view all

पहले आईफोन की कहानी: एपल के इंजीनियर की जुबानी

आईफोन को किस कदर गोपनीयता के साथ तैयार किया गया था, यह एक दिलचस्प कहानी है.

Pawas Kumar

पहले एपल आईफोन को अब ऐसे आइकॉनिक डिवाइस का रुतबा मिल चुका है जिसने मोबाइल फोन की दुनिया को ही बदल कर रख दिया.

दुनिया ने पहली बार टच से काम करने वाला कोई डिवाइस देखा था जो अच्छी तरह से इंटीग्रेटिड भी था. आईफोन को किस कदर गोपनीयता के साथ तैयार किया गया था, यह एक दिलचस्प कहानी है.


इससे पता चलता है कि एक कंपनी के तौर पर एपल कैसे काम करती है और यहां तक पहुंची है. इसके लिए स्टीव जॉब्स की सनक भी कम जिम्मेदारी नहीं रही.

बीजीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्टीव जॉब्स ने स्कॉट फोर्स्टाल से एक टीम बनाने को कहा, जिसे आईफोन बनाने का काम सौंपा जाना था. लेकिन एक शर्त थी कि टीम में से कोई भी व्यक्ति एपल से बाहर का नहीं लिया जाएगा.

कैसे बनी टीम

इस प्रोजेक्ट को एक राज रखा जाना था. और यह राज किस हद तक रखा गया, इसका पता 2012 में, सैमसंग के साथ एक मुकदमे के दौरान चला.

फोर्स्टाल ने बताया कि वह इंजीनियरों और टीम के संभावित सदस्यों को नहीं बता सकते थे कि वे लोग किस चीज पर काम करने वाले हैं. उन्हें बस इतना बताया गया था कि यह एक 'अद्भुत नया प्रॉडक्ट' होगा.

उनसे कहा गया कि उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी, अपनी रातें कुर्बान करनी होंगी और बरसों तक वीकेंड पर भी काम करना होगा. अगर इसके लिए तैयार हैं, तभी टीम का हिस्सा बनने के बारे में सोचें.

एपल आईफोन को तैयार करने के इस काम को आतंरिक तौर पर 'प्रोजेक्ट पर्पल' का नाम दिया गया. इससे जुड़ी टीम ने अमेरिकी शहर क्यूपरटीनो की एक इमारत को ले लिया और उसे लॉक कर दिया. पहला फ्लोर बैज रीडर और कैमरों से भरा था.

टॉप सीक्रेट

ऑरीजिनल आईफोन टीम में काम करने वाले इंजीनियर टैरी लैम्बर्ट ने बताया कि वह टीम में उस वक्त शामिल हुए जब केरनल (ऑपरेटिंग सिस्टम) की खामियों को दूर किया जा रहा था.

वह इससे पहले मैक ओएस एक्स केरनल पर भी काम कर चुके थे. उन्होंने इस केरनल का छह प्रतिशत हिस्सा लिखा था जो एक साल में एक लाख कोड लाइनों के बराबर होता है. आईओएस भी इसी केरनल को इस्तेमाल करता है.

लैम्बर्ट ने अपनी क्योरा पोस्ट में लिखा कि उन्हें तब लिया गया जब शिपिंग डेट नजदीक थी, इसलिए तब तक कंपनी ने प्रॉडक्ट को लेकर गोपनीयता में कुछ हद तक ढील दे दी थी. उन्हें एक ऐसी जगह पर ले जाया गया, जहां सब कुछ काले कपड़े से ढका था.

वह बताते हैं कि काले कपड़े से ढकी चीज का कुछ भी दिखाई नहीं देता. उन्हें बस इतना पता था कि वे लोग एक एआरएम बेस्ड सिस्टम पर काम कर रहे हैं. उन्होंने तो मजाक में यह भी कह दिया था कि अगर किसी को बढ़िया हेलोवीन ड्रेस चाहिए, तो वह एक काला कपड़ा खरीद ले.

उसमें आंखों के लिए छेद कर ले और खुद को 'सीक्रेट प्रोजेक्ट' बता कर सड़क पर निकल पड़े.

पर्पल केबल

वह आगे बताते हैं कि उन्होंने एक एनडीए (नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट) साइन किया. इसके बाद एक और एनडीए साइन किया गया जिस पर प्रोजेक्ट का कोड नाम लिखा था.

एक मजेदार बात यह थी कि एपल ने अलग अलग समूहों के लोगों को अलग अलग कोड नाम दिए थे. इससे यह सुनिश्चित किया गया था कि लोगों को यह ना पता चले कि दूसरा व्यक्ति भी उसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है.

एनडीए के बाद, लोगों को सीक्रेट लैब में जाने दिया गया जो जनरल लैब के ही भीतर थी. लेकिन आपको कुछ नहीं पता चलता था कि इसे किससे बनाया जाएगा क्योंकि शुरुआत में सब कुछ 'प्लेक्सीग्रास पर प्रोटोटाइप ही था.'

आखिर में वह बताते हैं कि 'प्रोजेक्ट पर्पल' पर काम करते हुए प्री प्रॉडक्शन यूनिटों में जो केबल इस्तेमाल की गई थी वे असल में 'पर्पल' यानी बैंगनी रंग की थी.

है ना मजेदार कहानी. अगर आप इसे और विस्तार से जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करें.