view all

एपल की 'भारी भरकम मांगों' के आगे नहीं झुक रही भारत सरकार

एक कंपनी को खास रियायत देकर सरकार आखिर अन्य कंपनियों के प्रति कठोर कैसे हो सकती है. इसलिए ये मामला अटका हुआ है.

Ranjita Thakur

यह सोमवार और मंगलवार एक बार फिर आईफोन बनाने वाली अमेरिका की दिग्गज फोन निर्माता कंपनी एपल के लिए निराशाजनक नतीजे लेकर आया.

चीन से आने वाले मोबाइल फोनों से कथित तौर पर डाटा लीक होने की आशंका के बीच सरकार की ओर से डाटा सुरक्षा नीति को लेकर दिखाई गई सख्ती के बीच एपल ने वाणिज्य मंत्रालय, डीआईपीपी और यहां तक की प्रधानमंत्री कार्यालय तक सोमवार और मंगलवार को अपने फोन के भारत में उत्पादन के लिए डयूटी फ्री राहत की मांग को लेकर मशक्कत की, लेकिन इसका कोई सकारात्मक संदेश सामने नहीं आया.


लंबी चौड़ी है एपल की मांग

एपल ये छूट अगले पंद्रह साल तक के लिए चाहता है और साथ ही सरकार की उस नीति से भी अपने को अलग रखना चाहता है जिसमें एक निश्चित सीमा तक फोन उत्पादन के लिए भारतीय कलपुर्जों की खरीद आवश्यक है. सरकार की ओर से एपल को साफ कहा गया है कि अगले 15 साल तक किसी भी तरह के टैक्स नहीं लगाने की उसकी मांग किसी भी हालत में स्वीकार नहीं की जा सकती है.

सरकार के सूत्रों के मुताबिक, बेंगलुरु में एक कंपनी के माध्यम से अपनी उत्पादन इकाई शुरू करने वाले एपल ने सरकार को भरोसा दिया कि वह भारत में अपने स्वामित्व वाली उत्पादन इकाई को शुरू कर सकता है. लेकिन उसे सरकार की ओर से कुछ आश्वासन चाहिए. इसमें सबसे उपर अगले 15 साल तक के लिए उत्पादन पर पूरी तरह से डयूटी फ्री का वादा चाहिए. यह छूट न केवल उसे भारतीय बाजार में बेचे जाने वाले फोन पर मिले बल्कि वैश्विक स्तर पर बेचे जाने वाले और यहां पर उत्पादित फोन पर भी यह छूट मिले.

इसके साथ ही उसने यह भी मांग की कि वह अपने आईफोन चाहे जिस भी इलाके में बनाए लेकिन उसे विशेष आर्थिक क्षेत्र या एसईजेड और एक्सपोर्ट ओरियेंटेड जोन को दी जाने वाली सुविधाएं दी जाएं. इसके साथ ही उसने विदेश से आयातित किये जाने वाले पुर्जों और अन्य इकाई पर अगले 15 साल तक कस्टम डयूटी से छूट देने के साथ ही पुराने कलपुर्जों के आयात पर भी इसी तरह की छूट की मांग की है.

भारत को है इस बात का डर

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पूर्व में भी वो ये मांग करता रहा है. इससे पहले वो भारत में अपने पुराने फोन बेचने और यहां पर अपने पूर्ण स्वामित्व वाले स्टोर खोलने को लेकर भी इच्छा जता चुका है. लेकिन पुराने फोन बेचने की इजाजत सरकार ने इसलिए नहीं दी क्योंकि इससे भारत एक डंपिंग ग्राउंड बन जाएगा. दुनिया की हर कंपनी अपना हर माल यहां पर बेचना चाहेगी. यह पर्यावरण के लिहाज से भी भारत के लिए ठीक नहीं होगा.

इस अधिकरी ने कहा कि इसी तरह से जिस तरह के उत्पादन और कस्टम डयूटी में एपल अपने आईफोन के लिए छूट मांग रहा है वह भी संभव नहीं है. इसकी वजह यह है कि आने वाले समय में फिर अन्य कंपनियां भी वही छूट चाहेंगी. अगर एक कंपनी को यह छूट दी जाती है तो फिर अन्य को कैसे इससे इनकार किया जाएगा.

अधिकारी बताते हैं कि इन मांगों के साथ ही एपल सरकार की भारतीय उत्पाद के उपयोग को लेकर भी सहमत नहीं है. वह सरकार की उस नीति को अपनाने को तैयार नहीं है जिसमें कहा गया है कि उन्हें एक सीमा तक भारतीय उत्पाद पुर्जों को ही लेना होगा. वह इसमें भी छूट चाहता है. ऐसे में दोनों पक्ष किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके हैं.

ध्यान रहे कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पिछली यात्रा पर अमेरिका गए थे तो अमेरिकी बिजनेस प्रतिनिधियों से मुलाकात के दौरान एपल के टिम कुक ने भी इन मांगों को प्रधानमंत्री के समक्ष रखा  था. एक अधिकारी ने कहा कि संभव है कि इस समय जब सरकार ने मोबाइल फोन कंपनियों के लिए डाटा सुरक्षा नीति को लेकर सख्त कदम उठाने की पहल की है तो एपल को लगा होगा कि इससे चीन की मोबाइल कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा और यह भारत सरकार से बात करने का उचित समय उनके लिए हो सकता है. लेकिन एक कंपनी को खास रियायत देकर सरकार आखिर अन्य कंपनियों के प्रति कठोर कैसे हो सकती है. यही वजह है कि अभी मामला वहीं पर है जहां से शुरू हुआ था.