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अलविदा 2016: एक पैर से गोल्डन छलांग लगाने वाले मरियप्पन तंगवेलु

कहानी रियो पैरालिंपिक्स के गोल्ड मेडलिस्ट मरियप्पन तंगवेलु की

FP Staff

मरियप्पन तंगवेलु की कहानी शुरू होती है सेलम से 50 किलोमीटर दूर पेरियावदगमपट्टी से. पांच साल का ये बच्चा घर से बाहर खेल रहा था. सामने से बस जा रही थी. ड्राइवर शराब के नशे में था. उसका बस से कंट्रोल हटा. बच्चे के दाएं पैर पर बस चढ़ गई. हमेशा के लिए मरियप्पन का पैर खराब हो गया.

15 साल बाद मरियप्पन रियो में खड़े दिखाई देते हैं. करीब छह कदम के बाद उन्होंने छलांग लगाई. छलांग 1.89 मीटर की थी. मरियप्पन की छलांग उन्हें गोल्ड दिलवाने के लिए काफी थी.


गोल्ड जीतने के बाद मरियप्पन ने अपने पहले इंटरव्यू में मां के लिए घर बनाने की ख्वाहिश जताई थी. परिवार 500 रुपए महीने के किराए पर रहता था. मां सरोजा सब्जी बेचती थीं. साइकल पर सब्जी बेचने के अलावा दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करती थीं. पिता परिवार को छोड़कर चले गए थे, जिसके बाद सब कुछ मां ही थीं. इस बीच भी वो चाहती थीं कि मरियप्पन अभ्यास जारी रखे, जो बेंगलुरु में सीख रहे थे. बेटे की सर्जरी के लिए तीन लाख रुपए का लोन भी था, जो उन्हें चुकाना था. लेकिन इन सारी मुश्किलों के बीच अभ्यास जारी रहा.

दरअसल, स्कूल स्तर पर ही मरियप्पन अच्छे एथलीट थे. स्कूल में कोच आर. राजेंद्रन ने उनसे हाई जंप के लिए कहा. इसके बाद कोच सत्यनारायण ने अंडर 18 पैरा एथलेटिक चैंपियनशिप में देखा था. सत्यनारायण को लगा कि इस बच्चे में क्षमताएं हैं. उन्होंने मरियप्पन से बेंगलुरु आने को कहा. 2015 में मरियप्पन अपनी कैटेगरी में विश्व नंबर एक बन गए.

रियो पैरालिंपिक में सिर्फ मरियप्पन ने ही पदक नहीं जीता. उन्होंने गोल्ड जीता तो दूसरे भारतीय वरुण भाटी ने रजत जीता. दिलचस्प ये है कि मरियप्पन ने जिस रोज गोल्ड जीता था, मां सुबह सब्जी बेचने निकलने वाली थीं. लेकिन बाकी बच्चों ने उन्हें रोका और कहा कि मरियप्पन की खबर के लिए इंतजार करें.