपको ज्यादा जीबी के लिए ज्यादा पैसे खर्च करवा देता है. ये मानना बंद कर दीजिए कि ज्यादा मेमोरी वाला कंप्यूटर आपको बेहतर स्पीड देगा. स्पीड प्रोसेसर से तय होती है. और सामान्य यूज़र के लिए एक तय सीमा से ज्यादा स्पीड का कोई मतलब भी नहीं रहता है. तो अपनी जरूरत के हिसाब से फोन या खरीदिए. देखिए कितनी स्पीड का प्रोसेसेर आपकी जरूरत पूरी कर सकता है. इसके बाद बाकी हार्डवेयर जैसे कैमरा, बैटरी पर ध्यान दीजिए.

बैटरी पूरी डिसचार्ज होने के बाद चार्ज करें

आपके फोन की बैटरी और आपके इनवर्टर की बैटरी में फर्क है. फोन की लीथियम आयन बैटरी पुरानी लीथियम कैडमियम बैटरी जैसी नहीं होती. आपको फोन की बैटरी में पानी नहीं भरना पड़ता, इसलिए आपको बैटरी के पूरा डिसचार्ज होने तक इंतज़ार नहीं करना चाहिए. अगर आप बैटरी पूरी डिसचार्ज होने तक इंतजार करते हैं तो ज्यादा नुक्सान करते हैं.

ज्यादा मेगापिक्सल, बेहतर कैमरा

मेगापिक्सल से कैमरे की पावर तय होती है. वो कितनी बड़ी फोटो खींच सकता है ये तय होता है. मतलब 2 मेगापिक्सल की फोटो एक पोस्टकार्ड से बड़े साइज़ में प्रिंट नहीं हो सकती. 20 मेगापिक्सल से बड़ा पोस्टर छापा जा सकता है.

कैमरा क्वालिटी में इससे ज्यादा योगदान मेगापिक्सल का नहीं है. लेंस क्वालिटी, लो लाइट सेंसर, आइएसओ जैसी कई चीजें हैं जो तय करता है कि आपके फोन का कैमरा कितना अच्छा है. इसलिए अगर आप कैमरा के लिए फोन खरीद रहे हैं तो किसी जानकार से सलाह लेकर खरीदें.

नया मॉडल आते ही पुराना फोन धीमा हो जाता है

ये बात कुछ हद तक सच है. एपल को इसके चलते आलोचना झेलनी पड़ी. मगर ये पूरा सच नहीं है. एपल के भी जो मॉडल पुराने पड़ने पर स्लो हो जाते हैं, नई बैटरी लगने पर उसकी स्पीड बेहतर हो जाती है. लेकिन ये धारणा सबसे ज्यादा मोबाइल कंपनियां खुद फैलाती हैं. ताकी जैसे ही आप कहीं नए मॉडल की पढ़ें, आपके दिमाग में नया फोन खरीदने का विचार अपने आप घर कर जाए.