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कुश्ती में कॉमनवेल्थ खेलों की सफलता पर मत इतराइए, एशियाई खेलों में खरा सोना ही चमकेगा

गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों की कुश्ती प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए पांच स्वर्ण, तीन रजत और चार कांस्य पदक जीते, लेकिन क्या जकार्ता में इसका आधा भी कर पाएंगे

Sachin Shankar

‘इस जीत का जश्न मनाइए और भूल जाइए.’ हालांकि ये टिप्पणी 16 साल पहले 2002 मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ खेलों के बाद एक पूर्व दिग्गज भारतीय निशानेबाज ने की थी, लेकिन ये आज भी मौजूं है. इस बार भारत 26 स्वर्ण पदक सहित 66 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा. पदकों के लिहाज से इन खेलों में ये भारत का तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों में इतने पदक जीतना इस बात का संकेत कतई नहीं है कि भारत खेलों में एक नई शक्ति बन गया है. कॉमनवेल्थ खेलों में निशानेबाजी, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी और कुश्ती का स्तर बहुत ऊंचा नहीं है. इसलिए इन खेलों में पदकों का ढेर लगाना आत्म संतुष्टि से ज्यादा कुछ नहीं है.

कॉमनवेल्थ में छाए भारतीय रेसलर


भारत ने गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों की कुश्ती प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए पांच स्वर्ण, तीन रजत और चार कांस्य पदक जीते. यानी कुल बारह पदक भारत के खाते में आए, हर पहलवान कोई ना कोई पदक जीतकर लौटा. आंकड़ा तो बहुत शानदार है. लेकिन इसकी तुलना अगर एशियाई खेलों से की जाए तो तस्वीर साफ हो जाएगी कि हम अपने महाद्वीपीय खेलों में कहां खड़े हैं. 2018 के एशियाई खेल तो अगस्त में जकार्ता होने हैं. लेकिन 2014 में दोनों खेलों में कुश्ती प्रतियोगिता में मिले पदक काफी कुछ कहानी बयां कर देते हैं.

भारत ने 2014 ग्लास्गो खेलों में कुश्ती में पांच स्वर्ण, छह रजत और दो कांस्य पदक सहित 13 पदक जीते थे. शीर्ष पर रहे कनाडा से उसे एक पदक कम मिला था. लेकिन 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में भारत ने एक स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक जीते थे. जरा पदक विजेताओं के नाम भी जान लेते हैं. योगेश्वर दत्त ने 65 किग्रा में स्वर्ण पदक जीता. बजरंग पूनिया को 61 किग्रा में रजत पदक मिला. नरसिंह पंचम यादव (74 किग्रा), विनेश फोगाट (48 किग्रा) और गीतिका जाखड़ (63 किग्रा) को कांस्य पदक मिला. योगेश्वर दत्त और विनेश फोगाट ने 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन ग्लास्गो में पदक जीतने वाले बजरंग पूनिया और गीतिका जाखड़ ही इंचियोन एशियाई खेलों में अपने प्रदर्शन के साथ न्याय कर सके.

अब ये भी जान लिजिए कि 2010 के नई दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों के बाद उसी साल हुए ग्वांगझू एशियाई खेलों में कुश्ती में क्या हुआ था. बेहद सफल नई दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों के बाद ग्वांगझू में भारतीय पहलवान तीन कांस्य पदक ही जीत पाए थे. मौसम खत्री ने 97 किग्रा (फ्रीस्टाइल) और रवींद्र सिंह (60 किग्रा) व सुनील कुमार (66 किग्रा) ने ग्रीको रोमन में भारत को कांसा दिलाया था. महिला पहलवान खाली हाथ लौटी थीं.

सुशील कुमार ने जीता है केवल एक कांसा

सुशील कुमार भले ही दो बार के ओलिंपिक पदक विजेता हों, लेकिन एशियाई खेलों में वह केवल एक बार कांस्य पदक जीत सके हैं. ये पदक उन्होंने 2006 दोहा एशियाई खेलों में 65 किग्रा में जीता था. दोहा में भारत ने कुश्ती में केवल पांच पदक जीते थे. तीन पुरुषों ने और दो महिलाओं ने.

सुशील कुमार और पलविंदर सिंह चीमा (125 किग्रा) ने फ्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीते, जबकि विनायक दलवी ने ग्रीको रोमन में 59 किग्रा में तीसरा स्थान हासिल किया था. महिलाओं में गीतिका जाखड़ ने 63 किग्रा में रजत और अलका तोमर ने 55 किग्रा में कांस्य पदक जीता था.

दो बार के सूखे के बाद चीमा लाए थे पदक

2002 बुसान एशियाई खेलों में केवल एक कांस्य पदक मिला था, जो पलविंदर सिंह चीमा (125 किग्रा) ने दिलाया था. पलविंदर सिंह चीमा की उपलब्धि इस मायने में ऐतिहासिक है कि उन्होंने दो एशियाई खेलों में सूखे के बाद ये पदक दिलाया था. 1998 बैंकाक और 1994 हिरोशिमा एशियाई खेलों में भारतीय पहलवान कोई पदक नहीं जीत सके थे. जबकि 1990 बीजिंग एशियाई खेलों में उसे दो पदक मिले थे. ओमवीर सिंह ने 48 किग्रा (फ्रीस्टाइल) में रजत और सुभाष वर्मा ने 97 किग्रा (फ्रीस्टाइल) में कांस्य पदक जीता था. ये आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं एशियाई खेलों में कुश्ती में हमारी स्थिति क्या है.

एशियाई खेलों में होता है कड़ा मुकाबला

दरअसल कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय पहलवानों को ज्यादा कड़ी टक्कर नहीं मिलती है. इन खेलों में उसका मुकाबला मुख्य तौर पर कनाडा से रहता है. महिलाओं में कनाडा के साथ नाइजीरिया भी जुड़ जाता है. लेकिन एशियाई खेलों में इसका ठीक उलटा है. कुश्ती में दुनिया के चोटी के पहलवान पैदा करने वाले देश इन खेलों में शिरकत करते हैं. ईरान, जापान, मंगेलिया और चीन इनमें मुख्य हैं, लेकिन 90 के दशक में सोवियत रूस के टूटने के बाद उजबेकिस्तान, किर्गिस्तान और तुर्कमेनिस्तान उसमें और आ जुड़े हैं. इससे मुकाबला और कड़ा हो गया है.

भारतीयों के सामने एशियाई खेलों में चुनौती

अगर हम बात करें अपने सबसे बड़े पहलवान सुशील कुमार की तो उनके सामने जकार्ता में कड़ी चुनौती होगी. उनका मुकाबला उजबेकिस्तान के बेदजोद अब्दुरखामानोव से होगा, जो 2014 एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता हैं और 2016 रियो ओलंपिक में कांस्य पदक के मुकाबले में हार गए थे. उनके अलावा कजाकिस्तान के तांतारोव भी हैं. बजरंग पूनिया के सामने ईरान के मेसिम नसीरी, कोरिया के ली हयूंग चुल और कजाकिस्तान के नयाडोकोव होंगे. ये सभी तगड़े प्रतिद्वंद्वी साबित होंगे.

सोमवीर का सामना ईरान के अली रजा करीमी और सुमित का सामना यादुल्ला मोहदी से हो सकता है. ईरानी पहलवानों के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है. महिलाओं में विनेश और नवजोत कौर के सामने जकार्ता में मौका होगा. क्योंकि इन दोनों ने एशियन कुश्ती में जापानी खिलाड़ियों को हराकर पदक जीते थे. महिलाओं में सबसे बड़ा खतरा ही जापानी पहलवान होती हैं. इसलिए विनेश और नवजोत कौर मनोबल ऊंचा होगा. तैयारी के लिए अभी समय है, लेकिन एशियाई खेलों में कॉमनवेल्थ खेलों की तरह सफलता की उम्मीद तो बिल्कुल मत रखिए.