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गांवों में खुलेंगे साइंस सेंटर तो मिलेगी विकास को गति

वैज्ञानिक खोजों का तब तक कोई उपयोग नहीं है, जब तक जमीनी स्तर पर उनकी पहुंच सुनिश्चत न हो जाए

FP Staff

वैज्ञानिक खोजों एवं प्रौद्योगिकी से लोगों की दूरी कम हो तो लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. पर, ग्रामीण एवं दूरदराज के इलाकों के लोगों की दूरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सबसे अधिक है. शहरों के साथ-साथ गांवों में भी बड़ी संख्या में साइंस सेंटर खुलने चाहिए, जो गांवों के विकास में महत्वपूर्ण हो सकते हैं.

इस तरह के सेंटर गांवों से अंधविश्वास दूर करने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के साथ-साथ भावी पीढ़ियों को विज्ञान से जोड़ने में कारगर हो सकते हैं. मणिपुर के उप-मुख्यमंत्री वाई. जॉयकुमार सिंह ने ये बाते कही हैं. वह मणिपुर विश्वविद्यालय में 11वें राष्ट्रीय विज्ञान संचारक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे.


राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद द्वारा आयोजित किया जाने वाला राष्ट्रीय विज्ञान संचारक सम्मेलन भारतीय विज्ञान कांग्रेस का एक अहम हिस्सा है, जिसमें देश भर के विज्ञान संचारक जुटते हैं और विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रभावी रणनीति पर विचार करते हैं. इस बार 105 वीं राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस मणिपुर की राजधानी इंफाल में चल रही है, जिसका आयोजन मणिपुर विश्वविद्यालय ने किया है. विज्ञान कांग्रेस 16 मार्च से शुरू होकर 20 मार्च तक चलेगी. 

जीवन को आसान बनाने में मददगार हो सकता है विज्ञान 

जॉयकुमार सिंह ने इंडिया साइंस वायर से कहा कि 'प्राकृतिक संसाधनों और उसमें मौजूद ऊर्जा के बारे में विकसित मनुष्य की विशिष्ट समझ को विज्ञान कहते हैं. आम लोगों में विशिष्ट समझ पैदा हो जाए तो जीवन को गुणवत्तापूर्ण बनाने और सामाजिक विकास में मदद मिल सकती है. लेकिन, विज्ञान को मूल रूप में समझना जनसाधारण के लिए कठिन है.

ऐसे में विज्ञान संचारकों की भूमिका अहम हो जाती है. विज्ञान संचारक वैज्ञानिक तथ्यों की अपनी सहज अभिव्यक्ति के जरिए लोगों को ऐसी वैज्ञानिक खोजों एवं प्रौद्योगिकियों से परिचय कराते हैं, जो उनके जीवन को आसान बनाने में मददगार हो सकती हैं.'

विज्ञान संचारक सम्मेलन में मौजूद पांडिचेरी विश्वविद्यालय के बायोकेमिस्ट्री एवं मॉलिक्यूलर बायोलॉजी विभाग के प्रमुख पी.पी. माथुर ने बताया कि “यह सम्मेलन विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े प्रतिभागियों को एक साझा मंच प्रदान करता है. यह मंच शिक्षाविदों, पत्रकारों, फिल्मकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों एवं लेखकों को एक-दूसरे के करीब आकर उन चुनौतियों से निपटने का अवसर प्रदान करता है, जो समय-समय पर उभरती रहती हैं.”

वैज्ञानिक खोज तभी सफल जब तक कि अंतिम व्यक्ति तक न पहुंच जाए 

मणिपुर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति आद्याप्रसाद पांडेय ने कहा कि इस बार विज्ञान कांग्रेस की थीम 'रीचिंग टू अनरीच्ड थ्रू साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी है. विज्ञान संचारक सम्मेलन इस थीम को फलीभूत करने का एक प्रमुख जरिया बन सकता है क्योंकि वैज्ञानिक खोजों का तब तक कोई उपयोग नहीं है, जब तक जमीनी स्तर पर उनकी पहुंच सुनिश्चत न हो जाए. इस दिशा में हमारे विज्ञान संचारकों का योगदान उल्लेखनीय है.'

कार्यक्रम में मौजूद लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की रेडियोकार्बन प्रयोगशाला के प्रमुख रह चुके डॉ सी.एम. नौटियाल ने बताया कि 'आम लोगों के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया, वर्चुअल म्यूजियम और इंटरैक्टिव प्रोग्राम भी काफी प्रभावी हो सकते हैं.' इस अवसर राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक सक्सेना और एसोसिएशन के महासचिव प्रो. गंगाधर भी मौजूद थे.

विज्ञान संचारक सम्मेलन के संयोजक एन. राजमोहन सिंह के अनुसार 'इस सम्मेलन के दौरान विज्ञान प्रौद्योगिकी के बदलते आयामों और कृषि, पशुपालन, स्वास्थ्य, लघु उद्योग, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन, कचरा प्रबंधन, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों, हाउसिंग, बिजली, परिवहन एवं संचार में इसके उपयोग को केंद्र में रखकर विभिन्न सत्रों का आयोजन किया गया है. विशेष रूप से आमंत्रित वक्ताओं के अलावा इस दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभागियों ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े पेपर प्रस्तुत किए हैं. इसके साथ ही पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई है.'

(इंडिया साइंस वायर)