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Women's day 2018: मैदान पर ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली ये बेटियां हैं भारत की नई 'उम्मीद'

इस साल कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स होने हैं, ऐसे में इन खिलाड़ियों का चमकना देश की उम्मीद बढ़ाने जैसा है

Sachin Shankar

वैसे तो महिलाएं हर क्षेत्र में नित नए प्रतिमान गढ़ रही हैं. लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है, जहां उनकी सशक्त उपस्थिति पहले से मौजूद रही है. वो क्षेत्र है खेल. ऐसा सिर्फ कहने भर के लिए नहीं है. बल्कि बाकायदा इसके प्रमाण मौजूद हैं. 1986 में सिओल में हुए एशियाई खेलों का ही उदाहरण लिजिए. उस समय भारत ने केवल पांच स्वर्ण पदक जीते, जिनमें से चार पीटी उषा ने दिलाए. उन्होंने 200, 400 मी., 400 मी. बाधा दौड़, 4 गुणा 400 मी. रिले में स्वर्ण पदक भारत को दिलाए. इसके अलावा उन्होंने 100 मी. में रजत पदक भी जीता. भारत को एक अन्य स्वर्ण पदक कुश्ती में पहलवान करतार सिंह ने दिलाया. पीटी उषा की बदौलत भारत सिओल में सम्मान बचाने में सफल रहा. इन खेलों के बाद पीटी उषा भारत की गोल्डन गर्ल बन गयीं.

ये तो 32 साल पहले की बात हो गई एक और वाकया तो महज दो साल पहले का है. रियो ओलिंपिक में हर दिन निराशाजनक खबरें मिल रही थीं. लंदन में छह पदक जीतने वाला भारत इस बार खाता खोलने के लिए भी तरस रहा था. ऐसे में पहलवान साक्षी मलिक ने दमखम दिखाया और भारत को कांस्य पदक दिला दिया. अगला नंबर बैडमिंटन सनसनी पीवी सिंधु का था. वह इन खेलों के बैडमिंटन फाइनल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय शटलर बनीं और रजत पदक लेकर आयीं.


मौजूदा साल भारतीय खेलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स होने हैं. एशियन गेम्स 18 अगस्त से दो सितंबर तक जकार्ता में होंगे. निश्चित तौर पर महिला खिलाड़ी इन खेलों में भी शानदार प्रदर्शन कर भारत का परचम फहराएंगी.

ऐसी ही कुछ महिला खिलाड़ियों पर नजर डालते हैं जिन्होंने पिछले कुछ समय में अपनी छाप छोड़ी है. जो आने वाले समय में देश का मान बढ़ाएंगी.

अरुणा बी रेड्डी (जिमनास्टिक)

अरुणा बी रेड्डी की पहली पसंद कराटे था और वह इसमें ब्लैक बेल्ट भी हैं. अरुणा बचपन से ही कराटे सीख रही थीं, लेकिन उनके नारायण रेड्डी पिता के दिमाग के कुछ और ही योजनाएं चल रही थीं. अरुणा ने पिता ने उनके शरीर के लचीलेपन को देखते हुए 2002 में जिमनास्टिक्स में डाल दिया और अरुणा ने जब 2005 में अपना पहला नेशनल मेडल जीता तो उन्हें भी इससे प्यार हो गया. हैदराबाद की ये खिलाड़ी पिछले दिनों मेलबर्न में जिमनास्टिक्स विश्व कप में व्यक्तिगत पदक जीतने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट बन गईं. उन्होंने महिलाओं की वाल्ट स्पर्धा में कांस्य पदक अपने नाम किया.

22 साल की अरुणा का यह पहला अंतरराष्ट्रीय पदक है. हालांकि वह 2013 विश्व आर्टिस्टिक जिमनास्टिक्स चैंपियनिशप, 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स और 2014 एशियन गेम्स और 2017 एशियन चैंपियनशिप में भाग ले चुकी हैं. इस उपलब्धि से पूर्व उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2017 एशियन चैंपियनशिप की वाल्ट स्पर्धा में छठा स्थान था. अन्य सभी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में वह क्वालीफिकेशन चरण से आगे नहीं जा सकी थीं. लेकिन विश्व कप में पदक जीतकर सबका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि देखो भारत में भी विश्व स्तरीय जिम्नास्ट पैदा करने की क्षमता है. 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली दीपा कर्माकर फिट ना होने की वजह से गोल्ड कोस्ट नहीं जाएंगी, लेकिन चिंता ना करें अरुणा है ना.

मनु भाकर (निशानेबाजी)

निशानेबाजी से नाता जोड़ने से पहले मनु भाकर ने बॉक्सिंग, एथलेटिक्स, स्केटिंग, जूडो कराटे सभी खेलों में हाथ आजमाया है. 16 साल की मनु ने जब दो साल पहले निशानेबाजी सीखनी शुरू की तो शायद किसी को भी नहीं पता था कि ये खेल उसे इतना ऊंचा मुकाम दिला देगा. मनु ने गुवादालाजारा (मेक्सिको) में आईएसएसएफ विश्व कप में एक दिन में दो गोल्ड जीत कर नया रिकॉर्ड बनाया है. ऐसा करने वाली वह सबसे कम उम्र की महिला खिलाड़ी हैं.

टी मनु के सपनों को साकार करने के लिए राम किशन भाकर ने भी बड़ा त्याग किया है. वह मरीन इंजीनियर की अपनी नौकरी छोड़कर पिछले डेढ़ साल से बेटी के साथ-साथ हर शूटिंग इवेंट में जा रहे हैं. खेलों के साथ मनु पढ़ाई में भी काफी होशियार हैं. फिलहाल वह झज्जर के यूनिवर्सल स्कूल में ग्यारवीं में साइंस की छात्रा है. मनु का सपना डॉक्टर बनने का भी रहा है. लेकिन अब मनु को भी अहसास है कि पढ़ाई और खेल दोनों साथ साथ नहीं चल सकते. झज्जर जिले के गोरिया गांव की बेटी धुन की पक्की है. उन्होंने साबित कर दिया है कि ना सिर्फ उनके लक्ष्य बड़े हैं, बल्कि वह उसे हासिल करने की दिशा में भी सधे कदम से बढ़ रही हैं. उनकी मंजिल तो कॉमनवेल्थ और ओलंपिक में सोना हासिल करना है. कॉमनवेल्थ तो अब ज्यादा दूर नहीं हैं. उम्मीद वहां भी एक नया इतिहास रचा जाएगा.

नवजोत कौर (कुश्ती)

अरुणा बी रेड्डी और मनु भाकर की तरह नवजोत कौर की सफलता के पीछे उनके पूरे परिवार का त्याग छिपा है. उनके पिता सुखचैन सिंह ने कर्ज लेकर अपनी बेटी को आगे बढ़ाया. नवजोत ने पिछले दिनों सीनियर एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. वह यह मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं. सुखचैन सिंह पंजाब के तारन में किसानी करते हैं. बेटी को सरकार की तरफ से कोई खास मदद नहीं मिल रही थी. ऐसे में पिछले लगभग दस सालों से वह कर्ज लेकर अपनी बेटी की ट्रेनिंग में मदद कर रहे थे. उनका कर्ज तकरीबन 13 लाख रुपए तक पहुंच गया है.

नवजोत ने किर्गिस्तान के बिश्केक में हुई एशियन चैंपियनशिप में महिलाओं की 65 किग्रा फ्री स्टाइल कैटिगरी के फाइनल में जापान की मिया इमाई को 9-1 से मात देकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था. भारतीय महिलाएं इससे पहले 13 बार फाइनल तक पहुंची, लेकिन जीत नहीं पाईं. नवजोत भी 2013 में फाइनल में पहुंची थीं, लेकिन तब वह हार गई थीं. तब उन्हें जापान की मिया इमाई ने ही हराया था. बिश्केक की सफलता को वह आगे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोहराना चाहेंगी.

हिमा दास (एथलेटिक्स)

फेडरेशन कप एथलेटिक्स में असम की हिमा दास ने पहली बार 400 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया और 51.97 सेकेंड का समय निकालकर कॉमनवेल्थ खेलों के लिए 52 सेकेंड के क्वालीफाइंग मार्क को हासिल कर लिया. ये सच है कि पिछले महीने 18 वर्ष की हुई हिमा दास को फेडरेशन कप से पहले कोई नहीं जानता था. मूलत: 100 और 200 मीटर की धावक हिमा ने पहली बार 400 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी. एक किसान के पांच बच्चों में सबसे छोटी हिमा पहले फुटबॉल खेलती थीं और एक स्ट्राइकर के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहती थी. लेकिन फिर उन्होंने एथलेटिक्स में भाग्य आजमाने की सोची और आज वह शीर्ष एथलीटों की कतार में हैं.

मीराबाई चानू (वेटलिफ्टिंग)

मीराबाई चानू  पिछले साल 22 नवंबर को मणिपुर में अपनी बहन शाया की शादी में शामिल नहीं हो पाई थीं. उनके फैसले से घर में सभी लोग नाराज थे. वह उनकी नाराजगी को समझ सकती थीं, लेकिन मीराबाई ने अपने पैरेंट्स को बताया था कि वह विजेता बनकर लौटेंगी और प्यारी बहन को सोना गिफ्ट करेंगी. मीराबाई ने अपना वादा पूरा किया. 23 साल की चानू ने अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप के 48 किलोग्राम भार वर्ग में हिस्सा लेते हुए 85 किलोग्राम से शुरुआत की और इसके बाद 109 किलोग्राम का भार उठाते हुए उन्होंने भारत की झोली में गोल्ड डाल दिया. चानू से पहले ओलिंपिक कांस्य पदक विजेता कर्णम मल्लेश्वरी ने 1994 और 1995 में विश्व चैंपियनशिप में पीला तमगा जीता था.

रियो ओलंपिक में मिली हार के बाद चानू पांच दिनों के लिए अपने घर गईं और फिर ट्रेनिंग के लिए पटियाला लौट आईं. इसके बाद गोल्ड मेडल जीतने तक वह वापस नहीं गईं. शायद चानू के दिल में अब भी इंटरनेशनल स्तर पर खुद को साबित करने की इच्छा बाकी थी जो वर्ल्ड चैंपियनशिप से ही पूरी हो सकती थी. चानू ने नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत लिया. उन्होंने कुल 194 किग्रा भार उठाया. गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन पर उम्मीदों का बोझ होगा.