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भरोसा होने के बाद गहरी सांस भरिए... उठिए... और कहिए - थैंक्यू बोल्ट....

अब कभी वो बिजली नहीं कड़केगी, जिसे हम थंडर बोल्ट के नाम से जानते थे.

Shailesh Chaturvedi

वो आए, हमेशा की तरह. दर्शकों की तरफ देखकर इशारे किए, हमेशा की तरह. उन्होंने अपनी जर्सी पर लिखे जमैका की तरफ इशारा किया. यह देखने की भी हमें आदत है. टिपिकल यूसेन बोल्ट स्टाइल में उन्होंने अपने शरीर को इधर-उधर झटका. अब सब तैयार था. आखिरी रेस. दुनिया के महानतम स्प्रिंटर में शुमार होने वाले यूसेन बोल्ट आखिरी बार दर्शकों को अपनी दौड़ से आनंदित होने का मौका दे रहे थे.

लंदन के ओलिंपिक एरीना में चार गुणा सौ मीटर की रेस. पहले, दूसरे, तीसरे धावक ने अपना काम पूरा किया. अब बेटन बोल्ट के हाथ में थी. बोल्ट को स्लो स्टार्टर कहा जाता है. उन्होंने गीयर बदला, लेकिन उसके बाद वो हुआ, जो किसी ने नहीं सोचा था. जो हमेशा होता रहा है, उससे बिल्कुल अलग. बोल्ट अचानक लंगड़ाने लगे. उनके बाएं पैर में तकलीफ हुई. वो गिर पड़े.


ये वो यूसेन बोल्ट तो नहीं, जिसे हम और आप जानते रहे हैं. उन्हें तो रेस पूरी करने के बाद थंडर बोल्ट के इशारे के लिए जाना जाता है. लेकिन इस बार वो जमीन पर गिरे हुए थे. वो दर्द से कराह रहे थे. वो कैमरे के लिए खेल नहीं रहे थे, जिसके लिए उन्हें जाना जाता है. पूरा स्टेडियम सन्न था. इस स्टेडियम ने उन्हें पांच साल पहले भी देखा था. एक नहीं, दो नहीं, तीन गोल्ड जीतते हुए. इस बार वो दो इवेंट में हिस्सा लेने आए थे. 100 मीटर में जस्टिन गैटलिन ने उन्हें पीछे छोड़ दिया था. चार गुणा 100 मीटर में बाएं पांव ने पीछे छोड़ दिया.

2008 में यूसेन बोल्ट सनसनी की तरह ओलिंपिक एरीना में आए थे. बीजिंग ओलिंपिक था वो. यहीं पर उन्होने तीन गोल्ड जीते थे. ये अलग बात है कि बाद में वहां का एक गोल्ड उनसे छिन गया, क्योंकि रिले में उनके साथी एथलीट डोप टेस्ट में फेल हो गए थे. बीजिंग से लेकर अगले करीब 8-9 सालों ने बोल्ट की बादशाहत देखी थी.

लंदन ओलिंपिक का वो दिन याद आता है, जब बोल्ट का इवेंट था. पूरा शहर जैसे सिर्फ एथलेटिक एरीना की तरफ ही जाना चाहता था. ओलिंपिक विलेज के पास एक मॉल था, जो हमेशा खचाखच भरा रहता था. लेकिन उस रोज मॉल खाली था. वहां हॉल मे फिल्म का शो रद्द करने का फैसला हुआ था, क्योंकि उस समय पर बोल्ट दौड़ने वाले थे. इस वजह से फिल्म के टिकट नहीं बिके थे.

यह बोल्ट की पहचान है. यह उनका असर है. ये जुनून कितनी देर के लिए? दस सेकेंड से भी कम! बल्कि बोल्ट के वर्ल्ड रिकॉर्ड को देखें, तो महज 9.58 सेकेंड! ये वो समय है, जिसके लिए दुनिया थम जाती थी. स्टेडियम में आने से लेकर चीते और थंडर यानी कड़कती बिजली जैसा पोज बनाते बोल्ट को देखने के लिए. दुनिया वाकई थम जाती थी. दुनिया इस बार भी थमी. लेकिन इस बार अविश्वास में. इस बार स्तब्ध थी दुनिया, सन्न थी.

किसने भरोसा किया था कि बोल्ट हार जाएंगे. चंद रोज पहले वो हारे. किसने भरोसा किया था कि दुनिया के सबसे फिट एथलीटों में शुमार होने वाले बोल्ट 100 मीटर नहीं दौड़ पाएंगे. आखिर उनके लिए सौ मीटर है ही क्या. बड़े-बड़े चंद डग यानी कदम! लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. हर किसी की विदाई परीकथा जैसी नहीं होती. याद है ना कपिल देव की? अपने करियर में कभी अनफिट होने की वजह से बाहर नहीं होने वाले कपिल देव आखिरी वनडे में अनफिट होने की वजह से बाहर हुए थे.

यही सच्चाई है. खेलों की दुनिया बड़ी क्रूर होती है. ये सब कुछ देती है, लेकिन वो नहीं देती, जिसे तय मान लिया गया हो. तय लग रहा था कि जब जमैका के चार धावक 400 मीटर की दूरी तय करेंगे, तो गोल्ड ही उनके नाम होगा. बोल्ट अपने खास अंदाज में इशारा कर रहे होंगे. कैमरामैन का हुजूम उनके पीछे होगा. बोल्ट खिलखिला रहे होंगे. कुछ डांसिंग स्टेप्स कर रहे होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

चुपचाप, खामोश बोल्ट एरीना से बाहर जा रहे थे. खोए हुए... आखिरी कुछ कदमों पर उन्होंने हाथ उठाए... हल्की सी ताली बजाई. दर्शकों को धन्यवाद कहने के लिए. उसके बाद आंखों से ओझल हो गए. हमेशा के लिए. अब कभी वो बिजली नहीं कड़केगी, जिसे हम थंडर बोल्ट के नाम से जानते थे.

अब वो कदमों की चाप नहीं दिखेगी, जिसकी तुलना चीते से की जाती थी. ये सब हमें पता था. लेकिन वो आखिरी कदम ऐसा होगा, किसी ने नहीं सोचा था. बोल्ट ने भी नहीं. इसी को नियति कहते हैं. इसी को जिंदगी कहते हैं. अभी भरोसा नहीं हो रहा. लेकिन जल्दी ही हम मान पाएंगे कि लंदन में उस रात वाकई बोल्ट रेस पूरी नहीं कर पाए. तब उठेंगे, हाथ उठाएंगे, ताली बजाएंगे. शुक्रिया अदा करेंगे बोल्ट का कि उन्होंने ऐसे लम्हे दिए.