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अलविदा 2018 : साल बीतते-बीतते पीवी सिंधु ने जीता खिताब, भारतीय बैडमिंटन में बदला माहौल

पीवी सिंधु की खिताब से दूरी बने रहने पर वह खुद और उनके कोच पुलेला गोपीचंद इस गुत्थी को सुलझाने में लगे रहे और आखिर में वे जीत का फॉर्मूला तलाशने में सफल हो गए

Manoj Chaturvedi

भारत की स्टार शटलर पीवी सिंधु ने इस साल एक के बाद एक खिताब खोकर अपने ऊपर फाइनल बाधा पार नहीं कर पाने का ठप्पा लगा लिया. इस मामले में उन्हें खासी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. लेकिन साल जाते-जाते एक सफलता ने उनको लेकर बनीं सारी धारणाओं को बदलकर रख दिया. यह सफलता है चीन के ग्वांग्झू में खेले गए बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर फाइनल्स का खिताब. सीजन के इस आखिरी टूर्नामेंट में वह खिताब जीतने वाली इकलौती भारतीय खिलाड़ी तो हैं ही, साथ ही उन्होंने जिस तरह से एक-एक करके के दुनिया की दिग्गज खिलाड़ियों को हराया, उससे यह संकेत जरूर मिलता है कि आने वाले साल में सिंधु का जमकर धमाका देखने को मिल सकता है. सिंधु को फाइनल में हारने वाली खिलाड़ी के ठप्पे से निजात मिलने से बहुत राहत पहुंची. यही वजह है कि उन्होंने खिताब जीतने के बाद कहा, ..मुझसे फाइनल में हारने के बारे में ही सवाल पूछे जाते थे. लेकिन अब खिताब जीत लेने पर शायद यह सवाल अब नहीं पूछे जाएंगे...

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विश्व की नंबर दो शटलर पीवी सिंधु इस खिताबी सफलता के बाद निश्चय ही मुड़कर नहीं देखना चाहेंगी. हां, इतना जरूर है कि जिस तरह से उनका साल बीता, उसे वह याद तो नहीं रखना चाहेंगी. साल की शुरुआत इंडियन ओपन में बेई वेन झांग से हारकर हुई. इसके बाद उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में सायना नेहवाल, विश्व चैंपियनशिप में कैरोलिना मारिन और एशियाई खेलों में विश्व की नंबर एक खिलाड़ी ताई जू यिंग के हाथों हारकर खिताब खोना पड़ा. इस तरह उनकी साल भर ज्यादातर समय खिताब से दूरी बनी रही. यही नहीं वह ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन ओपन और मलयेशिया ओपन के सेमीफाइनल में ही चुनौती तुड़बा बैठीं. यही नहीं बैडमिंटन एशिया चैंपियनशिप, चाइना और इंडोनेशिया ओपन में भी उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा.

कैसे लौटा चैंपियनों वाला अंदाज

पीवी सिंधु की खिताब से दूरी बने रहने पर वह खुद और उनके कोच पुलेला गोपीचंद इस गुत्थी को सुलझाने में लगे रहे और आखिर में वे जीत का फॉर्मूला तलाशने में सफल हो गए. वह कंधों को और मजबूत करके अपने स्मैशों में और पैनापन लाई हैं. इसके अलावा अपने बैकहैंड को सुधारने के साथ अपने नेट गेम को मजबूत किया है. पहले वह अक्सर अटैक पर अपनी पूरी जान लगाकर अपनी ऊर्जा खो देती थीं, जिसका फायदा सामने वाली खिलाड़ी उठा लेती थीं. लेकिन इस बार सिंधु ने बेवजह आक्रामक अंदाज से दमदख को नहीं खोया. कोच गोपीचंद ने उन्हें समझाया है कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के वापसी करने का प्रयास करने पर अपनी बॉडी लैंग्वेज को मजबूत बनाए रखना जरूरी है. ऐसा करने से वापसी करने वाली खिलाड़ी को मुश्किल होती है. यह सभी जानते हैं कि नोजोमी का सिंधु के मुकाबले नेट गेम बेहतर है. लेकिन सिंधु ने जापानी खिलाड़ी को उसके खेल से ही मात दी. ओकुहारा ने मैच के बाद कहा कि सिंधु कैसा खेलेंगी, इस बात को नहीं समझ पाने से मैं निराश थी. वह पूरे फाइनल में आक्रामक होकर नहीं खेलीं. मैंने जब खेल धीमा किया तो सिंधु इसके लिए भी तैयार थी.

सायना के लिए यादगार साल

विश्व की नंबर एक शटलर रह चुकीं सायना नेहवाल अपने पूर्व दिनों वाली रंगत को नहीं पा सकी हैं. पर इतनी जरूर  है कि यह साल उनके लिए दो कारणों से यादगार बन गया है. उन्होंने इस साल गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया है. उनके लिए खुशी की बात यह भी है कि उन्होंने यह सफलता पीवी सिंधु को हराकर हासिल की. इसके बाद अक्टूबर माह में सायना ने डेनमार्क ओपन में फाइनल तक चुनौती पेश की और विश्व की नंबर एक खिलाड़ी ताइ जू यिंग से हारीं जरूर पर यह अहसास कराने के बाद कि उनमें अभी काफी दम बाकी है. इन सफलताओं से भी ज्यादा महत्वपूर्ण सायना नेहवाल का अपने साथी खिलाड़ी पारूपल्ली कश्यप से विवाह बंधन में बंध जाना है. विवाह की वजह से वह सीजन के कुछ आखिरी टूर्नामेंटों में खेल नहीं सकीं और इस कारण उन्हें एक बार फिर टॉप दस खिलाड़ियों से बाहर होना पड़ा है. वह 12वीं रैंकिंग पर खिसक गई हैं.

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पुरुष शटलर्स ने भी किया निराश

भारतीय पुरुष शटलर्स की बात चलती है तो पहला नाम विश्व के नंबर एक खिलाड़ी रह चुके किदांबी श्रीकांत का आता है. उन्होंने पिछले साल जिस तरह से इंडोनेशिया ओपन, ऑस्ट्रेलिया ओपन, डेनमार्क ओपन और फ्रेंच ओपन के खिताब जीतकर धमाका किया था, उससे लगा था कि वह इस साल धमाका मचाकर रख देंगे. लेकिन इस बार वह लगातार निराशाजनक प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी रहे हैं. वह कॉमनवेल्थ गेम्स में फाइनल तक चुनौती पेश करने के अलावा किसी टूर्नामेंट में फाइनल तक भी नहीं पहुंच सके. इन खराब प्रदर्शनों की वजह से ही वह रैंकिंग में आठवें स्थान पर खिसक गए हैं. विश्व में 19वीं रैंकिंग के एचएस प्रणॉय और 17वीं रैंकिंग के बी साई प्रणीत भी ऐसा कुछ कर सके जिसके साल में चर्चा होती. समीर वर्मा ने जरूर टुकड़ों में कुछ अच्छा प्रदर्शन किया. उन्होंने स्विस ओपन, हैदराबाद ओपन और सैयद मोदी इंटरनेशनल खिताब जीते. यही नहीं उन्होंने स्विस ओपन खिताब जीतने के दौरान क्वार्टर फाइनल में विश्व के नंबर एक जापानी खिलाड़ी केंटो मोमोटा को हराया.

लक्ष्य की अगुआई वाली यंग ब्रिगेड है दमदार

लक्ष्य सेन ने जूनियर स्तर पर झंडे गाड़कर यह जता दिया है कि आने वाला समय उनका है. इस साल उन्होंने यूथ ओलिंपिक में रजत, वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक और एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतकर अंतरराष्ट्रीय मंच को अपनी मौजूदगी का अहसास करा दिया है. यह खिताब उन्होंने कुनलावुत को हराकर हासिल किया. वह यह खिताब जीतने वाले सिर्फ दूसरे भारतीय हैं. इससे पहले गौतम ठक्कर ने यह खिताब 1965 में जीता था. अभी तक पुलेला गोपीचंद अकादमी से ही चैंपियन निकलते देखे जाते रहे हैं. लेकिन लक्ष्य सेन प्रकाश पादुकोण अकादमी में विमल कुमार से प्रशिक्षण लेते रहे हैं. इस तरह अब ट्रेंड बदलने के संकेत मिलने लगे हैं. इसी तरह पुलेला गोपीचंद की बेटी गायत्री से भी बहुत उम्मीदें हैं. इन दोनों से नए साल में धमाकों की उम्मीद की जा सकती है. भारतीय शटलर्स ने 2017 में शानदार प्रदर्शन करके यह अहसास कराया था कि हमारे शटलर्स चीनी दबदबे को तोड़ने में कामयाब हो सकते हैं. लेकिन 2018 के प्रदर्शन ने इन उम्मीदों को तोड़ दिया था. लेकिन युवा शटलर्स लक्षय सेन और गायत्री गोपीचंद से यह उम्मीदें जरूर की जा सकती हैं.